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संसद के दोनों सदन अनिश्चित काल के लिए स्थगित

Vichar Manthan
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” क्या यही संसदीय व्यवस्था है ”
नरेंद्र मोदी जी ने संसद भवन में प्रवेश करते समय सदन के द्वार पर माथा टेक कर संसद का सम्मान किया लोकतंत्र में निष्ठा जताई, संसद लोकतंत्र का मन्दिर है |बड़े संघर्ष के बाद देश आजाद हुआ अपना संविधान बना | संसद में देश के लिए कानून बनाने का अधिकार जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को मिला |संसद के दो सदन हैं 1. लोकसभा 2.. राज्य सभा | हम ब्रिटिश साम्राज्य के गुलाम थे आजादी मिलने से पहले संविधान सभा का गठन किया गया उसमें संसदीय प्रणाली को अपनाया गया यह व्यवस्था ब्रिटेन से ली गई हमारे यहाँ संविधान के अनुच्छेद 74व् 75 में केंद्र और 163 व् 164 में राज्य दोनों सरकारों में संसदीय व्यवस्था है|
लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा किया जाता है | राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता हैं नाम से ही स्पष्ट होता है यह राज्य विधान मंडलों के सदस्यों की संस्था है | लोकसभा में बहुमत दल के नेता को राष्र्ट पति सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं | यदि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता मिली जुली सरकार बनती है लेकिन जिस नेता के नेतृत्व पर सहमती होती उन्हें राष्ट्रपति को अपने समर्थकों का लिखित रूप से समर्थन पत्र देना पड़ता हैं तब जा कर राष्ट्रपति सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं उन्हें लोकसभा में बहुमत सिद्ध करना पड़ता है| नेहरु जी से लेकर इंदिरा गांधी ,उनकी हत्या के बाद राजिव गाँधी तक कांग्रेस की बहुमत की सरकार रही केवल आपतकालीन स्थिति की समाप्ति के बाद के चुनावों में इंदिरा जी चुनाव हार गई | इंदिरा जी के विरोध में जनता दल बना जिसने चुनाव में कांग्रेस हो हराया यह दल इंदिरा जी के विरुद्ध इकट्ठे हुए नेताओं का दल था जनता दल की सरकार अधिक समय तक चल नहीं सकी| इंदिरा जी ने चुनाव जीत कर फिर से सरकार बनाई उनकी हत्या के बाद ऐसी सहानुभूति की लहर चली राजिव गांघी 425 सीटों से चुनाव जीत गये बड़े- बड़े दिग्गज चुनाव हार गये उन्हें राज्यसभा के रास्ते सदन में प्रवेश मिला |राजिव गाँधी अगले चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सके अब मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ | कुछ वर्ष अटलबिहारी जी के नेतृत्व में N.D.A गठ्बन्धन की सरकार रही |अटल जी के बाद फिर से कांग्रेस वर्चस्व की यू पी ए सरकार बनी डॉ मनमोहन सिंह जी के नेतृत्व में दस वर्ष सरकार चली लेकिन 2014 के चुनावों में कांग्रेस चुनाव हार गई लोकसभा में उसके सदस्यों की संख्या केवल 44 रह गई नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में N.D.A. की सरकार बनी है जिसमें भाजपा के पास अपना पूर्ण बहुमत है|
अब तक कांग्रेस या कांग्रेस से टूटे या कांग्रेस के समर्थन से सरकारें बनी थी आजादी के बाद कांग्रेस का ही वर्चस्व था, सदन में विचार धारा के आधार समाजवादी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ,स्वतंत्र पार्टी ( राजगोपाला चार्य )कम्युनिस्ट जनसंघ (भाजपा ) ज्यों ज्यों कांग्रेस का जनाधार घटता रहा अनेक क्षेत्रीय दलों की राज्य विधान सभा में सरकारें बनी यही नहीं उन्होंने केंद्र की राजनीति में भी दस्तक दी इसके अलावा किसी भी बड़े दल के असंतुष्ट नेता अपना अलग दल बना कर चुनाव में हिस्सा लेने लगे उनके समर्थन से भी सरकारें बनी थी |
