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हमारे अपने “मृत्यु लोक के प्राणी “

Vichar Manthan
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आज कल श्राद्ध के दिन चल रहे हैं हम अपने पितरों को याद करते है उनकी तिथि पर पंडितों को भोजन कराते हैं साथ में मिष्ठान परोसते हैं यही नही पंडित जी के चरण स्पर्श कर उन्हें दक्षिणा दे कर विदा करते हैं |अपने पुरखों की याद में पुराने लोग बहुत भावुक हो जाते हैं उन्हें लगता है वाकई उनके पूर्वज घर पधारे हैं इस लिए घर की महिलाये घर की देहरी को पानी से धो कर अल्पना बनती हैं | अमावस्या के दिन साँझ को पितरों को सम्मान के साथ विदा भी किया जाता है घर का बेटा अर्थात मालिक एक दिया जला कर उसके साथ कुछ मीठा उत्तर दिशा में रखता है कुछ दूर तक लोटे से जल भी अर्पित करते हैं | पुरखों को जाते समय कोई कष्ट न हो उनका मार्ग रोशन रहे उनके कुल दीपक ने दिया जलाया है राह के लिए जल और कुछ मीठा भी है | सन्तान अपने पूर्वजों को सदैव याद रखे इसी लिए उनके जन्म पर ख़ुशी मनाई जाती है खास कर पुत्र के जन्म पर |
कुछ लोग इसे पंडितो का ढकोसला कहते है वह स्वयं श्राद्ध नही करते दूसरों को भी हतोत्साहित करते हैउनके अपने तर्क हैं जो मर चुका है क्या वह खाने के लिए आता हैं हमें श्राद्ध नहीं बजुर्गों के प्रति श्रद्धा दिखानी चाहिए | चाहे जीते जी हमने अपने बजुर्गों को पूछा नही अब हम पंडितों की पंगत बिठा कर भोजन करा रहे है| ‘ शाहजहाँ को ओरंगजेब ने कैद कर लिया और बादशाहत हासिल कर ली बूढ़े बादशाह अपने पुत्र की कैद में आठ वर्ष तक जिन्दा रहे अंतिम वर्ष में एक दिन नहर का जल जिससे पीने का जल आगरा के किले में सप्लाई होता था बंद कर दिया गया बादशाह के घड़े में पीने का पानी नहीं था | शाहजहाँ ने बादशाह ओरंगजेब को खत लिखा ‘हे बादशाह एक दिन मैं भी हिन्दोस्तान का बादशाह था आज मैं पीने के पानी के लिए तरस रहा हूँ काफ़िर अपने मरों के नाम पर पानी भोजन देते हैं तुम मुझे जीते जी पीने के पानी के लिए तरसा रहे हो रहम कर’ तुरंत पीने का पानी शुरू कर दिया गया ‘| जो पितर बन गया उसे कुछ नहीं चाहिए हम तो एक जलांजली उसकी याद में दे दें क्या यह ढकोसला होगा ?
विश्व युद्ध के १०० वर्ष पूरे हो गये सेना और युद्ध मे समी मरने वाले लाखों लोगो के सम्मान में 1st अगस्त को पूर विश्व में रौशनी कम की गई उन अंजान आत्माओं के लिए जो समय से पूर्व मृत्यु की गोद में सो गये |
विश्व की हर संस्कृति और धर्मों में पूर्वजों को सम्मान दिया जाता हैं हाँ ढंग अलग हो सकता है चीन जापान या समझ लीजिये जहाँ भी बोद्ध धर्म का प्रभाव है पूर्वजों को बहुत सम्मान दिया जाता है | बोद्ध धर्म की मान्यता है पूर्वजों की आत्मा पृथ्वी पर आती है इसे वह Obon ( festival of death) कहते हैं इस दिन को दुःख का दिन मानते हैं |पूर्वजों के लिए खास प्रकार का खाना बना कर घर के बाहर या मन्दिरों के बाहर रखते हैं |पूर्वजों को घर का रास्ता दिखाने के लिए घर के बाहर रात के समय पेपर लैम्प जलाये जाते हैं | पूर्वजों को सम्मान से विदा भी किया जाता है रात के समय नदी पर जा कर कागज की नाव पर मोमबत्ती जला कर नदी में प्रवाहित की जाती है सैकड़ों पूर्वजों को राह दिखाने वाली नावें नदी में प्रवाहित होती हैं बड़ा ही खुबसूरत नजारा होता है वह मानते हैं उनके पूर्वज रास्ता न भटकें आराम से मृत्यु लोक लौट सकें | कुछ लोग चीन में अपने पूर्वजों के tomb (समाधि या ताबूत ) पर जा कर उसकी सफाई करते हैं और वहाँ खाना रखते हैं |
