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भारत की विदेश नीति में स्वर्गीय इंदिरा गांधी का योगदान

Vichar Manthan
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भारत की विदेश नीति में स्वर्गीय इंदिरा गांधी का योगदान
आजादी के बाद भारत के लिए विश्व पटल पर सबसे बड़ी जरूरत स्वतंत्रता , अखंडता , एक समृद्ध देश के रूप में अपनी सम्प्रभुता की रक्षा और पहचान बनाना था| विश्व में शान्ति और सद्भाव हो यही हमारी नीति थी | हमारी सांस्कृतिक विरासत, हजारों वर्ष पुराने इतिहास में शान्ति अहिंसा और सहनशीलता में ही विश्व कल्याण संभव है की भावना रही है अत : किसी भी गुट में अपने आप को न बांध कर तटस्थ रहना , साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास यही हमारी विदेश नीति है | समय की जरूरत को देखते हुए भारत की विदेश नीति भी बदली है डॉ मनमोहन सिंह जी के समय से ही प्रो अमेरिकन हो रही हैं |आज देश को निवेश की जरूरत हैं और दुनिया के देश भारत को बाजार के रूप में देख रहे हैं लेकिन जब देश आजाद हुआ था ऐसा लग रहा था भारत की विदेश नीति का झुकाव एंग्लो अमेरिका ब्लाक की तरफ होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ शीत युद्ध में हमारी विदेश नीति एंग्लो अमेरिकन ब्लाक और रशिया के दोनों के साथ मित्रता की नीति थी |विश्व में होने वाले झगड़ों को सुलझाने में भारत की महत्व पूर्ण भूमिका रही है|
1965 के भारत पाकिस्तान के युद्ध की समाप्ति के बाद रूस के प्रयत्नों ने दोनों देशों के बीच ताशकंद में समझौता कराया समझौते के कुछ घंटों बाद ही हृदय गति रुक जाने से प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु हो गई |24 जनवरी 1966 को इंदिरा जी ने प्रधान मंत्री पद की शपथ ली |भारत कम अंतराल के बीच चीन और पाकिस्तान से युद्ध कर चुका था देश की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी इंदिरा जी को पी. एल .480 के अंतर्गत गेहूं और वित्तीय सहायता की आवश्यकता थी उन्होंने अप्रैल में आर्थिक मदद के लिए अमेरिका की सरकारी यात्रा की |अमेरिका उत्तरी वियतनाम से युद्ध में फंसा था वियतनाम गरीब मुल्क होते हुए भी अमेरिकन शक्ति का डट कर मुकाबला कर रहा था |पूरे विश्व में अमेरिका की बदनामी हो रही थी| अमेरिकन राष्ट्रपति जानसन 35 लाख टन गेहूँ और एक हजार मिलियन डालर की सहायता के बदले इंदिरा जी से अपने पक्ष में स्टेटमेंट दिलवाना चाहते थे कि अमेरिका का वियतनाम में कदम उचित है राष्ट्रपति को विश्वास था भारत सरकार मजबूर है इंदिराजी मजबूरी में उनके पक्ष में स्टेटमेंट दे देंगी | इंदिरा जी ने राष्ट्रपति जानसन की बात नहीं मानी अमेरिकन राष्ट्रपति ने भी मदद से हाथ खीँच लिया |इंदिरा जी ने जुलाई 1966 में रूस की यात्रा की रूस के साथ उन्होंने अमेरिका की वियतनाम सम्बन्धी नीति की आलोचना कहा अमेरिका को अपनी साम्राज्यवादी नीति पर अंकुश लगा कर वियत नाम से अपनी सेनायें हटा लेनी चाहिए | इंदिरा जी का सोवियत रशिया की तरफ मित्रता का हाथ बढान कूटनीतिक निर्णय था |रशिया भी भारत जैसे विशाल देश से मित्रता बढ़ा कर खुश हुआ |
चकोस्लोवाकिया वार्सा पैक्ट का मेम्बर देश था वहाँ के राष्ट्राध्यक्ष दुबचेक सुधारों के समर्थक थे वह कम्युनिज्म के शिकंजे से बाहर निकलना चाहते थे लेकिन शिकंजे को किसी भी तरह की ढील न देते हुए 21 अगस्त 1968 को सोवियत रशिया ने वार्सा पैक्ट के मेंबर कम्युनिस्ट गुट के साथ अपने टैंक चकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग में उतार दिये | सुरक्षा परिषद की आपतकालीन बैठक बुलाई गई तथा संयुक्त राष्ट्र जरनल असेम्बली में सोविय्र संघ के विरुद्ध प्रस्ताव पास हुआ| सोवियत संघ ने प्रस्ताव के विरोध में वीटो का प्रयोग किया इस समय इंदिरा जी ने जिन्हें गूंगी गुडिया कहा गया था उन्होंने एक महत्व पूर्ण लिया इस प्रस्ताव पर बहस में हिस्सा नहीं लिया तटस्थ रहीं |