भारतीय संसद को अनेक महान सांसदों ने सुशोभित किया जिनकी भाषण कला के सभी कायल थे उनकी बातों में राष्ट्र हित के साथ मार्ग निर्देशक की भी भूमिका होती थी वह जब विपक्ष में सरकार की निंदा करते थे वह भी सार्थक होती थी | दोनों सदनों में दिए गये वक्तव्य रिसर्च करने वाले विद्यार्थियों के लिए प्राइमरी सोर्स माने जाते थे | विद्यार्थियों में दर्शक दीर्घा से संसद की कार्यवाही देखने का उत्साह होता था जब भी स्कूल या कालेज की तरफ से दिल्ली घूमने का प्रोग्राम बनता उसमें संसद दिखाना प्रमुख होता था संसद की कार्यवाही देखना किसी ओजस्वी सांसद को अपने विचार रखते देखना मुख्य आकर्षण था शायद किसी सांसद का इंटरव्यू लेने का अवसर मिले |
अब क्या देखें संसद की गरिमा नष्ट होती दिखेगा स्पीकर को घेरे लोग |अब तो कागज के टुकड़े – टुकड़े कर डिप्टी स्पीकर पर उड़ते जनता ने चैनल के माध्यम से देखे हैं | दोनों सदनों का बुरा हाल था लोकसभा में सुमित्रा महाजन और राज्य सभा में उपराष्ट्रपति सदन के अध्यक्ष हमीद अंसारी ने अपनी लाचारी महसूस की | संसद में नारे बाजी करना बेल में स्पीकर महोदय को घेरना अब पहले से और तरक्की हो गई है स्पीकर महोदया के मुहँ पर तख्तियां लहराना | मानसून सेशन शोर गुल में निकल गया | संसद की गरिमा खराब की गई | देश आजाद होने के बाद संसद में बैठने देश की नीति निर्धारित करने का उत्साह धीरे- धीरे खत्म होता जा रहा है | मेहनत से तैयार किये गये भाषण भी कम नजर आते हैं जब से सदन की कार्यवाही रिले होने लगी है अब तो सदन को सम्बोधित न कर अपने क्षेत्र को सम्बोधित किया जाता है | किसी ख़ास विषय में चर्चा के समय भी सांसद गायब हो जाते या ऊँघते दिखाई देते हैं कुछ की समझ में चर्चा ही नहीं आती | प्रश्नोत्तर काल में पैसे लेकर प्रश्न पूछने के मामले भी सामने आये | किसी भी बिल को पास होने के समय सत्ता पक्ष के सांसद भी गायब देखे गये हैं , विप जारी करना पड़ता है हजूर हाजिर रहना | लेकिन जब से मिली जुली सरकारों का चलन हुआ है अब सांसद सदन में शोर मचाओ सदन की कार्यवाही मत चलने दो अपने आप स्पीकर सदन को कुछ समय के लिए स्थगित कर देगा या देगी का चलन बढ़ गया है |
लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही के नियम हैं जिसका पालन करना आवश्यक हैं सदन में नारे लगाना स्पीकर को घेरना धरना नहीं देना चाहिए सदन की एक गरिमा है लेकिन डॉ मनमोहन सिह जी के समय कोयला आवटन , सी.बी, आई की रिपोर्ट में हस्ताक्षेप ,कामनवेल्थ टूजी घोटाला पवन बंसल को लेकर रेलवे रिश्वत मामला और भी अनेक घोटाले यूँ कहिये घोटालों का काल था भाजपा और विपक्षी दल जिनमें वाम पंथी भी शामिल थे ने सदन में हंगामा और नारे बाजी की सरकार पर जाँच के लिए दबाब डाला गया | यूपीए की सरकार के समय हुये घोटालों को प्रधानमन्त्री डॉ मनमोहन सिंह जी ने मिली जुली सरकार की मजबूरी बताया संजय बारू ने अपनी पुस्तक में लिखा है आफिस की महत्वपूर्ण फाइलें सोनिया जी के पास जाती थी जबकि यह पद की गोपनीयता की शपथ के खिलाफ है| विरोधियों में खास कर भाजपा नें पुस्तक पर कहा वह पहले ही कहते थे मनमोहन सिहं नाम मात्र के प्रधान मंत्री हैं सत्ता सोनिया जी के पास है |इस पुस्तक से डॉ मनमोहन सिंह जी की की छवि खराब हूई , घोटालों से कांग्रेस पहले ही बदनाम थी जनता कांग्रेस से विमुख हो रही है चुनाव में विपक्ष के हाथ में शानदार मुद्दा आ गया चौतरफा हमला होने लगा है उनके प्रश्नों का उत्तर देना मुश्किल हो रहा है | डॉ मनमोहन सिंह का समय सत्ता के दो केन्द्रों का काल है | भ्रष्टाचार, घोटालों ,महंगाई प्रधान मंत्री का निर्णय न लेना या निर्णय लेने में देरी आदि के लिए जाना जा रहा है |चुनाव में यूपीए सरकार हार गई कांग्रेस की अपनी कुल 44 सीटें रह गई आजतक लगभग आजादी मिलने के बाद से