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” मुझे कुछ कहना है “

Vichar Manthan
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“ मैं कुछ कहना चाहती हूँ “क्या आप पढ़ेंगे ?
मुझे लिखने का अधिक शौक नहीं था आकाशवाणी में मेरी वातायें नियमित रूप से आती रहती हैं कभी- कभी पत्रिकाओं में भी लिख लेती थी लेकिन भाषण देना मुझे बहुत प्रिय है कई संस्थाएं बुलाती हैं भाषण देना भी आसान हैं केवल आपमें कला होनी चाहिए आप श्रोताओं को अपने विचारों में बाँध सकते हैं या नहीं | | लिखना आसान नहीं है मेरे गुरु डॉ श्री राम शर्मा जी कहते थे भाषा क्लिष्ट नहीं होनी चाहिए उसमें प्रवाह हो | इस प्रकार लिखना चाहिए पाठकों को ऐसा लगे वह स्वीमिंग पूल में सीधा लेट कर धीरे – धीरे हाथ पैर चला कर तैरने का आनन्द उठा रहें हैं | आपकी लेखनी में पकड़ होनी चाहिए |मैने एक संस्था में कम्प्यूटर सीखना शुरू किया वहा मुझे राकेश जिससे कम्प्यूटर सीखती थी ने कहा आंटी आप नियमित रूप से लिखती क्यों नहीं उसने स्वयं ही जागरण ब्लॉग में मेरे लिए ब्लॉग के लिए अप्लाई किया जिसमें उसने सोभाजी ,शोभा में H नहीं लगाया वह मेरी बहुत इज्जत करता था इसलिए नाम के साथ ‘जी’ लगा दिया मैने भी उसी नाम से लिखना शुरू कर दिया मैने उसकी भावना का ध्यान रखा |दैनिक जागरण हमारे यहाँ नियमित रूप से आता था हमारे परिवार का पसंदीदा हिदी का अखबार था |अब मैने ब्लॉग लिखना शुरू किया जागरण के एक कांटेस्ट में मैंने संसमरण लिखा उसके बाद मुझे पहली प्रतिक्रिया मिली
“प्रिय सोभा जी, पहले तो आपके नाम को देखकर कुछ अटपटा सा लगा ! मेरे ख्याल से शोभा जी होना चाहिए लेकिन आपने अपने नाम को सोभा जी लिखा है ! दूसरी बात आपने १३ रचनाये लिखी है लेकिन एक भी कमेंट नहीं मिला ! आश्चर्य !!! फिर भी आपकी पुरस्कृत रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ! राम कृष्ण खुराना”
“यहीं से जागरण जंगशन के लेखकों और पाठकों से मेरा परिचय शुरू हो गया | मैं लगभग हर लेखक की रचना पढ़ती हूँ | मेरी अपनी भाषा में भी सुधार हुआ |कुछ लेखकों की रचनाएँ लाजबाब होती थीं | अपने आप कम्प्यूटर पर उन्हें प्रतिक्रिया देने के लिए हाथ चलते हैं कुछ छोटा लिखते थे परन्तु वह एक ऐसा प्रश्न उठाते थे जो सोचने पर मजबूर कर देता हैं | जागरण जंगशन में लिखा है “ दो साल पहले जागरण जंक्शन ने अपने नियमित पाठकों की रचनाओं को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए एक विशेष पहल आरंभ की थी.” | सभी लिखने पढने के शौकीनों को जब भी अच्छा लेख या कविता पढने को मिल जाती हैं उस पर प्रतिक्रिया लिखने का शौक हो तो सोने में सुहागा हो जाता है |ज्यादातर लोग पहले लेख को अच्छी तरह पढ़ते हैं फिर उसके मर्मस्पर्शी भाग को पढने के बाद प्रतिक्रिया देते हैं प्रतिक्रिया में केवल प्रशंसा ही नहीं की जाती बल्कि सहमत न होने पर अपनी बात को बेबाकी से रखते हुए प्रतिक्रिया देते हैं और आलोचना भी की जाती हैं यही नहीं विषय से सम्बन्धित जो बात अधूरी रह जाती है उस पर भी प्रकाश डाला जाता है |कई बार पाठकों की प्रतिक्रिया में बहुत अच्छे विचार होते हैं उसे मैं आपने कालम से प्रतिक्रिया देने वाले लेखक के नाम से hight light कर देती हूँ उस पर भी पाठक अपनी प्रतिक्रिया देते हैं | आपने ऐसा ही अवसर हम पाठकों और लेखकों को दिया जो अत्यंत सराहनीय रहा है और हमारा मजबूत रिश्ता जागरण ब्लॉग के लेखकों और पाठकों से जुड़ा हैं परन्तु अब ?
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अब केवल कालम या स्वप्न रह गया है पाठक क्या करे ???
“नोट: प्रतिदिन दो चुनिंदा ब्लॉग रचनाएं दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित की जाती हैं. ज्ञात हो कि वही लेख प्रकाशित किए जाएंगे जो संपादकीय दिशा-निर्देशों के अनुरूप होंगे.
तो फिर जागरण जंक्शन पर नियमित लिखें और पाएं दैनिक जागरण में अपना ब्लॉग प्रकाशित होने का शानदार अवसर.” यह सम्पादक महोदय का अधिकार है इस पर मुझे कुछ नहीं कहना |
लेकिन प्रतिक्रिया देने का आपने अधिकार दिया है| यदि आप प्रतिक्रिया देने के लिए पाठकों को हतोत्साहित करना चाहते हैं या आपकी पॉलिसी बदल गई | आप नोट –लिख कर दो पंक्तियों में निर्देश दे दें अति कृपा होगी हम भी बेकार का प्रयत्न नहीं करेंगे | हाँ रीडर ब्लॉग भी इन एड से भरा रहता है
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डॉ शोभा भारद्वाज

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