इंदिराजी ने नेहरु जी के समय से चलने वाली तटस्थता की नीति को अपनाया दोनों सुपर पावर की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से अपने आप को अलग रखा तथा पंचशील के सिद्धांत को मान्यता दी नेहरु जी को १९६२ चीन के साथ युद्ध के समय अमेरिकन ब्लॉग से मदद लेनी पड़ी थी राष्ट्रपति कनेडी उनके अच्छे मित्र थे | लेकिन इंदिरा जी को बंगलादेश के निर्माण के लिए सोवियत यूनियन की तरफ झुकना पड़ा |
पाकिस्तान में होने वाले चुनाव में मुजीब-उर-रहमान की आवामी लीग को बहुमत मिला लेकिन भुट्टो किसी भी तरह सत्ता को हाथ से जाने नहीं दे रहे थे जिन्हें प्रधान मंत्री के पद पर आसीन होना था उन्हें जेल में डाल दिया गया ,यहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नीव पड़ गई |मुजीब-उर-रहमान ने हर नागरिक को बंगलादेश के निर्माण में सहयोग देने का आह्वान किया |१९७१ में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरनल याहिया खान थे उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान के हालात सुधारने की जिम्मेदारी जरनल टिक्का खान को सौंपी 26 मार्च से पूर्वी पाकिस्तान में खूनी संघर्ष हुआ स्त्रियों तक को नहीं बख्शा गया अपने ही मुस्लिम भाईयों बहनों पर ऐसा जुल्म हुआ जिसके आगे मानवता भी शर्मा जाये | जीवन की रक्षा के लिए भारत में शरणार्थी आने लगे जिनकी हर सुविधा का ध्यान रख कर उनके लिए टेंट लगवाये गये एक करोड़ के लगभग लोगों ने शरण ली जिससे भारत की इकोनोमी प्रभावित होने लगी | इंदिरा जी ने कुशल कूटनीतिज्ञ की भाँति विश्व का ध्यान भारत की और खींचने के लिए राष्ट्राध्य्क्षों के सामने रिफ्यूजियों की समस्या को रखा | पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी सेना का गठन किया गया जिसके सदस्य आधिकतर बंगलादेश का बौद्धिक वर्ग और छात्र थे जिन्होंने भारतीय सेना की मदद से अपनी भूमि पर पाकिस्तानी सेना से संघर्ष किया अंत में पाकिस्तानी सेना का मनोबल इतना गिर गया जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया | पाकिस्तान के मनोबल को बनाये रखने के लिए अमेरिका ने सीधे हस्ताक्षेप नहीं किया लेकिन राष्ट्रपति निक्सन ( इंदिरा जी को व्यक्तिगत रूप से पसंद नहीं करते थे ) द्वारा सातवाँ जंगी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में खड़ा कर दिया गया जिसका रुख भारत की तरफ था इंदिरा जी विचलित नही नहीं हुई वह सोवियत रशिया से पहले ही संधि कर चुकी थी जानती थी अमेरिका पूर्वी पाकिस्तान की समस्या में पाकिस्तान का पक्ष ले कर बड़े युद्ध का कारण नहीं बनेगा वियतनाम में अपनी किरकिरी को अभी नहीं भुला था | 93 000 युद्ध बंदी ,जिन्हें अलग कैम्पों में रखा गया उन्हें बंगला देशियों के कोप से भी बचाना था |
भुट्टों 20 दिसम्बर को पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने सत्ता सम्भालते ही उन्होंने देश को बचन दिया वह बंगलादेश को फिर से पाकिस्तान में मिला लेंगे |उन्होंने पाकिस्तान के सैन्य अधिकारिओं को पराजय का जिम्मेदार बना कर पद से हटा दिया |कई महीने बाद राजनीतिक स्तर के प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप जून माह १९७२ में शिमला में बातचीत शुरू हुई |इस वार्ता में भाग लेने भुट्टो भारत आये उनके साथ उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो भी आई थीं वह काफी चर्चा में रहीं उन्होंने इंदिरा जी से बुआ जी का रिश्ता गांठा | इन दिनों अनेक विषयों पर चर्चा हुई जिसमें बंगला देश को मान्यता देना भी था पाकिस्तान के इतनी बड़ी संख्या में युद्ध बंदी होने से भी पाकिस्तान का मनोबल टूट गया था इस समझौते में भारत को बहुत लाभ नहीं हुआ हमारे पास पाकिस्तान का काफी भाग था हमें पीछे लौटना पड़ा | हाँ समझौते के आखिरी चरण में राष्ट्रपति भुट्टो से एक बात सख्ती से इंदिरा जी ने मनवाई जिसके लिए वह मजबूरी में तैयार हुए |’शिमला समझौते के अंतर्गत दोनों देश अपने विवादों का हल आपसी बातचीत से करेंगे कश्मीर समस्या का अंतर्राष्ट्रीय करण न कर बातचीत से हल निकाला जाएगा’|
