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पारसी समाज तथा ईरान के बाशिंदों को नौरोज की मुबारक बाद

Vichar Manthan
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पारसी समाज को नोरोज की शुभ कामना

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ईरान के मूल बाशिंदे ( पारसी समुदाय )के लोग अग्नि की पूजा करते थे यहाँ तीन प्रकार की पवित्र अग्नि मानी जाती है आज भी ईरान के ‘यज्द ‘ शहर में फायर टेम्पलेट है |पर्शिया में 16वीं शताब्दी में ईरान के शाह ने इस्लाम कबूल कर लिया , वहाँ के मूल बाशिंदों जौराष्ट्रीयन पर धर्म परिवर्तन का दबाब पड़ने लगा अत :ज्यादातर जौराष्ट्रीयं ने अपना वतन छोड़ कर भारत की शरण ली वे सदा के लिए यहाँ बस गये आज यह दूध में पानी की तरह घुल मिल गये हैं केवल 20%प्रतिशत पारसी ईरान में बच गये लेकिन इस्लामिक क्रांति के बाद वह फिर अपना वतन छोड़ने के लिए बाध्य हो गये | पारसियों का नव वर्ष सोलर हिजरी कलंडर के अनुसार बहार (बसंत ) का पहला दिन है जिसे २१ मार्च को पारसी समाज एवं कई देशों में नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है |
ईरान में सबसे ख़ुशी और धूमधाम से मनाया जाने वाला त्यौहार है | नौरोज का इतिहास ३००० वर्ष पुराना है ईरान के शाह राजसी वस्त्र धारण कर शाही सिंहासन पर गेहू की मुट्ठी भर बालों ले कर दरबार में बैठते थे उन्हें सबसे पहला दरबारी स्वर्ण पात्र में मदिरा ( सोम रस )देता था फिर उपहार में सोने के सिक्के ,एक सोने की अंगूठी , तलवार और धनुष पेश किया जाता था पूरा दरबार ईश्वर की पूजा कर उसकी सत्ता का बखान करता था बाद में शाह की प्रशंसा की जाती थी यह शाही दर्शन का दिन था | नव वर्ष की खुशी में कैदियों को छोड़ दिया जाता था |
समय बीतता गया आज भी नौरोज परम्परागत रूप से ही मनाया जाता है इस दिन की तैयारी कई दिन पहले शुरू हो जाती है पूरे घर को साफ कर उसे सजाया जाता है | हमारे यहाँ भी पारसी समाज रहता है वह बहुत धूम धाम से नौरोज के त्यौहार को मनाते हैं | टर्की ,इराक सीरिया और ईरान के काफी हिस्से में खुर्द लोग रहते हैं | खूर्द् एक आजाद खूर्दिस्तान बनाने का स्वप्न देखते हैं | उनका नौरोज मनाने का तरीका कुछ अलग है , खुर्द नोरोज से एक दिन पहले गोरूब ( शाम के ) के समय अग्नि जलाते थे उनके अनुसार एक दिन पहले आग जलाना अंधकार पर विजय प्राप्त करना है , आग के चारो तरफ शानदार खुर्दी वस्त्र अर्थात ,महिलायें लम्बा अंगरखा और नीचे सलवार पहनती थी और मर्द खुर्दी लिवास कमीज और ढीली सलवार पहनते थे कमर में पट्टा बांधते थे हाथो में रंग बिरंगे रूमाल ले कर उन्हें लहरा -लहरा कर आग के चारो तरफ रक्स (डांस )करते थे ईरान में इस्लामी सरकार आने के बाद इस प्रथा पर बैन लग गया है आग जलाना और रक्स करना धर्म के विरूद्ध माना जाता है फिर भी दूर किसी पहाड़ी पर नौरोज से पहले दिन आग जलती दिखायी देती थी वह आग पर से दूसरी तरफ कूद कर निकल जाते थे |