अधिकांश समय तक सत्ता में रही कांग्रेस के लिए इसे सहना बहुत मुश्किल है उसे प्रमुख विरोधी दल का स्थान भी नहीं मिला कांग्रेस अपने बीते दिनों को तलाश रही हैं ऐसी बात नहीं हैं कांग्रेस के पास योग्य लोगों की कमी है लेकिन इस दल को नेहरु गाँधी परिवार के पीछे रह कर चुनाव लड़ने की आदत है उन्हीं की जय जयकार से पद पाने में सुविधा रहती है सोनिया जी को विदेशी मूल के मुद्दे की वजह से प्रधानमन्त्री बनने का अवसर नहीं मिला लेकिन वह अपने पुत्र राहुल के लिए स्वप्न देख रही है |अब तक राहुल गांधी ने ऐसी योग्यता नहीं दिखाई है जिससे उसका प्रभाव बढ़े संसद में भी ज्यादातर वह उदासीन रहे है | बजट के समय भी वह चिन्तन का बहाना कर विदेश चले गये अब वह कमर कस कर आये हैं आवश्यकता थी वह सदन में अपनी प्रतिभा का परिचय देते, लिखे विचार नाटकीय ढंग से बोलना उनके अपने साथियों का तालियाँ बजाना ऐसा लगता हैं जैसे वह लिखी लिखाई स्क्रिप्ट में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं | उनके विचारों से सदन क्या प्रभावित होगा ? उन्होंने सकारात्मक राजनीति के स्थान पर नकारात्मक नीति को चुना है कुछ समय से यही चलन चल रहा है कुछ भी बोलो बाद में क्षमा माँग लो परन्तु यह एक प्रदेश की नीति बन सकती है देश की नहीं | |उन्हें लगा इस तरह वह मिडिया में छाए रहेंगे जनता की नजरों में जुझारू नेता सिद्ध होंगे | मानसून सदन हंगामें की भेट चढ़ गया धन की कितनी हानि हुई हिसाब ही मत पूछिए अनेक महत्व पूर्ण विधेयक जैसे जीएसटी भी पास नहीं हो सका |राज्य सभा में 8% काम हुआ लोकसभा में १०% |
लोकसभा स्पीकर तक के मुहं पर तख्तियां लेकर कांग्रेस के सांसद संसद खड़े थे | सुमित्रा महाजन स्पीकर ने पांच दिनों के लिए 25 सांसदों को निलम्बित कर दिया निलम्बन कोई नयी बात नहीं है राजीव जी के समय भी 69 सदस्यों का निलम्बन किया गया था विपक्ष , ख़ास कर कांग्रेस के हाथ मुद्दा लग गया |अब सोनिया जी ने जबर्दस्त आक्रामक रुख अपनाया संसद के बाहर धरना प्रदर्शन किया गया वह भी” गाँधी जी” की मूर्ति के नीचे |बहस के बजाये सदन का बहिष्कार करना शोर मचाना यह कौन सा प्रजातंत्र है हाँ देश को पीछे की तरफ घसीटना है | इसे देश की अमीर ,गरीब ,पढ़ी लिखी अनपढ़ ,शहरी गावों और कस्बे में बसी जनता विदेश में बसे प्रवासी भारतीय ने 21 जुलाई से 13 अगस्त तक 1015 तक संसद में होने वाला तमाशा देखा | अब जनता जागरूक हो चुकी है | सांसदों को इतनी सुविधाए दी जाती हैं ,इन दरबारियों के वेतन भत्ते कितने हैं गिनाये पता चलता है घर नहीं मिला या पसंद नहीं आया अशोका होटल के बिल ,संसद की कैंटीन में सस्ता खाना इनका बोझ भी देश पर है एक दिन प्रधान मंत्री ने भी कैंटीन में भोजन किया कुल 29 रु का खाना जिसमें मीठा भी शामिल है एक रूपये की चाय यह भोजन सांसद ,संसद के कर्मचारियों और पत्रकारों के लिए भी है | सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ाने की बात हो सभी एक हो कर अपने सुझाव देंगे तब पार्टी लाइन को पार कर जायेंगे सब चाहिए अरे और सुविधाए ले लो कम से कम संसद तो चलने दो कोई मुद्दा नहीं हैं कांग्रेस को अपना बीता स्वर्णिम युग चाहिए सोनिया जी अपने पुत्र को प्रधानमन्त्री पद पर आसीन देखना चाहती हैं राजनितिक जमीन पकड़ रहीं हैं वह जानती हैं यदि भाजपा के पैर जम गये उन्हे उखड़ना मुश्किल हो जाएगा लेकिन बहुमत की सरकार है अपना कार्यकाल अवश्य पूरा करेगी |कब तक मुद्दौ को भुना कर संसद ठप करोगे |
देश महंगाई ,बेरोजगारी, बढ़ती जनसंख्या ,अमीरी गरीबी की खाई, भूख और आतंकवाद से जूझ रहा है| यदि आजादी के बाद संसद ऐसे चलती सोचिये देश की क्या हालत होती ?

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