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राष्ट्र पिता मोहन दास करमचन्द गांधी (बापू )

Vichar Manthan
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राष्ट्रपिता (बापू )मोहन दास करमचंद गांधी
जन्म ,बचपन ,संस्कार ,शिक्षा ,और लन्दन में बैरिस्टर डिग्री तक
” आप जितना गांधी जी को जानते जायेंगे गाँधी मय होते जायेगें| गाँधी जी ने जितना भारत को जाना समझा उतना शायद किसी ने नहीं उन्होंने देश की दरिद्रता को महसूस किया उसमें जी कर देखा ऐसा महात्मा जो सदी में कभी ही जन्म लेता है |”
भारत भूमि सदैव से महापुरुषों की धरती रही हैं ऐसे ही महापुरुष जिन्हें दुनिया राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम से जानती है, उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था. उनका जन्म 2 अक्तूबर 1869 को गुजरात की धरती पोरबन्दर राज्य में हुआ था| उनके दादा उत्तमचंद गांधी पोरबन्दर राज्य के दीवान थे| उनके छह पुत्रों में पांचवी सन्तान करमचन्द गांधी थे जो पोरबन्दर के दीवान थे कुछ समय वह वहाँ प्रधानमन्त्री भी रहे राजस्थान कोर्ट में कुछ समय सभासद रहे फिर राजकोट के दीवान बने. उनकी पत्नी पुतलीबाई एक साध्वी पूजापाठी सात्विक महिला थी उनकी चार संतानों में मोहनदास करमचन्द जिन्हें हम गांधी जी के नाम से जानते हैं सबसे छोटे थे| गांधी जी के पिता करमचन्द स्वाभिमानी, ईमानदार, न्यायप्रिय व सत्यवादी थे गांधी जी की माँ पुतलीबाई एक साध्वी, पूजापाठी नित्य मन्दिर जाने वाली धार्मिक एवं व्यवहार कुशल महिला थी उनके परिवार में रामायण का नियमित रूप से पाठ होता था| ऐसे सात्विक परिवार में गांधी जी संस्कारित हुये.
गांधी जी का बचपन पोरबन्दर में बीता लेंकिन पिता की नियुक्ति राजस्थान कोर्ट में होने के बाद वह भी राजकोट आ गये वहीं के स्कूल में उनकी शिक्षा हुई वह बचपन से शर्मीले स्वभाव के थे अत :उनके मित्रों की संख्या न के बराबर थी. गांधी जी के स्कूल में शिक्षा विभाग की ओर से निरीक्षण था इंस्पेक्टर ने विद्यार्थियों को अंग्रेजी के पांच शब्द लिखने को कहा गांधी जी ने Kettle शब्द के स्पेलिंग गलत लिखे उनके टीचर नें उन्हें स्पेलिंग ठीक करने का इशारा किया लेकिन गांधी जी को बचपन से ही सत्य आचरण की शिक्षा मिली थी अध्यापक के टोकने पर भी नकल नहीं की न स्पेलिंग ठीक किये पूरी क्लास में केवल वही थे जिनके स्पेलिंग गलत थे| आगे जा कर उनके बचपन की सत्यनिष्ठा उनके राजनीतिक जीवन का आदर्श बनी रही| यही नहीं बचपन में श्रवण कुमार की पितृ भक्ति नाटक पढ़ कर वह माता पिता की भक्ति के लिए प्रेरित हुए| हरिश्चन्द्र नाटक देख कर उनकी सत्य के प्रति निष्ठां और मजबूत हो गई. वह सच्चाई के साथ अच्छे आचरण के प्रति सदैव सजग रहते थे. उनकी व्यायाम में रूचि नहीं थी अत: शरीरिक रूप से वह कमजोर थे इस किये दब्बू प्रवृति के भी थे| परन्तु भ्रमण उन्हें बहुत प्रिय था|