ईरान में हर प्रकार का मौसम है गर्मी भी है और बर्फ भी पड्ती है अत :बहार के मौसम में कहीं -कहीं फसल पक जाती है ,वहाँ नई फसल की खुशी में ,और बर्फीले प्रदेश में बर्फ गिरने से पहले गोन्दुम ( गेहूं) बो दिया जाता है बीज बर्फ के नीचे दबा रहता है लेकिन बहार आते ही उनमें अंकुर फूट जाते हैं | यहाँ पूरी घाटियां फूलों से भर जाती है जमीन पर मुख्यतया लाल फूल और उनके बीच में हर रंग के फूलों का गलीचा बिछ जाता है प्रकति की ऐसी छटा देखने लायक होती है| घाटियों में चारो तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती है , पेड़ फूलों से लद जाते हैं फल दार पेंड़ो पर लगा हर फूल, फल होता है ऐसा लगता है जैसे प्रकृति भी नये वर्ष का स्वागत कर रही है | यह त्यौहार सुबह शुरू हो जाता है मैने दस नौरोज की शुभ कामनाओं का आदान प्रदान किया हैं अर्थात मैं दस साल परिवार सहित ईरान में रही हूँ | | हर घर के मेहमान खाने में एक स्थान को विशेष रूप सजाया जाता है , नौरोज से दो हफ्ता पहले चीनी मिट्टी के खूबसूत फूल पत्तियो से सजे कटोरे में गोन्दुम(गेहूं ) या जौ बोया जाता है नौरोज के आते -आते हरी -हरी बालें उग आती है | घर के बीचो बीच रक्खी मेज पर खूबसूरत मेज पोश बिछाया जाता उस पर अंकुरित कटोरे को रख दिया जाता है यह कटोरा और उगी बालों को पौधों एवं वनस्पतियों का प्रतीक माना जाता है मेज पर पूरी सात वस्तुएं सजाई जाती हैं | एक फ्रेम दार शीशा ,जिसे आकाश का प्रतीक माना जाता है , सीब (सेब)धरती का प्रतीक है हरे कांच के पात्र में मोम बत्तियां सजाई जाती हैं जिन्हें अग्नि का प्रतीक माना जाता है | पात्र में गुलाब जल भर कर रक्खा जाता है यह पानी का प्रतीक है, गोल्ड फिश को पतले कांच के जार में रक्खा जाता है जो पशु का प्रतीक हैं, बड़ीं खूबसूरती से अंडे पेंट कर उन पर चित्र बनाये जाते हैं यह इंसानी जीवन एवं परिवार की वृद्धि की शुभ कामना का प्रतीक हैं |जीवन के पांचो तत्व आकाश ,अग्नि वायू ,जल ,पृथ्वी सब को महत्व दिया जाता है |
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पूरे परिवार के लोग मेज के चारो तरफ खड़े हो जाते हैं | पवित्र पुस्तक को सम्मान दे कर परिवार एक दूसरे के सुखद जीवन की दुआ मांगते हैं और नये वर्ष की शुभ कामना करते हैं ,घर का बुजुर्ग सब को उपहार देते हैं आज भी वहाँ सोने के सिक्के भेंट किये जाते हैं , एक दूसरे को शीरीन ईरानी मिठाई खिलाई जाती है मेरे समय में पेस्ट्री का चलन था | लेकिन वह अपनी प्राचीन परम्परा को भी कभी नहीं भूले थे अत : सब्जे (अंकुरित गेहूं और जो की हरी हरी कोमल बालो की मिठाई ) ,जिसे वहाँ पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है बनाते हैं | इस्लाम में पुनर्जन्म की धारणा नहीं है परन्तु परम्परा इसी प्रकार से चल रही है गेहूं का मीठा दलिया ,जिससे माना जाता