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नई फसल के पहले फल (संस्मरण): डॉ शोभा भारद्वाज | कांटेस्ट

Vichar Manthan
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मै कई वर्ष अपने पति एवं बच्चों के साथ ईरान में रही मेरे पति डॉक्टर हैं| उनकी नियुक्ति ईरान के खुर्दिस्तान प्रान्त की राजधानी सन्नदाज से आठ किलोमीटर दूर सलवताबाद में हुई | एक ख़ूबसूरत घाटी हर मौसम  में रंग बदलती थी कसबे के आखिरी छोर पर अस्पताल था | कुछ कदम नीचे कल-कल करता रूद्खाना (पहाड़ी नदी) बहता था ऊचे-ऊचे चिनार के पेड़ हरी भरी पहाड़ियों से घिरी घाटियों में हर पेड़ फूलों से लदे रहते थे जमीन पर लाल रंग के फूलो का गलीचा  बिछा रहता था प्रकृती का  ऐसा कोई रंग नही था जो हमने न देखा हो नवम्बर के बाद भयंकर बर्फवारी होती थी लेकिन उसमे भी ख़ूबसूरती थी मार्च का  महीना बहार (बसंत )का महीना था पेड़ो में नन्हे-नन्हे पत्ते आते उसके बाद पूरी टहनियां फूलो से लद जाती | हर फूल फल में बदल जाता था |इसी सलवताबाद में रहते थे काका जर अली काका खुर्द भाषा में चाचा को कहते हैं हमारे यहाँ भी इसका यही अर्थ है |काका पेशे से किसान थे उनके बाग़ में तरह-तरह के वृक्ष थे जेसे अखरोट ,बादाम, हेजलनट सेब और चेरी लेकिन मुख्य खेती अंगूर एवं स्ट्राबेरी की होती थी |पहाड़ो में खेती करना आसन नही हैं |काका जर अली अनाथ थे उनके निसंतान पिता  को वह रोते हूए बस स्टाप पर  मिले थे उस दयावान ने उन्हें  गोद ले लिया और बड़े प्यार से पाला था | काका का अपना भरा पूरा परिवार था सात बेटे दो बेटियां इकलोती पत्नी ,ईरान में कई शदियों का रिवाज हैं |उनके बड़े बेटे का नाम राघव था पूरा नाम मोहम्मद राघव सलवती ,राघव नाम पर हमें बड़ी हैरानी हुयी | काका ने बताया अस्पताल के नीचे से पहले  एक कच्ची  सडक तेहरान की तरफ जाती थी जहाँ दूसरे विश्व युद्ध में भाग लेने के लिए एक हिन्द की सेना( ब्रिटिश इंडिया) की टुकड़ी यहाँ ठहरी थी | इस टुकड़ी का नायक फारसी जानता था ब्रिटिश काल में हमारे यहाँ बहुत से लोग  अरबी , फारसी पढ़ना लिखना जानते थे| उस टुकड़ी के नायक से काका को बहुत प्रेम था काका कहते थे उस आगा (भद्र पुरूष )के सिर के पीछे बालों का गुच्छा था जिसमें वह गांठ बांध के रखते थे (चोटी)  | वह अपना खाना खुद बनाते थे और अपनी रसोई किसी को छूने नही देते थे खाना पकाने के बाद वह अपना पका खाना  मुझे भी खिलाते थे खाने में मिर्च ज्यादा होती थे पर मुझे खुश मजे (स्वाद )लगता था | उन्होंने मेरे घर का खाना कभी नही खाया जबकि मेरी पत्नी ‘नान’ (ईरानी रोटी ) बहुत बारीक़ बनाती हैं |मैं जब भी उसके लिए ले कर गया वह एक टुकड़ा तोड़ कर माथे पर लगा कर पेड़ की जड़ के पास रख देते हाँ मीवे (फल )थोड़े से ले लेते थे  | मेरे   पहले पुत्र का जन्म हुआ वह हमारे घर आये मैने  अपना बेटा उनकी गोद में दिया और कहा आप दानिश मंद (विद्वान) हैं मेरे बेटे का अच्छा सा नाम रख दीजिये उन्होंने खुदाई जुबान (संस्कृत) में कुछ कहा बच्चे के भाल पर लाल रंग लगाया आँख बंद कर उसके माथे पर हाथ रक्खा फिर खुदाई जुबान से एक छोटा सा तराना गाया और बच्चे का नाम राघव रखा| उनके लड़के का पूरा नाम मोहम्मद राघव सलवती था परन्तु घर का नाम राघव था |मैंने उनसे पूछा आप राघव का मतलब जानते हैं |उन्होंने कहा हाँ हिंदियों के खुदा को कहते हैं| उस आगा ने मुझसे कहा था तुम्हारा बेटा बहुत फरमाबदार होगा | मेरे  बेटे जैसा बेटा पूरे खूर्दिस्तान में नही है | काका को हमारी  सगे सम्बन्धियों  की तरह चिंता रहती थी क्योकि उस समय ईरान ,ईराक का युद्ध चल रहा था हमारा एरिया बार्डर के पास था दूसरा     खुर्दिस्तान की आजादी की आंतरिक जंग जिसमे हजारो जवान लड़के  जंगलो में बंदूके लेकर निकले हुए थे अकसर सेना के जवानो और पिश्मर्गों (उनके अनुसार क्रन्तिकारी, जो खुर्दिस्तान की आजादी के लिए जान हथेली  पर रखकर शहादत देने को तत्पर हैं ) मेरे पति को कुछ दिन के लिए दिल्ली आना पड़ा मुझे अकेले रहना था | वहां का  ऐसा सख्त कानून था जब तक मेरे पति घर पर  नही थे  मजाल है   कोई हमारे घर के  अहाते में आया हो वहां के लोगो में शराफत कूट-कूट  कर भरी थी | शाम को बच्चे अस्पताल के अहाते में खेलते थे  काका अपने घर जाते हूए हुक्म देते खानम खुदा हफिज  चलो घर के अंदर मैं उन्हें शब्बा ख़ैर कह घर  आ जाती |