गांधी जी के मित्र शेख महताब मांसाहारी थे लेकिन गांधी जी का परिवार विशुद्ध शाकाहारी था उनके मित्र ने उन्हें समझाया मांसाहार न करने के कारण उनका शरीर दुर्बल है अत: शारीरिक स्वास्थ के लिए वह मांसाहर के पक्ष में अक्सर दलीलें देते थे अत: गाँधी जी के मंझले भाई पर शेख महताब की दलीलों का जल्दी असर हुआ उन्होंने कुछ समय तक मांसाहार किया परन्तु उनकी उसमें कोई रूचि नहीं थी जीवन भर विदेश रहने के बाद भी वह विशुद्ध शाकाहारी रहे| गांधी जी की आत्म कथा सत्य के प्रयोग उनके जीवन का दर्पण है जिसमें उन्होंने अपनी कमियों को पूरी ईमानदारी से स्वीकार कर लिखा है. उन्होंने यह भी लिखा है उन्होंने बचपन में सिगरेट के टुकड़े इकठ्ठे कर उनकी सिगरेट बना कर पी कर देखा यह सब किशोरावस्था में उठने वाली जिज्ञासाओं का परिणाम है उनमें भी थी जिसके दुःख से उन्होंने आत्महत्या करने का प्रयत्न किया जिसमें सफल नहीं हुए लेकिन फिर उन्होंने सिगरेट कभी नहीं पिया | एक दिन पत्र लिख कर अपने पिता जी के सामने सभी कमजोरियों को स्वीकार किया.
गांधी जी के समय में बालविवाह का चलन था अत: उनका विवाह बचपन में जब वह केवल तेरह वर्ष के थे कस्तूरबाई से हुआ वह उनकी हम उम्र थीं शादी में खर्च कम हो इसलिए उनके सगे भाई करसनदास और उनसे छोटे चचेरे भाई का विवाह एक साथ हुआ. उनकी पत्नी कस्तूरबाई पोरबन्दर की थी और पूरी तरह निरक्षर थी लेकिन गांधी जी की सच्चे अर्थों में सहचरी थी| गांधी जी के पिता जी को भगन्दर का रोग था बीमारी में उन्होंने अपने अपने पिता की बहुत सेवा की लेकिन उन्हें इस बात की बहुत ग्लानि थी कि जिस समय उनके पिता ने अंतिम साँस ली वह अपने शयन कक्ष में थे.
गांधी जी ने 1887 में मेट्रिक की परीक्षा पास की उनके कुटुम्ब के लोग चाहते थे वह अपने पिता के पद को प्राप्त करें इसके लिए विलायत जा कर बैरिस्टरी की पढ़ाई करने से पद प्राप्त करने में आसानी रहेगी. गांधी जी की बिरादरी में समुद्र यात्रा का निषेध था, माँ पुतली बाई को चिंता थी कि क्या उनका पुत्र विलायत जा कर मांसाहार, शराब एवं परस्त्री गमन से बच पायेगा? माँ के सामने गांधी जी ने ऐसा न करने की प्रतिज्ञा की, माँ भी जानती थी वह अपनी प्रतिज्ञा का पालन करेंगे और उनकी आज्ञा का उलंघन नहीं करेगें.