कुछ इस समझौते की आलोचना करते हुए कहते हैं हमें जीते प्रदेश लौटाने पड़े आज के युग में हम किसी देश के प्रदेश पर कब्जा नहीं कर सकते पंच शील का सिद्धांत भी यही कहता हैं भुट्टो बात बात पर दावा करते थे घास की रोटी खायेंगे पर कश्मीर ले कर रहेंगे उनको इंदिरा जी के सामने विनम्र रह कर समझौता करना पड़ा | भारत के आखिरी गवर्नर जनरल माउन्टबेटन ने कहा था बटा हुआ पकिस्तान एक दूसरे से 1600 किलो मीटर दूरी पर है एक दिन अलग हो कर आजाद मुल्क बन जायेंगा उनकी भविष्य वाणी पूरी हुई |अब भारत को युद्ध के समय पश्चिमी पाकिस्तान और चीन की सीमा पर ही ध्यान देना है |
इंदिरा जी को ने पूरी सतर्कता के साथ भारत की विदेशी नीति को नई दिशा दी उन्होंने भारत और सोवियत संघ के साथ मित्रता और आपसी सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किये जिससे भारत को बंगला देश के निर्माण मंभ बहुत सहारा मिला पाकिस्तान समझ गया युद्ध से वह भारत को नहीं दबा पायगा | इंदिरा जी गुटनिरपेक्ष देशों को और पास लायी उनसे अपने सम्बन्ध बढाये जिससे संकट के समय सब एक दूसरे का सहारा बन सकें महाशक्तियो की तरफ न देंखे |दिल्ली में सातवें गुटनिरपेक्ष देशों के सम्मेलन में युगोस्लोवाकिया के मार्शल टीटो मिश्र के नासिर ने भी भाग लिया |विश्व में इंदिरा जी की शोहरत बढ़ी लेकिन अपने देश में उनकी मुश्किलें कम नहीं थी उन्हें अनेक उतार चढ़ावों से होकर गुजरना पड़ा |
इंदिरा जी पर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों का परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने का बहुत दबाब था प्रलोभन भी दिए गये |उन्होंने दबाब को न मानते हुए 1974 में पोखरन में परमाणु विस्फोट कर विश्व को चकित कर बता दिया देश किसी भी तरह कमजोर नहीं हैं भारत ने परमाणु से लेस ताकतों में अपना स्थान दर्ज कराया | चीन स्वयं परमाणु शक्ति सम्पन्न था उसने भी भारत का विरोध किया |भारत पर प्रतिबन्ध लगाये गये लेकिन जापान के अलावा किसी ने नहीं माना । देश हरित क्रान्ति द्वारा अपना पोषण करने में समर्थ था | भारत दक्षिण एशिया में एक शक्ति के रुप में उभरा |
अफगानिस्तान में सोवियत हस्ताक्षेप का उन्होंने समर्थन नहीं किया | अमेरिका वियतनाम युद्ध में अपनी किरकिरी करवाने के बाद 15 वर्ष तक शांत रहा परन्तु अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान के साथ मिल कर अफगान विद्रोहियों की मदद की रूस को खाड़ी देशों से दूर रहने की चेतावनी दी अब युद्ध भारत के दरवाजे पर था इंदिरा जी उदासीन नहीं थी परन्तु तटस्थ रही न उन्होंने रूस का समर्थन किया न अमेरिकन हस्ताक्षेप की निंदा| फिलिस्तीन के विषय में वह फिलिस्तीन के अलग राष्ट्र की समर्थक थी | |उन्होंने उसी नीति को मान्यता दी जिससे राष्ट्र हित सधता था
अंग्रेजों ने मालदीप को आजाद करते समय हिंदमहासागर में दियागो गार्शिया का द्वीप अमेरिका को सौंप दिया था जहां अमेरिकन और यूरोपियन शक्तियों ने अपने अड्डे बना लिये रूस भी इस क्षेत्र में अपनी दखल रखता है | इंदिरा जी ने हिन्द महासागर को शान्ति का क्षेत्र बनाने के लिए सदैव प्रयत्न किया अब चीन भी इस क्षेत्र को अपने अधिकार क्षेत्र में लाना चाहता है |
| पाकिस्तान की तरफ से ‘ नों वार पैक्ट ‘करने के संदेश आये लेकिन इंदिरा जी ने मना कर दिया | अगगानिस्तान युद्ध से प्राप्त सहायता के बल पर पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ कर आतंकवाद का सहारा लिया हैं जिसका मुकाबला आज भी भारत कर रहा है इस्लामिक स्टेट की विचार धारा के बाद आतंकवाद विश्व की समस्या बन चुका है |

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