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पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह जी मौन ही रहेंगे

Vichar Manthan
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‘डॉ मनमोहन सिह जी मौन ही रहेंगे
हिंडाल्को को कोयला ब्लाक आबंटन के मामले में गडबडी हुई है अत : सी.बी.आई. की विशेष अदालत नें पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह जी को समन जारी किया गया जिसका कांग्रेस ने विरोध किया |डॉ मनमोहन सिहं की छवि एक योग्य अर्थशास्त्री ईमानदार चुपचाप काम करने वाले चिंतक की रही है जिन्होंने नरसिंघा राव के समय में सफलता पूर्वक वित्त मंत्री के पद पर रहते हुए देश को नई दिशा दी थी, लेकिन डॉ मनमोहन सिंह के काल में जम कर घोटाले हुये कुछ लोग इसे घोटाले का काल कहते हैं एक ईमानदार प्रधानमंत्री नें इसका विरोध नहीं किया, ऐसी क्या मजबूरी थी ? घोटाले करने वालों पर अंकुश क्यों नहीं लगाया गया ?वह कौन सी सत्ता थी जिसने उन्हें मौन रहने पर विवश किया ?एक प्रेस कांफ्रेंस में डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था ‘ इतिहास उदारता पूर्वक मेरा मूल्यांकन करेगा |’
२००४ में कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं था लेकिन १६ दलों के समर्थन से सरकार बनी |सोनिया जी यूपीए की चेयर पर्सन थी |सोनिया जी चाहते हुए भी विदेशी मूल का विषय उनके प्रधान मंत्री पद में बाधक था परन्तु उनकी सन्तान के लिए नही था | सोनिया जी अपनी दो संतानों में पहले पुत्र राहुल गाँधी को भविष्य में प्रधान मंत्री पद पर आसीन होते देखना चाहती थी जो अभी अनुभव हीन थे जनता को स्वीकार्य नहीं होते अत :उनकी नजर में डॉ मनमोहन सिंह सबसे उपयुक्त थे वह अल्पसंख्यक वर्ग के थे तथा वह सिख थे ,चौरासी के दंगों का दाग भी कांग्रेस के ऊपर था | डॉ मनमोहन सिंह किसी के लिये कष्ट का कारण नहीं बन सकते थे उनके घर के बाहर सुरक्षा के लिये नियुक्त कांस्टेबल के लिए भी आराम ही आराम का समय होता था | वह काफी समय तक ब्योरोक्रेट रहे हैं अत : उनमें एक आज्ञाकारी नौकरशाह के गुण भी भरपूर थे |उनकी तीन पुत्रिया हैं जिनमें राजनितिक महत्वकांक्षा भी नहीं हैं इस लिये जिस तरह परिवार वाद की राजनीति चल रही है ,अपनी सन्तान, दामाद , भाई ,भतीजों और भांजों के लिये लोक सभा के चुनाव के लिए टिकट मांगना चुनाव जितवाने का पूरा प्रयत्न करना यदि सांसद बन जाने पर उनके लिए मंत्री मंडल में जगह दिलवाना ,यहाँ ऐसी कोई परेशानी नहीं थी | मनमोहन सिहं जी बिलकुल रामायण के चरित्र “भरत “जैसे थे नेहरू जी के वंशजों का सिहासन बिल्कुल सुरक्षित रहता |
|मनमोहनसिंह जी ने कभी लोक सभा का चुनाव नहीं लड़ा था | वह राज्य सभा के सदस्य थे ,तथा कांग्रेस की और से विपक्ष के लीडर भी रहें हैं | सोनिया जी के प्रधान मंत्री पद के लिए इनकार करने के बाद कांग्रेस में शानदार राजनैतिक ड्रामा शुरू हो गया हर कांग्रेसी नेता उनसे पद सम्भालने की प्रार्थना कर रहा था बाहर चाटूकारो की भीड़ थी |अफ्फाहों का बाजार भी गर्म था अंत में सोनियाजी जी का मौन टूटा उन्होंने मनमोहन सिहं का नाम प्रस्तुत किया और वह सौलह दलों के समर्थन