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आज की संसद इतनी गैर जिम्मेदार क्यों ?

Vichar Manthan
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26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के गणराज्य का संविधान लागू हुआ | भारतीय संविधान निर्माताओं ने ब्रिटेन के समान संसदीय व्यवस्था को उचित समझ कर इसी प्रणाली को अपनाया संसद की सर्वोच्चता भारतीय शासन प्रणाली की प्रमुख विशेषता रही है | |भारत के नये संविधान के अंतर्गत पहला आम चुनाव 1951 -1952 में हुयें | जिसमें बड़े उत्साह से जनता ने भाग लिया |उन दिनों संसद की अनोखी शान होती थी | संसद में विद्वान सांसदों के भाषण होते देश की समस्याओं पर लम्बी चर्चायें की जाती सभी चर्चायें चलती और शांति से सुनी जाती | दिल्ली भ्रमण के लिए आने वाले विद्यार्थियों के लिए संसद की कार्यवाही चलते देखना सबसे बड़ी उत्सुकता होती थी अक्सर उन्हें संसद की चलती कार्यवाही में अच्छी चर्चा सुनने को मिल जाती थी |संसद की लायब्रेरी में सांसदों के भाषणों का संग्रह राजनीति शास्त्र के विषयों पर रिसर्च करने वाले विद्यार्थियों के लिए के महत्वपूर्ण मेटीरियल माना जाता है | प्रश्नोत्तर काल का अपना महत्व है संसद अपने क्षेत्र से सम्बन्धित समस्याओं पर प्रकाश डालते हैं विकास से सम्बन्धित प्रश्न पूछते हैं |12 बजे से लंच तक जीरो आवर में विचार विमर्श चलता है |
संसद के दो सदन हैं लोक सभा और राज्य सभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाला उच्च सदन है इसके अलावा 12 सदस्य मनोनीत किये जाते हैं जिनका देश में नाम है |लोक सभा के सांसदों को मतदाताओं द्वारा चुना जाता है |आशा करते थे देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए योग्य लोग ही सदन के लिए चुने जायें लेकिन किसी भी तरह से चुनाव जीतने के लिए धन बल का प्रयोग होने लगा बाहुबलियों का सहारा ले कर बूथ कैप्चरिंग कर अपने लोगों के मतपत्र पर मोहर लगाते मतदाता खड़े देखते रह जाते थे मतदान पूरा हो जाता था | तरह-तरह के हथकंडे कभी – कभी पूरे क्षेत्र को वोट देने नहीं दिया जाता धन और बल दिखा कर वोट खरीदना चुनाव मंहगे होते गये | बाद में बाहुबलियों की समझ में आ गया किसी दूसरे को चुनाव जिताने के बजाए वह स्वयं ही क्यों न चुनाव लड़ें के प्रजातंत्र के मन्दिरों में अपराधी वृत्ति के लोग बैठ गये | कई तो जेल से चुनाव लड़ते थे और जीत भी जाते थे | निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव की प्रक्रिया लम्बी और खर्चीली होती गयी |
लोकसभा में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति सरकार बनानाने के लिए आमंत्रित करते हैं जब किसी दल को बहुमत नहीं मिलता राष्ट्र पति सरकार बनाने के लिए ऐसे दल के नेता को आमंत्रित करते है जिसकी सदस्यों की संख्या अधिक है लेकिन अपने समर्थकों का सहमती पत्र भी देना पड़ता हैं |अप्रेल 1999 में श्री अटल बिहारी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार केवल 13 दिन तक चल सकी क्योकि एक मत के अंतर से बहुमत सिद्ध नहीं कर सकी | 1984 में स्वर्गीय राजीव गांधी की सरकार बहुमत से बनी थी लेकिन बाद में मिली जुली सरकारों का दौर रहा जिसमें क्षेत्रीय दलों की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही |मनमोहनसिंह जी का कार्यकाल में काम हुए लेकिन जम कर घोटालों के नाम से सरकार बदनाम रही | 30 वर्ष बाद मोदी जी के नेतृत्व में एन.डी.ए. की बहुमत की सरकार बनी | संसद में अनेक प्रस्ताव जैसे अविश्वास प्रस्ताव , विश्वास प्रस्ताव काम रोको प्रस्ताव ध्यानाकर्षण प्रस्ताव और स्थगन प्रस्ताव पेश किये जाते हैं |संसद सदन चलने के लिए सदन में कुल निर्वाचित सदस्यों का दसवां भाग आवश्यक है |यदि सांसदों की संख्या कम है ऐसे में अध्यक्ष सदन को स्थगित कर सकते हैं | विधेयक पर मतदान के समय दल विप जारी कर अपने सभी सांसदों को उपस्थित रहने के लिए कहते हैं कोशिश की जाती है सांसद पार्टी लाइन न तोड़ें | सरकार अपनी हर भूल चूक के लिए संसद के प्रति संसद के माध्यम से जनता के प्रति उत्तरदायी है|
25 नवम्बर 2001 को सर्वदलीय राष्ट्रीय सम्मेलन में संसद एवं विधान सभों को मर्यादित करने के लिए नियम बनाये गये आचार संहिता का निर्माण किया गया जैसे प्रश्न काल के दौरान शांति बनाये रखना ,सदन के बीच में अपने स्थान से उठ कर नारेबाजी करना , राष्ट्रपति के भाषण के दौरान मर्यादित व्यवहार करना प्रत्येक सदस्य को अपनी सम्पत्ति की घोषणा करना , व्यवहार जब कोई सदस्य भाषण दे रहा है उसके विचार सुनना टोका टिप्पणी न करना , सदन में फोन का इस्तेमाल नहीं करना बिना स्पीकर को सूचित किये किसी पर आरोप लगाना उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करना न्यायालय में चलने वाले विषयों को बिना अनुमति के सदन में उठाना अध्यक्ष जी की अनुमति के बिना अपनी बात नहीं रखना और भी कई नियम बनाये गये |