है आपका और आपके परिवार का प्रभाव बढ़ेगा ,सूखे मेवे ,जो प्रेम को बढ़ाते हैं ,लहसून को दवाई का प्रतीक माना जाता है सेब सुंदरता को बढ़ाएगा ईरानी सुंदरता का तो ,जो प्रेम को बढ़ाते हैं ,लहसून को दवाई का प्रतीक माना जाता है सेब सुंदरता को बढ़ाएगा ईरानी सुंदरता का तो कॊई जबाब ही नही है और सिरका यह आयु को बढ़ाने वाला माना जाता है | सभी वस्तुऐं खूबसूरत कांच की तश्तरियों में सजा कर रक्खी जाती थी |
यहाँ पर त्यौहार में लोग एक दूसरे के घर मुबारक बाद देने जाते हैं यह घर आये ,मेहमानों का स्वागत सत्कार बड़े प्रेम से करते हैं खुशी का माहौल होता है लोग दूसरे शहरो में घूमने भी जाते हैं शाह के समय धनवान लोग विदेश भ्रमण करने जाते थे |दोपहर दो बजे ईरान टेलीविजन पर रंगारंग प्रोग्राम आते हैं मेरे बच्चे घड़ी में समय देखते रहते थे जैसे ही एंकर आती वह कहती ” नौरोजे शुमा मुबारक ” बच्चे भी दुगनी आवाज से चीखते नौरोजे शुमा मुबारक -मुबारक फिर वह कहती ”ईदे (फ़ारसी में इसका अर्थ खुशी है ) शुमा मुबारक ” बच्चे भी उसी लहजे में खानम जान मुबारक “‘ उनका यह मानना था जितनी खुशी से नया दिन मनाया जायेगा पूरा वर्ष उतना ही अच्छा गुजरेगा पूरे तेरह दिन जश्न के दिन थे |
तेरवा दिन सीसदा बदर कहलाता है यह पूरा दिन वह घर से बाहर गुजारते थे अपने घर में कटोरे में बोई हुई खेती को वह प्रवाहित करने नदी के किनारे जाते अपने साथ पूरा पिकनिक का सामान ले कर जाते वे नदी को रूद खाना कहते हैं वहाँ कालीन बिछाई जाती चाय का अलादीन (मिट्टी के तेल से जलने वाला स्टोप ) उसमें चाय की पानी खोलता रहता था हर वक्त चाय हाजिर थी बेहतरीन खाना वह घर से पका कर लाते थे जिसमे हरी सब्जी में पकी मछली ,आब गोश्त ( हरी सब्जी और सफेद चने ड़ाल कर पकाया गोश्त) ,ईरानी जाफरानी चावल लेकिन दलिया और अंकुरित बालों से बनी मिठाई जरूर बनती थी , सूखे फल मेवे और बहुत सी वस्तुये खाने में सजाई जाती थी हर मेहमान को बिफ़रमा (खाने के लिए आपका स्वागत हैं ) कह कर खाने का न्योता दिया जाता था |एक भी व्यक्ति अपने घर पर नहीं रहता था | हम भी अपना बेहतरीन हिंदी खाना जिसमें खीर गाजर का हलवा एनी पकवान बना कर ले जाते थे अपना सिफरा बिछाते थे हमारे घर के पास से रूद खाना बहता था बहुत से ईरानी जाने, अनजाने लोग हमारे साथ हमारा और अपना भोजन बाँट कर खाते थे | हंसी ख़ुशी से समय निकल जता था| हमारे यहाँ का पारसी समाज अपने से अलग नहीं लगता | इस समाज में अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया | मैं सबको नौरोजे शुमा मुबारक कह कर मुबारक बाद देती हूँ |
डॉ शोभा भारद्वाज

फोटो क्रेडिट्स:

“HaftSeen2” by Hessam M. Armandehi – Own work. Licensed under CC BY 2.5 via > Wikimedia Commons
“White house haft seen” by White House website via Wikipedia Commons

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