संयोग से विलायत यात्रा के लिये जूनागढ़ के वकील त्र्यम्बकम मजूमदार भी बैरिस्टरी पास करने इंग्लैंड जा रहे थे उन्ही के साथ 4 सितम्बर 1888 में गांधी जी इंग्लैंड यात्रा के लिए गये उनका साथ इनके लिए बहुत लाभकारी था. गांधी जी की अंग्रेजी कमजोर थी जहाज पर सभी यात्री लगभग अंग्रेज थे उनसे बात करने में उन्हें बहुत संकोच होता था वह भोजन की चिंता में भी बेचैन रहते थे कौन सा भोजन विशुद्ध शाकाहारी है. इंग्लैंड जा कर वह एक होटल में ठहरे गांधी जी अपने साथ इंग्लैंड में रहने वाले चार भारतीयों, डॉ प्राण जी मेहता, दलपतराम शुक्ल, प्रिंस रंजीत सिहं और दादाभाई नौरोजी के नाम सिफारिशी पत्र ले कर गये थे. उन्होंने इन्हें समझाया वह निजी कमरा किराए पर लेकर रहें वह सस्ता पड़ता है. गांधी जी को इंग्लैड का जीवन रास नहीं आ रहा था लेकिन वह वापिस नहीं जा सकते थे. उन्हें डॉ मेहता ने अपने साथ ले जाकर वहाँ रहने के तौर तरीके सिखाए परन्तु शाकाहारी भोजन की समस्या बनी हुई थी. वह सदैव शाकाहारी भोजन की तलाश में लगे रहते| उन्होंने काफी पैसा खर्च कर कामन ला पर मोटी – मोटी पुस्तके खरीदी | रोमन कानून की पुस्तकें अपनी मूल भाषा लेट्रिन में हैं अत : लेट्रिन भाषा सीखी |उस समय के बैरिस्टर को शाम की डिनर पार्टियों में अवश्य जा कर सम्बन्ध बनाते थे इन खर्चीले डिनर का प्रबंध भी छात्रों की जेब से जाता था | गाँधी जी ऐसे खानपान के आदि नहीं थे उनकी समझ में नहीं आता था दावतों में जाने से मिल कर शराब पीने से कोई अच्छा बैरिस्टर कैसे बन सकता है | गाँधी जी संकोची स्वभाव के थे उन्होंने शुरू में अंग्रेजी रंग ढंग सीखने की कोशिश की एक कीमती सूट खरीदा वह टाई भी बंधने लगे |अंग्रेजी ढंग से बोलने अंग्रेजी नृत्य की तालीम ली अंग्रेज युवतियों से मेल जोल बढाया लेकिन जल्दी ही उन्ही समझ में आ गया यह जीवन उनके भाई पर बोझ बन रहा है |अब उन्होंने साधारण जीवन जीना शुरू किया कम खर्च में बैरिस्टरी पास की |
|.इंग्लैंड में उन्होंने पहले इंग्लैंड में दी जाने वाली मेट्रिक की परीक्षा पास की 10 जून 1891 को वह बैरिस्टरी की परीक्षा पास कर इंग्लैंड के हाईकोर्ट में अपना नाम लिखवा कर 12 जून को भारत लौटे. भारत लौटने के बाद उन्हें सबसे पहले अपनी माँ के स्वर्गवास का समाचार मिला इससे उन्हें बहुत दुःख हुआ कि वह अपनी माता को यह न बता सके कि उन्होंने इंगलैंड में अपनी प्रतिज्ञाओं का पूरी तरह पालन किया.| जिस अच्छे आचरण की प्रतिज्ञा उनकी माँ ने उनसे ली थी उस पर वह खरे उतरे थे |
गाँधी जी ने बम्बई में किराए पर मकान लिया नियमित रूप से कचहरी जाने लगे न्यायालय में होने वाली बहसों को देखते, कई घंटे अदालत के पुस्तकालय में बैठ कर भारतीय कानून की पुस्तकें पढ़ते | वकालत शुरू करने की कोशिश की लेकिन अपने शर्मीले स्वभाव के कारण वह मुकदमें की पूरी तैयारी करने के बाद भी अदालत में अपनी पूरी बात कह नहीं पाते थे उनका पहला मुकदमा साधारण सा था परन्तु बहस के समय उनकी जुबान लड़खड़ाने लगी शर्मिंदा हो कर बहस बीच में ही बंद करनी पड़ी |उसके बाद अदालत में कोई भी मुकदमा उन्हें नहीं मिला | इसलिए वादी प्रतिवादियों के अर्जीदावे (आलेख) लिखने का काम करने लगे.|लेकिन बापू की कर्म भूमि कहीं और थी
“दक्षिण अफ्रीका में बैरिस्टर महात्मा गाँधी ”

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