2010 में पूरे समय सदन में हंगामें होते रहे घोटालों के विरुद्ध विरोधी दलों का सदन में ऐसा हंगामा जारी रहा जो आज तक नहीं थमा सारे नियमों को ताक पर रख कर सांसद वेल में ही आकर नारे लगाना चाहते हैं अध्यक्ष के सामने कागज फाड़े गये इतना शोर शराबा होता कुछ भी सुनाई नहीं देता जनता के प्रतिनिधियों का ऐसा निराशा जनक व्यवहार देश ने देखा | नेशनल हेराल्ड का मामला कांग्रेस ,कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी तथा उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से सम्बन्धित मामला न्यायालय का विषय है 7 दिसम्बर को उनकी हाईकोर्ट द्वारा खारिज की गई नियमों को ताक पर रख कर दोनों सदन चलने नहीं दिये गये |अब तो यह प्रक्रिया नियम ही बन गयी है संसद में महत्व पूर्ण विधेयक लटका दिए जाते हैं मोदी सरकार का लोकसभा में बहुमत है राज्य सभा में बहुमत नहीं है | एक विषय पर कोई शोर नहीं होता अभूतपूर्व एकता देखी जाती है जब सांसदों के अपने वेतन या भत्तों के बिल बहुत आराम से पास हो जाता है |
राज्य सभा मे बहुमत न होने के कारण महत्वपूर्ण विधेयक लटक गये हैं ग्रीष्मकालीन सत्र भी हंगामें की भेट चढ़ गया | अब ऐसा लगता है संविधान निर्माताओं ने अच्छा किया बजट पर राज्य सभा को विचार करने के केवल 14 दिन दियें बजट पर सुझाव दे दें | बजट हस्ताक्षर के लिए राष्ट्रपति महोदय के पास चला जाएगा | सत्ता रूढ़ दल की जिम्मेदारी सदन में सबका सहयोग ले कर चले परन्तु कैसे ?कांग्रेस सदैव सत्ता में रही है सदन में उनकी संख्या केवल ४५ रह गयी है लेकिन हंगामा करने में कमी नहीं हैं पूरे देश ने सदन में क्या हो रहा है | सदन में राज्य सम्बन्धी विषयों पर शोर होता रहा है विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी निशाना बनाक्र उनसे इस्तीफा मांगा बोलने नहीं दिया लेकिन अंत में उन्हें अपनी बात कहने का शोर के बीच अवसर मिला लेकिन उनके उठाये प्रश्नों के उत्तर नदारद | शीतकालीन सदन में अम्बेडकर जी के सम्मान में दो दिन तक सांसदों ने अपने विचार रखे संविधान की शान में कसीदे पढ़े गये लेकिन तीसरे दिन देश में अचानक उठने वाली असहिष्णुता को विषय बनाया गया सदन में ऐसे मुद्दे उठे जैसे कुमारी सैलजा द्वारा उठाया विषय मुझसे ढाई वर्ष पहले गुजरात के मन्दिर में जाति पूछी गयी | श्री राहुल गाँधी ने अपना विषय उठाया मुझे आसाम के मन्दिर में जाने से आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने रोका संसद में विषय को उठाना लेकिन विवाद का उत्तर सुने बिना वाक आउट करना ऐसा शोर करना जैसे खेल के मैदानों में होता है शायद अगले चुनाव का यही हथियार कांग्रेस और उनके सहयोगियों की समझ में आया है सदन में निरर्थक विषयों को उठा कर ठप्प करो सदन की कार्यवाही को टीवी के माध्यम से देश देखता है जब भी किसी महत्व पूर्ण विषय पर बहस होती है नेता गण बजाय विषय की बात करने के विषय को भटका कर अपने चुनाव क्षेत्रों को सम्बोधित करते नजर आते हैं पूर्व अध्यक्ष संगमा जी ने संविधान पर बहस के दौरान ने कुछ सुझाव दिये उनके अनुसार देश के प्रधान मंत्री लोकसभा सदस्य होने चाहिए डॉ मनमोहन सिंह दो बार प्रधान मंत्री बने वह राज्यसभा के सदस्य थे तथा राज्य सभा के सदस्य अपने राज्य के होने चाहिए सुझाव और भी अनेक सुझाव जनता ने सुने परन्तु सांसदों ने शोर में उड़ा दिये |
सांसदों को मिलने वाली अनेक सुविधों में एक सुविधा संसद कैंटीन का सस्ता अच्छा भोजन है सुबह सस्ता नाश्ता खा कर फिर सदन में हंगामा करो संसद दोपहर के खाने तक स्थगित एक रूपये की चाय मिलती है पियो कैंटीन में दोपहर के समय सस्ता भोजन गृहण कर सदन में एक बार पधार कर शोर मचा कर जनता के प्रतिनिधि घर लौट जाते हैं यदि सदन नहीं चलने देना हैं तो व्यवस्थापिका का औचित्य ही क्या रह जाता है |एक बार प्रधानमन्त्री ने सबके साथ भोजन किया 29 रूपये में भोजन जिसमे मीठा भी था अब दाम दुगने किये गये हैं फिर भी बहुत सस्ता भोजन है मतदाता चाहते हैं और सुविधायें बढ़ा लो परन्तु सदन तो चलने दो सदन की कार्यवाही में टैक्स पेयर का पैसा लगता है जरूरी विधेयक राज्य सभा में लटके हैं उद्योग जगत भी चाहता है सदन चले पर कैसे ?
डॉ शोभा भारद्वाज

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