के पेपर को ले कर वह राष्ट्रपति महोदय की स्वीकृति लेने मनमोहनसिंह जी के साथ राष्ट्रपति भवन गई | २२ मई २००४ को डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधान मंत्री पद की शपथ ग्रहण की |सोनिया जी के त्याग के चर्चे किये जाने लगे उनका कद पहले ही बहुत बड़ा था अब तो कहना ही क्या था |देश में दो सत्तायें थी एक यूपीए अध्यक्षाजी जी की सत्ता ,दूसरी मनमोहन सिह जी की सरकार की सत्ता (मंत्री मंडल ) | जिन्होंने देखा वह जानते हैं जब भी प्रधानमंत्री अपने आफिस आते थे उनके हाथ में आवश्यक फाइल होती थी पीछे उनका ड्राइवर उनका खाना ले कर आता था वहां कोई हलचल नहीं होती थी पर जब सोनिया जी आती थी नेता गण ऐसे भागते थे डर लगता था आपस में टकरा कर गिर न जाएँ कहीं नमस्ते करने की होड़ में वह कहीं पिछड़ न जाये | इतनी जी हजूरी बस पूछिये मत | मैडम को अपनी भक्ति दिखाना जैसे जीवन का सबसे बड़ा धर्म है , समझ आ जाता है कि कौन सत्ता का केंद्र है |
मनमोहन सिंह जी ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए उनकी नीति आर्थिक उदारी करण थी आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में दुनियाभर में उनकी सराहना की गई | उन्होंने किसानों के हित में कृषि का समर्थित मूल्य बढ़ाया , गाँधी जी का स्बप्न था सबको रोजगार मिले डॉ मनमोहन सिंह के प्रयत्नों से ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शुरू की गई | जिसमें वर्ष भर में १०० दिन का रोजगार प्रदान करने का सुझाव था उनकी योजना होते हुए भी कांग्रेस जनों ने राहुल जी के द्वारा सुझाई योजना सिद्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी ,हवाई अड्डों को निजी हाथों मे सौपा गया जिससे उनका सौंदर्यीकरण हूआ सुविधायें बढ़ी और विदेशी टूरिस्ट भारत की और आकर्षित हुये |अर्थ व्यवस्था पर बोझ बने कई पब्लिक सेक्टर को निजी हाथों में सौपा जिससे उनका घाटा कम हूआ | नोजवानों के रोजगार के अवसर बढ़ाने का प्रयत्न किया, आर्थिक मंदी के दौर में भी विदेशी निवेश कम नहीं हूआ डॉ मनमोहन सिहं पर यह आरोप लगाया जाता था वह प्रो अमेरिकन हैं परन्तु उन्होंने अमेरिका और रूस दोनों से सम्बन्ध बढाये| उर्जा के क्षेत्र में उन्होंने परमाणू समझौता किया जबकि विपक्ष और यू पी ए को समर्थन देने वाले वाम पंथी दल इस समझौते के खिलाफ थे इस समझौते के अनुसार अमेरिका भारतीय परमाणू संयंत्रों पर निगरानी रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी को यह कार्य सौंपना चाहता था| अमेरिकन सीनेट में यह समझौता पास हो गया ,बाम पंथी दल समझौते के खिलाफ थे उन्होंने सरकार से समर्थन खीचने की धमकी दी | सोनिया जी बामपंथी दलों की धमकी से परेशान थी वह सरकार का गिरना ठीक नहीं समझती थी | डॉ मनमोहन सिहं अड़ गये उन्होंने इस्तीफे की धमकी तक दे डाली , अंत में मध्यम मार्ग निकाला गया |तय यह हूआ भारत में 22 संयंत्रों में से केवल १४ की निगरानी होगी आठ सैनिक महत्व के संयंत्रों की निगरानी नहीं होगी | बाम पंथी दलों ने समर्थन खीच लिया परन्तु श्री मुलायम सिंह के दल से समर्थन माँग कर सरकार बचाई गई |अपनें में मनमोहन सिंह इतने कमजोर नहीं थे और यह समझौता संसद में पास हो गया |