ईसाई लोग अकसर अपने लोगों की कब्र पर जाते है फूल रख कर कुछ दर्दीले भाव व्यक्त करते हैं| कैथोलिक समाज में यह मानते है हर व्यक्ति अपने जीवन में जाने अनजाने में कोई न कोई गलती कर देता है एक खास दिन जिसे वह All Souls’Day and All Saints’ Day कहते हैं (यह ख़ुशी का पर्व नहीं है ) इस दिन कैथोलिक क्रिश्चियन पूजा करते हैं उनके किसी संत की आत्मा यदि नर्क में है जो उनकी जानी या अनजानी भूल का परिणाम है उनकी आत्मा को शांति मिले वह स्वर्ग जाये | पूरे विश्व का कैथोलिक क्रिश्चियन समाज इस दिन में विश्वास करते है |
मक्सिको का Day of Dead बहुत प्रसिद्ध है |मक्सिको का समाज इस दिन हड्डियों के कंकाल बना कर उन मूर्तियों को अपने घरों में सजाते हैं यह तरह –तरह के हड्डियों पर टोटके करते हैं | घर में शानदार मीठे केक बनाये जाते हैं उन्हें भूत प्रेत के आकर से सजाते हैं यह पर्व एक दिन या एक सप्ताह तक मनाते हैं जब से मक्सिको में स्पेन के प्रभाव से क्रिश्चेनिटी आई है इस पर्व में क्रिश्चानिटी फ्लेवर भी दिखाई देता हैं |
कोरिया में तीन दिन तक सरकारी छुट्टी होती है और पूर्वजों को याद किया जाता है इस दिन को Chuseok का नाम दिया है लोग अपने पारिवारिक घर (जद्दी घर ) जाते हैं और चावल का मीठा केक बना कर घर से बाहर छोड़ दिया जाता है वहाँ मान्यता है The hungry Ghost की आत्मा असली दुनिया में एक बार जरुर आती है |
जौराष्ट्रियन दस दिन तक अपने पूर्वजों को याद करते है इसे दुःख के दिन समझा जाता है |
हमारे जान पहचान के मुस्लिम थे अली साहब उनकी पत्नी का उनसे पहले देहांत हो गया वह रोज शाम को एक पत्तों का झाड़ू बना कर अपनी पत्नी की कब्र साफ़ करने जाते थे यदि किसी दिन नहीं जा सकते थे अपने पोते को भेजते थे और कहते थे जल्दी जाओ तुम्हारी दादी मेरा इंतजार कर रही होगी उन्हें बताना मैं बीमार हूँ |ख़ैर यह भावना की बात है |
ईरान की संस्कृति में ब्रहस्पतिवार का दिन पूर्वजों की कब्र पर कब्रिस्तान जाने का दिन माना जाता है कब्रिस्तान पर गाड़ियों और मिनी बसों की लम्बी कतार लगी रहती है लोग अपने पूर्वजों की कब्र पर फूल चढ़ाते थे उन्हें याद कर रोते थे उनके बारे में बात करते हैं उन कब्रों में अपने माता पिता ही नही दादा दादी नाना नानी और अन्य बुजुर्गों या अपने मृतकों की कब्र पर उन्हें किया जाता है यह नियम हर वर्ग १स्तके लोग मानते हैं | हाँ वह कुछ ऐसे कब्रिस्तान हैं जिसमें जाना वर्जित था यहाँ आजादी के दीवाने मुजाहिदीन सोये हुए हैं जिन्होंने ईरान के शाह का विरोध कर अपने देश में प्रजातंत्र व्यवस्था लाने के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी थी | ईरान के शाह देश की मिट्टी को चूम कर अपना वतन छोड़ कर चले गये उन्हें ईरान की धरती पर दो गज जमीन नहीं मिली | देश में राजतन्त्र समाप्त हो गया | क्या देश आजाद हुआ ? क्या ईरान में ताना शाही से लोगो को छुटकारा मिला ? ‘नहीं’ प्रजातंत्र के स्थान पर इस्लामिक सरकार आ गई | जिस स्वतन्त्रता के दीवाने ने विरोध किया या जिसका नाम आन्दोलनकरी की लिस्ट में था उन्हें मार कर ( फांसी या गोली ) कफिराबाद ( खास कब्रिस्तान , इस्लामिक सरकार के अनुसार जो काफ़िर हो गये हैं उनकी कब्रें ) में गाड़ दिया जाता था उनकी कब्र पर कोइ रोने नहीं आएगा जो आयेगा वह अपराधी माना जायेगा| इन कब्रिस्तानों पर भी ऋतुये गुजरती थी लेकिन सूखे वृक्ष जिन पर चिड़िया भी नही चहचहाती थी केवल साय – साय की आवाज आती थी | जब भी बसें उधर से गुजरती थी अनजाने में ड्राइवर ब्रेक लगा कर लम्बी सांस लेते थे यहाँ वह सोये हैं जिनके सब हैं परन्तु उन्हें उनके अपनों की कब्र पर एक आंसू भी गिराने की इजाजत नहीं है तब हर बार मुझे बहादुर शाह जफर की लाइनें याद आती थी
हुए दफन जो कि हैं बे कफन ,उन्हें रोता अब्रे बहार हैं
फरिश्ते पढ़ते हैं फातिहा ,न निशान है न मजार है डॉ शोभा भारद्वाज

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