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कोच्ची से शुरू हुआ प्यार करने की आजादी का एक सफर जो आर.एस .एस दफ्तर, जे.एन . यू कैम्पस से और आगे जाने को तैयार है |यह वाकई प्यार करने की आजादी है या राजनीति जल्दी ही लोकप्रियता पाने की सस्ती तकनीक या किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा युवाओं को बहकाना |इन युवाओं का तर्क है प्यार करना उनका मौलिक अधिकार है| वह कहाँ प्यार का इजहार करें ? रेस्तरां,पार्कों में या कहीं भी उन्हें रोका जाता है और उन्हें रोकने वालों की दादागीरी पसंद नहीं है कुछ दिन पहले मैं और मेरे पति मेट्रो से जा रहे थे एक लड़की अपने साथी के गले में दोनों बाहें डाल कर खड़ी थी भीड़ का समय था चारो तरफ लोग देख रहे थे कुछ गावं से आये मजदूर लोग भी सफर कर रहे थे उनकी नजरों में हैरानी थी | हमारा कानून और समाज इस व्यवहार की इजाजत नहीं देता |हम समाज में ही रहते है हाँ जंगल में कोई कानून नहीं होता परन्तु वहाँ सुरक्षा नहीं होती |समाज ने विवाह संस्था को तोड़ने वालों को लिव-इन रिलेशन में रहना सह लिया परन्तु जब साथी धोखा देता हैं रोने के लिए माँ बाप का कंधा ढूढ़ते है इनके डिप्रेशन को समाज के लोग सहते हैं मित्र साथी इन्हें दुःख से उबारने की कोशिश करते हैं | संकट आने पर या कोइ अनहोनी होने पर कानून की शरण में जाते हैं | वही कानून जब अंकुश लगाने की कोशिश करता हैं इन्हे आजादी याद आती है | प्रेम इतना सस्ता कैसे हो गया |
कबीर दास ने कहा था –यह तो घर है प्रेम का , खाला का घर नाहिं
सीस कटाए भुही धरे ,तब पैठे इहि माहि
जितने भी युवा kiss of love के समारोह में लड़का- लडका , लडकी –लडकी और लड़का लडकी प्रेम का प्रदर्शन कर रहे थे क्या यह अपने भतीजे ,भतीजियों भांजा भांजी या परिबार के नन्हें बच्चों के सामने यह प्रदर्शन कर सकते हैं? जब वह आपसे प्रश्न करेंगे बुआ या मौसी , मामा , चाचा या भईया आप क्या कर रहे हो उन्हें कैसे समझाओगे आप क्या कर रहे हो और क्यों कर रहे हो और ठीक कर रहे हो? आपके प्रेम का पार्कों में प्रदर्शन करने पर एतराज किया जाता है इसे आप ,अपनी आजादी का हनन मानते हैं क्या यह बच्चों की मासूमियत का हनन नहीं है? आप दूसरों के बच्चों के सामने ऐसा प्रदर्शन कर रहें है वहाँ बजुर्ग भी बैठते हैं क्या यह संसार केवल नौजवानों का है |हमारी संस्कृति , सभ्यता दर किनार कर दीजिये परन्तु अपने दिल पर हाथ रख कर उत्तर दें क्या यह प्रदर्शन उचित है |125 करोड़ की आबादी हैं गरीबी है लोग रोजी रोटी की खोज में बड़े शहरों में आते हैं कई ऐसी गरीब बस्तियां हैं जहां एक कमरे में दस –दस लडके रहते हैं वह अपने परिवार को रोटी देने के लिए बड़े शहरों में आये हैं जिनके भविष्य का पता नहीं हैं क्या उन बस्तियों में भरे पेट के लोग यह प्रदर्शन करेंगे ?
यह समय कैरियर के निर्माण का समय है एक युवा ने पैरों पर खड़े हो कर अपना परिवार पालना है एक लडकी को एक अच्छे कैरियर की तलाश है,उसके भविष्य के लिए ऊचें सपने हैं उन्नति के अवसरों की भी कमी नही है हर क्षेत्र में लडकियाँ चैलेंज ले रही हैं और यही समय है पढ़ कर जीवन बनाने का उसमें इन प्रदर्शनों का समय ही कहाँ है |खुजराहो की बात की जाती है यह भरे बाजार में नहीं है |
डॉ शोभा भारद्वाज
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