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मैरी स्क्लाडोवका क्युरी ( मैडम क्युरी ) पार्ट- वन

Vichar Manthan
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maedm kyuri
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर नोबल प्राईज विजेता प्रसिद्ध प्रथम महिला साईंटिस्ट ( भौतिक एवं रसायन शास्त्री दोनों में नोबल पुरूस्कार प्राप्त करने वाली ) मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी पोलैंड के वारसा शहर में 7 नवम्बर 1867 को जन्मी थीं | बचपन से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि थी | उनके माता पिता दोनों शिक्षक थे उन्होंने अपने बच्चों में साइंस के प्रति रूचि जगाई | उन दिनों रशियन साम्राज्य की सीमाएं वारसा तक फैली हुई थीं अत: पोलेंड का यह हिस्सा जारशाही (रशियन ताना शाह ) के नियन्त्रण में था |यहाँ पोलिश इतिहास और भाषा का अध्धयन वर्जित था | एक दिन मैरी की क्लास में पोलिश इतिहास पढाया जा रहा था तभी स्कूल के गेट पर पहले दो लम्बी घंटियाँ और फिर दो छोटी घंटिया बजी |यह संकेत था गेट पर कोई सरकारी आफिसर खड़ा है सबकी पुस्तकें इकट्ठी कर उन्हें सुरक्षित स्थान पर छिपा दिया गया तभी अधिकारी क्लास में आया उसे क्लास में लडकियाँ सिलाई करती दिखाई दीं | मेरी अपनी कक्षा में सबसे छोटी थी अधिकारी ने उससे ही पूछा रशियन महान जार का नाम क्या है ?हम पर शासन कौन करता है ?उनके परिवार में कितने मेंबर हैं उन सबके रैंक क्या हैं? मैरी रशियन भाषा को बहुत अच्छी तरह जानती थी उन्होंने हर प्रश्न का सही उत्तर दिया | अधिकारी संतुष्ट हो कर चला गया| टीचर की आँखें आसुओं से भर गयीं उन्होंने मैरी को गले से लगा लिया मैरी भी रोने लगी क्योंकि उसके परिवार के लोग देश भक्त पोलिश ( पोलैंड वासी )थे | मैरी को पढ़ने का बहुत शौक था जब भी पुस्तक उसके हाथ में आती थी एक बार यदि उस पर नजरें गड़ जाती वह उसे पूरी पढ़ कर ही हटती थी चाहे कितना भी शोर क्यों न हो उसकी तंत्रा कभी नहीं टूटती थी |एक बार वह घर की बड़ी मेज के पास कुर्सी पर बैठी पढ़ रही थी परिवार के बच्चों ने उनके चारो और कुर्सियों लगा दी और सिर के ऊपर भी कुर्सी से ढक कर पिंजरा बना दिया जब मेरी ने पुस्तक खत्म कर हाथ फैलाये कुर्सियां लुढकने लगा वह खिलखिला कर हंस पड़ी |
अच्छे दिन अधिक समय तक नहीं रहे वह दस वर्ष की थी उसकी माँ का देहांत हो गया लेकिन बड़ी बहन ब्रूनिया ने माँ की जगह ले ली परिवार आर्थिक संकट से गुजरने लगा | पिता के विचार जारशाही के विरुद्ध थे उन्हें अपने पोलिश होने पर गर्व था अत: उनकी मासिक तनखा आधी कर दी गयी अब उनके पास बच्चों को पढाने के लिए पर्याप्त धन नहीं था | मैरी छोटी आयु में ही ट्यूशन पढ़ाने लगी ठंड और बारिश में दूर तक पैदल जाना पड़ता वहाँ भी अक्सर मातायें कह देती थी बैठो इंतजार करो बच्ची आ रही हैं वह इंतजार करती रहती थीं लेकिन जब महीना खत्म होता घर की मलकिन पैसा देना अक्सर भूल जाती थी जबकि मेरी को पैसे की बहुत जरूरत थी | इंटरमीडिएट की परीक्षा में मैरी ने प्रथम स्थान हासिल किया लेकिन वारसा में उच्च शिक्षा का इंतजाम नहीं था स्कूली शिक्षा समाप्त होने के बाद वह वारसा में फ्लोटिंग यूनिवर्सिटी में पढने लगी यहाँ गुपचुप तरीके से क्लासें लगती थी पढाई के इच्छुक