२०१४ के चुनाव के आते आते खाद्य सुरक्षा बिल पास हूआ जिसका सारा श्रेय सोनिया जी एवं उनके सपुत्र राहुल गाँधी को दिया गया |सभी जानते हैं जब कोई ठोस निर्णय प्रधान मंत्री कार्यालय से लिया जाता जिस पर हो हल्ला मचता सोनिया जी उस निर्णय को वापिस ले लेतीं| डॉ मनमोहन जी के पूरे कार्य कल में हर मंत्री अपने आप को सोनिया जी के प्रति उत्तरदायी और वफादार सिद्ध करने में गौरव महसूस करता था| दागी मंत्रियों को चुनाव में कुछ फायदा देने के अध्यादेश को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी ,यह अध्यादेश उचित नहीं था इसके विरोध का भी एक तरीका था सब सत्ता सोनिया जी के ही हाथ में थी लेकिन उनके सपुत्र राहुल गाँधी ने जिस समय चैनल में कांग्रेस प्रवक्ता अध्यादेश पर सफाई पेश का रहे थे आकर अपना मत रख कर उसे फाड़ दिया इससे राहुल गाँधी का कद भी ऊचा नही हुआ हाँ प्रधान मंत्री की किरकिरी जरूर हूई यह अध्यादेश राष्ट्रपति के पास जाता वहीं राष्ट्रपति उसे रोक लेते |
चुनाव का समय था कांग्रेस चुनाव प्रचार में लगी हूई थी तभी प्रधानमंत्री के पूर्व मिडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी पुस्तक ‘ द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ पुस्तक का विमोचन किया पुस्तक में संजय बारू ने दावा किया मनमोहन सिहं ने मेरे पास स्वीकार किया था ‘सत्ता का केंद्र कांग्रेस अध्यक्षा के पास था उनसे गलतियाँ तब हूई जब सोनिया गाँधी और कांग्रेस ने उनके फैसले में हस्तक्षेप करना शुरू किया | २००९ की जीत को वह अपने कार्यों की जीत मानते थे उन्होंने माना प्रधान मंत्री कोई भी नियुक्ति स्वतंत्र रूप नहीं कर सकते जैसे , वह श्री रंगराजन को वित्त मंत्री बनाना चाहते थे परन्तु सोनिया जी की पसंद प्रणव मुखर्जी थे |आगे श्री बारू ने लिखा है २००९ के चुनाव के बाद प्रधान मंत्री ए.राजा और टी .आर .बालू को मंत्री मंडल में शामिल नहीं करना चाहते थे परन्तु पार्टी के दबाब में उन्हें ऐसा करना पड़ा ‘|प्रधान मंत्री के आफिस की फाइल सोनिया जी के पास जाती थीं जबकि यह पद की गोपनीयता की शपथ के खिलाफ था |
विरोधियों में खास कर भाजपा नें पुस्तक पर कहा वह पहले ही कहते थे मनमोहन सिहं नाम मात्र के प्रधान मंत्री हैं सत्ता सब सोनिया जी के पास है इस पुस्तक से प्रधान मंत्री की छवि अवश्य खराब हूई , घोटालों से कांग्रेस पहले ही बदनाम थी जनता कांग्रेस से विमुख हो रही है चुनाव में विपक्ष के हाथ में शानदार मुद्दा आ गया चौतरफा हमला होने लगा है उनके प्रश्नों का उत्तर देना मुश्किल हो रहा है | डॉ मनमोहन सिंह का समय सत्ता के दो केन्द्रों का काल , भ्रष्टाचार, घोटालों ,महंगाई प्रधान मंत्री का निर्णय न लेना या निर्णय लेने में देरी आदि के लिए जाना जा रहा है ,परन्तु उनकी ईमानदारी पर किसी को शक नहीं है | इतिहास में उन्हें एक अर्थशास्त्री ,चिंतक और ईमानदार डॉ मनमोहन सिंह के रूप में भी जाना जायेगा उनके विद्यार्थी एक विद्वान् गुरू के रूप में याद रखेंगे |विश्व के शिक्षा जगत में वह सदैव सम्मानित रहेंगे |
डॉ शोभा भारद्वाज

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