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अवधेश जी की नजर से ” गाय “का महत्व

Vichar Manthan
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श्री अवधेश जी ने मेरे लेख’ गौवंश हमारे कितने हित में’ लेख पर अपनी प्रतिक्रिया दी उन्होंने गाय के महत्व पर अपने विचार दिए वह इतनें अच्छे थे मैने पाठकों को पढ़ने के लिए ऐसे के ऐसे प्रस्तुत कर दिए यदि अवधेश जी चाहें गाय के महत्व से हमें अवगत करायें | डा शोभा भारद्वाज जी। एक मार्मिक लेख लिख कर मुझे कुछ कहने के लिए आप ने मजबूर कर दिया है। आपने अपने लेख में गाय के पौराणिक, सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक एवं भावात्मक पक्ष का सराहनीय उल्लेख किया है। चूंकि मैं इसी पशु के अध्ययन एवं अध्यापन से सम्बन्धित हूं और श्री धाम वृन्दावन (मथुरा) का निवासी हूँ अतः कुछ वैज्ञानिक पक्षों पर भी विचार रखना चाहूंगा। गाय के दूध में जो चिकनाई होती है उसकी गोलिकाऐं भैंस के दूध की तुलना में छोटी होती हैं जिससे यह आसानी से और शीघ्रता से पचता है। विषेष तथ्य यह है कि गाय के दूध और महिला के दूध की रासायनिक संरचना बहुत कुछ मिलती जुलती है। गाय को माता का स्थान ऐसे ही प्राप्त नहीं है। इसके सामाजिक, पारिवारिक एवं भावात्मक परिवेश पर ध्यान दिया जाय तो यह एकदम माता के समान ही है। हम जिस गाय को माता के रूप में मानते है वह वैज्ञानिक रूप से बास इंडिकस है। गाय के मुख से विशेष गैस निकलती है जो वातावरण को रोगाणुओं से मुक्त करती है। गाय का गोबर एंटी सैप्टिक है इसीलिए प्राचीन काल से ही घरों की लेपाई गाय के गोबर से की जाती थी। गोमूत्र के महत्व के बारे में पहले ही चर्चा हो चुकी है।
दुनिया में एक ऐसी खतरनाक बीमारी भी है जो केवल और केवल गाय का मांस खाने से ही होती है। उस बीमारी का नाम है ‘मैडकाफ डिजीज’। मैं आज भी यह मानता हूं कि (यदि वोट बैंक की ओछी राजनीति करने वाले नेताओं को छोड़ दें क्योंकि वे अपने टिकट और वोटों के लिए अपनी माताओं, बहनों, बेटियों और पत्नी का सौदा भी करते हैं यह बात पब्लिक डोमेन में है), तो गाय को कोई भी काटना नहीं चाहता है। और जो गाय को नष्ट करना चाहता है उससे बड़ा बेवकूफ इस धरती पर नहीं होगा।
फिर भी गोवंश बध की बात क्यों उठने लगी है इसका एकमात्र कारण यह है कि जो गोवंश पहले पालतू था वह आज फालतू हो गया है। आज हम मात्रा के पीछे भाग रहे हैं गुणवत्ता को पीछे छोड़ दिया है। दूध के नाम पर आज संकर गायें आ गयी है। माफ कीजिएगा ये गायें वे नहीं हैं जो माता की पदवी धारण कर सकें। घी मावा व पनीर की मात्रा मात्रा भैंस के दूध में अधिक है। बैल जो कार्य करते थे आज के युग में मशीनें ने खासकर ट्रेक्टर कर रहे हैं।
फिर भी गोवंश की रक्षा करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। गोवंश की रक्षा करने के लिए हमें बहुत से कदम उठाने होंगे। आज गाय की मौत का एक बड़ा कारण है पोलीथिन। गाय अनजाने में पोलीथिन में रखे भोजन के लालच में पोलीथिन को ही खा जाती है। इसके लिए हम ही दोषी हैं क्योंकि निरीह गाय नहीं जानती कि पोलीथिन एक ऐसा उत्पाद है जो न तो गलता है न घुलता है। वह अपचनीय है। एक बार जो पोलीथिन गाय के पेट में चली जाती है वह उसकी मृत्योपरान्त ही बाहर आती है। कहने को बहुत कुछ है लेकिन कितना कहूँ। थोड़े लिखे को ही सार समझें।
जहाँ तक भैंस का प्रश्न है, मैडम अरुणा कपूर जी ने कहा है कि भैंसों को काफी बाद में अफ्रीका से भारत में लाया गया था। यहाँ मैं पूर्ण विनय के साथ निवेदन करना चाहता हूं कि तथ्य में थोड़ा सुधार की आवश्यकता है। भैंस भारत की ही दैन है। महिषासुर व महिषमर्दिनी आदि पौराणिक नाम हैं और महिष का अर्थ भैंस होता है।
yogi sarswat सम्माननीय योगी जी आपने लिखा है कि “किन्तु एक बात उन्होंने लिखी है किगाय का मांस खाने से बीमारी होती है इसलिए कोई भी उसे काटना नहीं चाहगे, मुझे लगता है यहां वो भटक गए हैं ! विधर्मी बिना किसी बात के सिर्फ हिन्दुओं कि भावनाओं को आहात करने के लिए भी ऐसा करते रहे हैं” मैं आपको अवगत कराना चाहता हूं मैं पशु विज्ञान विषय का प्राध्यापक हूं और गाय तथा भैंस के सम्बन्ध में जो विचार लिखे वे वैज्ञानिक तथ्य हैं। किसी व्यक्ति की भावना को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं हैं। हो सकता है कि आप को इस रोग के विषय में जानकारी न हो लेकिन यह एक वैज्ञानिक तथ्य है। मैंने रोग का नाम भी दिया है। इस लेख का धार्मिक आस्था से कोई लेना देना नहीं है। ऐसा नहीं कि मैं नास्तिक हूं लेकिन यहाँ मात्र वैज्ञानिक तथ्य लिखे गये हैं। मैंने साफ लिखा है “मैं आज भी यह मानता हूं कि (यदि वोट बैंक की ओछी राजनीति करने वाले नेताओं को छोड़ दें क्योंकि वे अपने टिकट और वोटों के लिए अपनी माताओं, बहनों, बेटियों और पत्नी का सौदा भी करते हैं यह बात पब्लिक डोमेन में है), तो गाय को कोई भी काटना नहीं चाहता है।“ हो सकता है कि शायद पढने में कोई चूक हो गयी हो। खैर आपकी और मेरी मंजिल एक ही है गोवंश की रक्षा करने के लिए प्रेरणा जगाना। किसी का रास्ता धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक आदि आदि हो सकता है। इसी प्रकार मेरा रास्ता वैज्ञानिक है। मंजिल एक ही है।
नोट- मैने अवधेश जी के विचार पाठकों तक पहुंचा दिए काश अवधेश जी गाय पर अपने विचारों पर ब्लॉग लिखें उनके ज्ञान का हमें भी लाभ मिलेगा हम सब गाय की सुरक्षा चाहते हैं

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