विद्यार्थी यूनिवर्सिटी में पढ़ाए जाने वाले विषय पढ़ते थे भावी योजनायें बनाते थे पोलैंड के लोगों के आने वाले भविष्य की चिंता करते थे | मैरी अपनी बहन से बहुत प्यार करती थी ब्रूनिया डाक्टरी पढ़ कर पोलेंड की सेवा करना चाहती थी लेकिन उच्च शिक्षा पेरिस में ही संभव थी | मेरी ने बहन को सलाह दी वह पेरिस जा कर पढ़ाई करे उसके पास जो भी जमा किया पैसा है उससे वह कितना समय निकाल सकती है ब्रुनिया के पास पेरिस जाने के खर्चे के अलावा एक वर्ष तक खर्चा चलाने लायक पैसा था जबकि डाक्टरी की पढाई पांच वर्ष की थी बहन ने मैरी से आग्रह किया वह काम करेगी वह पैरिस जा कर पढाई करें | परिवार की स्थिति ऐसी नहीं है दोनों साथ मिल कर पढ़ाई पूरी कर सके | बहन बड़ी थी मैरी ने समझाया वह अभी उन्नीस वर्ष की है छोटी है बाद में भी पढ़ाई कर सकती है | बहन की मदद से वह पढ़ सकेगी अभी वह किसी परिवार में गवर्नेंस का कार्य कर बहन का खर्चा उठा लेगी | अपनी छोटी बहन के प्रस्ताव पर ब्रूनिया की आँखों में आंसू आ गये | बहन पढ़ने पेरिस चली गयी | कम उम्र की खामोश मैरी ट्यूटर और गवर्नेंस का काम करने लगी जिन्दगी कठिन थी परन्तु उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया | खाना और रहना मुफ्त था अत: तनखा बच जाती थी उसकी साइंस की पढाई भी चल रही थी | यहाँ घर के मालिक का लड़का जो बाहर रहता था घर आया उसने सबसे अलग संजीदा शांत तेजस्वी लड़की को देखा, उसका आकृष्ट होना स्वाभाविक था दोनों में प्रेम बढ़ा दोनों शादी करना चाहते थे परन्तु यहाँ दोनों की आर्थिक स्थिति का फर्क सामने आ गया | युवक का पिता क्रोध से लाल पीला हो गया माँ लगभग बेहोश हो गयी उनकी समझ नहीं आ रहा था निर्धन लड़की में ऐसा क्या है ?मैरी निर्धन जरुर थी लेकिन सभ्रांत परिवार की थी ? प्रेम की असफलता पर मैरी दुखी जरुर थी लेकिन उसका दिल नहीं टूटा था वह अपने पिता के पास घर लौट आई | बड़ी बहन की शिक्षा लगभग पूरी होने वाली थी | उसका अपने साथ पढ़ने वाले डाक्टर के साथ विवाह भी हो गया अब ब्रूनिया की बारी थी उसने मैरी को पेरिस बुलाया जिससे वह अपनी शिक्षा शुरू कर सके |मैरी ने अपने बचाए पैसों को गिना उसके के पास कुछ पैसा बचा था | मैरी का इंतजार पेरिस में उसका भविष्य कर रहा था | उसके पिता उसके मेंटर ने स्टेशन पर बेटी को गले लगा कर कर आशीर्वाद दिया | मैरी ने उनसे कहा वह अपनी पढाई पूरी कर उनके पास लौट आएगी | कम से कम पैसे में छोटी सी केबिन में अपनी सीट पर बैठी मैरी लम्बी यात्रा पर अंधकार से प्रकाश की और जा रही थी सब कुछ भविष्य के गर्भ में था | बहुत सादे कपड़े पहनने वाली खामोश संजीदा गवर्नेंस मैरी का एडमिशन फ्रांस के सोरबोनी विश्वविद्यालय में हो गया | |मेरी अधिक समय तक अपनी बहन के पास नहीं रह सकीं क्योंकि उनका घर यूनिवर्सिटी से बहुत दूर था उसका सारा समय आने जाने में निकल जाता था अत:यूनिवर्सिटी के पास एक सस्ता कमरा जो छठी मंजिल था किराये पर लिया |कमरे में छोटी सी खिड़की थी मैरी का सामान एक पलंग ,कुर्सी कपड़े धोने और नहाने के लिए एक बर्तन, एक स्टोप और लैम्प थी बहन ने भी मदद की लेकिन कम पैसे में किताबों, कमरे का किराया खाने का खर्च निकालना था कमरा भी कैसा ठंड में बहुत ठंडा गर्मी में गर्म रहता | पेरिस की बर्फीली सर्दी कभी कभी