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धेनु रूप धरी हृदय बिचारी|गई तहाँ जहाँ सुर मुनि झारी||
निज संताप सूनायसि रोई |काहू ते कछू काज न होई ||
धरती माँ सब कुछ सह सकती है परन्तु पाप का बोझ नहीं सह सकती परन्तु कैसा पाप ?धरती ने शायद ऐसा ही पाप झेला होगा “ धरती का दोहन “ नदियों के किनारे पहले गाँव बसे और फिर बड़े –बड़े शहर बस गये पूरे शहर की गंदगी ,कारखानों का कूड़ा ,रसायनिक कारखानों का जहरीला कचरा नदियों में बहाया जाने लगा जिससे गंगा जैसी पतितपावनी नदी भी प्रदूषित हो गई |जिस जल में कभी दुर्गन्ध नहीं थी आज उस जल में स्नान करना ,आचमन करना मुश्किल हो गया है |बड़े शहरों में पानी की खपत बढ़ गई है धरती को गहरे से गहरा खोद कर पानी निकला जा रहा है घरो पम्प लगा कर आसानी से पानी लिया जा सकता है कई बार एक गिलास ताजा पानी पीने के लिए मशीन चला कर गैलन पानी बर्बाद कर दिया जाता है छिडकाव के नाम पर हाथ में पाइप ले कर घर के चारो तरफ छिडकाव करना घर के सामने सड़क तक धो डालना रोज का शुगल बन गया है |यह पानी कहाँ से आएगा कही- कही पर लोग पीने के पानी को तरसते हैं कई मील चल कर घर की जरूरत का पानी लाया जाता है आने वाले समय में जल का ऐसा संकट आ सकता है लोग जल के लिए आपस में लड़ेगे धरती कब तक अपना दोहन सहन करेगी |
हम वृक्षों के भी दुश्मन हैं जंगल जरूरत की लकड़ी के नाम पर कट रहें हैं लकड़ी के इस्तेमाल से हम अपने घरों को सजाते हैं |जंगल के ठेकदार हरे भरे जंगलो में आग लगा देते हैं हरी भरी प्रकृति कई दिनों तक धधकती रहती है इसी आग की आड़ में जंगल के जंगल काट लिए जाते हैं | घने जंगलों के ऊपर एक नमी रहती हैं जो बादलों को आकर्षित करती है जिससे घनघोर वर्षा होती है ,वर्षा भी अब कम होती जा रही है |वनों की गोद में जीवन दायनी ओषधियों के पेड़ पोधे फलते फूलते हैं अनेक जीवों का बसेरा होता है |वन जीवों को मार कर उनकी खाल विश्व बाजार में बेचीं जाती हैं शेर के सिर और हिरणों की खाल ड्राईंग रूम की शोभा बढ़ाते हैं घर के बाहर सरकार द्वारा लगाये बरगद,नीम, पीपल और कई तरह के वृक्ष हमे अच्छे नहीं लगते उन्ही वृक्षों को बोनसाई (छोटा कर )अपने घर में खास जगह लगाना चाहते हैं छोटे-छोटे सजावटी पोधे हमें अच्छे लगते हैं |
काला सोना अर्थात कच्चा तेल जिसको साफ कर रेल गाड़ियाँ,हवाई जहाज ,जहाज,करें ,तरह- तरह की मशीने चलाई जाती हैं और कारें पर सड़कों पर दोड़ती हैं उसके बचे कूड़े से साबुन तारकोल और प्लास्टिक बनाया जाता है |बचे हुये गंदे तेल से ठंडे प्रदेशों में घर गर्म किये जाते है |यहाँ तक ठीक है परन्तु घर में कई -कई गाड़ियाँ रखना एक-एक गाड़ी पर एक आदमी बैठा है लाल बत्ती पर गाड़ियों की लम्बी कतारें लग जाती हैं |,पब्लिक ट्रासपोर्ट का इस्तेमाल न कर केवल शान शौकत के लिए पेट्रोल फूकना प्रदूष्ण फैलाना जिसने धरती को गर्म कर दिया है और ऋतुओं पर भी असर पड़ने लगा है |धरती पर ओजोन की परत खराब होती जा रही हैं |प्रदूष्ण से कई बीमारियाँ बढ़ रहीं हैं छोटे-छोटे बच्चे साँस रोग के शिकार हो रहें हैं |अधिक से अधिक अनाज उपजाने के लिए कृत्रिम खाद का इस्तेमाल किया जाता हैं जनसंख्या बढती जा रही हैं सबका पेट भरना क्या आसन हैं जनसंख्या का विस्फोट विश्व को कहाँ ले जायेगा |
धरती का हम दोहन कर सकते है परन्तु जब वह करवट बदलती है “धरती कहती है यह नश्वर पुतले सोचते हैं इन्होने मेरे ऊपर अधिकार कर लिया ,खून की नदियाँ पार कर मुझे सीमाओं में बाट लिया ,एक –एक टूकड़े पर लड़ने वाले यह नहीं जानते मैं चाहूं तो सब कुछ उल्ट पुलट कर रख दूं मेरी छाती में धधकते ज्वालामुखियों से बहने वाले लावे में कई सभ्यतायें दब गई |जहाँ फटी वहीं हजारो लोग मुझमें समा गये मेरे सागर से उठने वाली लहरें सब कुछ बहा कर ले जाती हैं |हाल ही में ऐसी सूनामी लहरे आई जिन्होंने साऊथ ईस्ट एशिया के द्वीपों में मौत का तांडव मचा दिया कई युगों को लील कर आज भी मैं अपनी धुरी पर घूम रही हूं|” पृथ्वी को हरा भरा रक्खो प्रकृति का सम्मान करने से हो मानव सभ्यता जिन्दा रह सकती है | डॉ शोभा भारद्वाज
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