मेरे पिता जी की मृत्यु हो गयी कुछ समय बाद ही हम हिन्द जा पाए एक माह बाद जब हम ईरान वापिस आये, मैं बहुत दुखी थी अचानक  मेरे पति ने मुझे आवाज दी “ काका जर अली तुमसे मिलने आये हैं| काका की अवस्था ८२ वर्ष थी  वह स्वस्थ थे उनकी कमर बिल्कुल सीधी थी |  मैं बाहर आई उन्हें सलाम किया  , उन्होंने मुझसे  खुर्द तरीके से पूछा हाले शुमा ख़ूबी , सलामती ( कैसी हो )मैने भी उनकी कुशलता की दुआ की उन्होंने  ‘नई फसल के पहले फल ‘कच्चे अखरोट  मेरी हथेली पर रख दिये तथा  उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा कनिष्का ,दुकतर (खुर्दी ,फारसी में इसका अर्थ बेटी) ईरान कल्चर में ज्यादातर स्त्री को खानम कहते हैं  यह सम्बोधन मैने कभी नही सुना था उनके  कहते ही मेरा मन भर आया| कुछ देर बाद अचानक जमीन से मिट्टी उठा कर अपनी हथेली पर रख कर फूंक मारी और कहा जिन्दगी हिच | मैंने समझा वह मेरे पिता का अफ़सोस कर रहे हैं| वह चल दिये, पहाड़ी रास्ते पर मैं उन्हें चढ़ता देखती रही उन्होंने आँखों से ओझल होने से पहले पलट कर देखा हाथ हिलाया न जाने क्यों मेरे मन में आया पुकारू ‘ काका रूक जाओ ‘ परन्तु कह नहीं सकी| अखरोट  हाथ में रख कर बैठी रही मुश्किल से दस मिनट बीते होंगे बेसमय मस्जिद से अजान की आवाज आई अर्थात किसी की मृत्यु  का संदेश , साथ ही पहाड़ी से कई लोगों के साथ  काका के बेटे उनकी पत्नी मातम करते हुये उतर कर आये उन्होने कहा आगा फौत (स्वर्गवासी )कर गये अंतिम समय वह आप से मिले थे उन्होंने क्या कहा था? मैने कहा हिच (कुछ नही )फक्त गिर्दू (अखरोट )और काका के अंदाज से मिट्टी हथेली पर रख कर उड़ा दी और चीखने लगी मुझे चुप कराना बहुत भारी था उनकी पत्नी ने कहा वह बाग़ से लौटे मैने चाय के लिये पूछा उन्होंने मना कर दिया और  अलाव के पास बैठ कर हाथ सेकने लगे  और  बस इतना कहा बिचारे खारजी (परदेसी ) हमारी सेवा के लिये आये हैं  यह लड़ाई न जाने कब खत्म होगी डॉ. की खानम  आज बहुत उदास थी उसके बाद पानी माँगा और सदा के लिए सो गये |मै अपने पिता के अंतिम समय में उनके साथ नहीं थी | अचानक हृदय गति बंद होने से वह सदा के लिए सो गये थे  |  एक अंजान काका मेरे अपने काका बन गये मैं  उस परिवार के साथ  उनके घर गयी उनके साथ बैठी रही जब तक उनको खाक के सपुर्द नही किया गया मैने पानी का एक घूंट नहीं पिया |अखरोट मैने फ्रिज में रख दिये|

ईरानी रिवाज के अनुसार मै कभी-कभी  बृहस्पतिवार के दिन काका की कब्र पर फूल चढ़ाने जाती |अखरोट फ्रिज में रक्खे, रक्खे काले पड़ कर सूख गये परन्तु मेरे लिये वह सदैव हरे थे |हमारा  अपने देश वापिस आने  का समय आ गया| मैं घर के पास बहने वाले रूदखाने  पर गई  जल की धारा में खड़े हो कर मैने वह अखरोट जल में प्रवाहित कर दिए साथ ही काका को जलांजलि दी | काका तो जन्नत नशीन हो गये परन्तु हमारे परिवार की यादों में सदैव  रहे | आज उनको याद करते हूए मेरी आँखों से आंसू निकल रहे है |

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