बहुत लम्बी हो जाती थी शरीर को गर्म रखने के लिए कोयला खत्म हो जाता था रात को ठिठुरती मैरी जो भी उसके पास कपड़े थे अपने ऊपर डाल लेती थी सिमट कर बिस्तर पर गठरी की तरह लेट जाती थी उँगलियाँ और कंधे सर्द पड़ने लगते थे लेकिन सो जाती थी | दुबली पतली पोलिश लड़की से ठंड भी हार मान जाती थी | उसका जितना सस्ता खाने से काम चल सकता ब्रेड, मक्खन चाय कभी कभी दो अंडे या केक भी खरीद सकती थी |ठंड में एक गर्म सूप पीने की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थीं |कुछ फल कच्ची सब्जी से भी काम चलाना पड़ता था क्योकि मैरी की जरूरतों में किताबों का बहुत महत्व था |पढ़ते-पढ़ते भूखी मैरी का सिर चकराने लगता वह बिस्तर पर लेट कर सो जाती थी | वह कमजोर हो रही थी | एक दिन अपनी मित्र के सामने चक्कर खा कर गिर पड़ी उसकी बहन को खबर की गयी उसका पति डाक्टर था तुरंत पहुँचा खाली कमरे को देखा यहाँ खाने के नाम पर चाय का पैकेट था पूछने पर पता चला उसने एक दिन पहले केवल कुछ फल खाए या बिना पकी सब्जी खायी थी| वह रात के तीन बजे तक पढ़ती थी सोने के लिए चार घंटे बचते थे | बहन के घर लायी गयी बहन मैरी को देख कर रोने लगी परन्तु मेरी भी दुखी थी वह अपना काम कैसे पूरा करेगी पोष्टिक भोजन से उसमें जान आई वह अपने कमरे में लौट आई लेकिन जीने का तरीका नहीं बदला जबकि बहन की मदद का हाथ उसके सिर पर था |मेरी के जीवन के यह दिन दुखद थे परन्तु संतोष था वह अकेली अपने छोटे से कमरे में अपने हिसाब से पढ़ती थी पैरिस में पढ़ते समय मैरी की मेहनत का परिणाम सामने आया उन्हें स्कालरशिप मिला वह अपनी पढाई का खर्चा उठा सकती थीं बहन पर भी बोझ नहीं बनीं | अपने काम से संतुष्ट थी अपने अध्यापकों की प्रिय शिष्या थीं | वह पढ़ती थी या सोचती रहती थी कभी – कभी साईकिल लेकर हरियाली में निकल जाती थी मन में उठने वाली जिज्ञासा का समाधान सोचती उन दिनों साइंस एक अंधा कुआँ था | निर्धन लड़की कभी प्रेम के बारे में सोच भी नहीं सकती थी कच्ची उम्र के प्रेम को वह कब का भूल चुकी थी| वह देर तक प्रयोगशाला में काम करतीं रहती थी लेकिन उनके जीवन में भी प्रेम ने दस्तक दी उनके साथ लैब में काम करने वाले फ्रेंच साईंटिस्ट पियरे क्यूरी दोनों के विचार मिलते थे, एक दूसरे को पसंद करने लगे , प्रेम हुआ और विवाह के बंधन में बंध गये | कुछ समय के लिए दम्पत्ति पैरिस छोड़ कर निकल गये | जंगल में घूमते हुए वह भविष्य की योजनायें बनाते , साइंस की बात करते कैसे अपनी लैब बनायें जहाँ रिसर्च कर सकें | अब मेरी का नया घर था यह भी सबसे ऊपर था यहाँ भी ज्यादा फर्नीचर नहीं था मेज , मेज पर किताबें दो कुर्सियों पर विराजमान दम्पत्ति केवल रिसर्च से सम्बन्धित चर्चायें | दोनों एक दूसरे के सच्चे जीवन साथी थे |अब मेरी अकेली नहीं थी उसे अपने पति के लिए खाना बनाना था उसने सूप बनाना भी सीख लिया था परन्तु वह जो भी पकाती ज्यादा समय उसमे नहीं लगाती थी जिन्दगी में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया था | वही आठ घंटे लैब में काम करना घर में पढना या लिखना यह कार्यक्रम तीन बजे तक चलता था घर की दीवारों को तीन बजे के बाद ही अँधेरा नसीब होता था क्योंकि सुबह जल्दी उठना है | डॉ शोभा भारद्वाज

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