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मेरी बेटी विदेश में नामी गिरामी कालेज में पढ़ती थी उसने father’s day के दिन अपने पिता को धन्यवाद के लिए फोन किया उसके पिता ने उसको लिख कर जबाब दिया उसका कुछ अंश याद हैं | हम भारतीय हैं हम तो हर रोज अपने माता पिता के चरण छूते हैं आज की आधुनिक सभ्यता में भी जब तूम्हाया जन्म दिन होता है मेरे पैर छूती थी जब तुम बहूत छोटी थी तुम्हारी माँ कहती थी अपने पापा के पैर छूओ तुम बैठ कर अपने नन्हे हाथों से पहले एक पैर फिर दूसरा पैर छूती थी | जब भी तुम पेपर देने जाती या बड़ी होने पर कम्पीटीशन के पेपर देने जाती साथ के कम्पटीटर देख कर घबरा जाती मैं तुम्हे कहता न इधर देखो न उधर मेरा हाथ पकड़ो और तुम्हें सेंटर पर छोड़ आता जब तूम अपना पेपर पूरा कर बाहर आती फिर मेरे पैर छूती मैं समझ जाता मेरी बेटी अपने पेपर से संतुष्ट हैं | तूम आज भी जिस मुकाम पर हो यदि मैं तुम्हारे सामने पड़ जाऊ तूम सब कुछ भूल कर फिर से मेरे पैरों को छु लो गी | यही भारतीय संस्कृति है हर घर में माता पिता का सम्मान करना सिखाया जाता है | हमारे शास्त्रों में माँ,और पिता की तुलना देवताओ से की गई है जबकि हर कल्चर माँ को महत्व देता है पिता का केवल फर्ज माना जाता हैं हम माँ को धरती पिता को आकाश मानते हैं दोनों के संरक्ष्ण से बच्चा बड़ा होता है माँ के रक्त से बच्चा पलता है पर स्वस्थ बच्चा जन्म ले यह यत्न करना पिता अपना कर्तव्य समझता है वचपन में गोद में उठाना फिर कंधे की सवारी कराना हर दुख सुख का ध्यान रखना अपनी पॉकेट का ध्यान न रखते हुये बच्चे अच्छे स्कूल में एडमिशन कराना उसके कैरियर का ध्यान रखना ,अपनी सन्तान में अपने स्वप्न पूरे करने की कोशिश करना अंत तक सन्तान के कैरियर को ले जाना निस्वार्थ भाव से बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करने की कोशिश करना सपने टूटने पर भी अपने प्यार में कोई कमी न करना हर अच्छे बुरे में अपनी सन्तति का ध्यान रखना | पश्चमी सभ्यता में ज्यादातर बच्चे अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करते हैं उनकी शिक्षा बीच में ही छूट जाती है वह पहले पैसा इकट्ठा करते है फिर अपनी पढ़ाई शुरू करते हैं और कैरियर बनाते हैं |
परन्तु हमारे बच्चे भी अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं आज तो बेटियां भी अपने माँ बाप का ध्यान रखती हैं हमारी संस्कृति में माता पिता को मरने के बाद भी नहीं भूलते उनकी पुन्य तिथि पर उन्हें याद करना ब्राह्मणों को भोजन कराना या कोई उनके नाम पर सद्कर्म करना | श्राद्ध के दिन शायद ही कोई हिन्दू घर होगा जो अपने माता पिता को भूलता होगा यही नहीं अमावस्या की शाम को उत्तर दिशा की एक दिया रख कर कोई मीठे सामान के साथ जल की धारा डालते हुये हम अपने पित्तरों को विदा देते हुये उदास हो जाते हैं | हम किसी भी तीर्थ स्थान पर जाते हैं वह अक्सर लोग अपने पुरखों के बारे में पूछते हैं उनसे पहले कौन आया था पंडे के भी बही खाते में अपने पिता या पितामह का नाम लिखाते हैं
हमारा हर दिन father ‘s day है |बेटी ने अपने कालेज के नोटिस बोर्ड पर यह पत्र लगा दिया एक अपनी पढ़ने की मेज के सामने | न जाने कितने विद्यार्थियों ने उस पत्र को अपने सेल मे रख लिया और उस लड़की को ढूँढा जिसने नोटिस बोर्ड पर इस पत्र को लगाया था उनमें भारतीय संस्कति के बारे में जानने की बहूत जिज्ञासा थी बह भारतीय माता पिता और बच्चों के आपसी सम्बन्धों के बारे में जानना चाहते थे( यह स्कूल हार्वर्ड बी स्कूल अमेरिका था ) हमारे संस्कारों में कहीं भी फादर्स डे नहीं है डॉ शोभा भारद्वाज
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