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‘भविष्य दृष्टा बाबा साहब अम्बेडकर ‘पार्ट -1

Vichar Manthan
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महान ज्ञानी ,विचारक श्री बाबा साहेब डॉ अंबेडकर के विचारों को जितना पढ़ते जायेंगे आप उनमें डूबते जायेंगे | महान भविष्य दृष्टा ,ज्ञानी महापुरुष पुरुष ने भारत की भूमि में 14 अप्रैल 1891 में जन्म लिया जहाँ इंसान और इंसान में केवल जन्म के आधार पर फर्क किया जाता रहा है जिससे हिन्दू समाज ने समाज के बहुत बड़े वर्ग को अपने आप से अलग कर दिया था | समाज के ऐसे कोढ़ को हमने सदियों सीने से लगाये रखा जिसको पूरी तरह से आज भी मिटाया नहीं जा सका है |अनेक महापुरुषों ने समाज की इस विकृति का विरोध किया लेकिन सकारात्मक रूप से बाबा साहेब ने इसपर काम किया वह स्वयं भी इसके शिकार थे |उनके अनुसार हम मुस्लिम और क्रिश्चियन समाज से गले मिल सकते हैं लेकिन अपने हिन्दू भाईयों को अस्पृश्य कह कर उनको अपने से दूर करते हैं | बाबा साहेब ने स्वराज का अर्थ सबका स्वराज्य, देश की आजादी सबकी आजादी माना | गाँधी अस्पृश्यता के खिलाफ आन्दोलन छेड़ चुके थे उन्होंने दलित समाज को हरिजन का नाम दिया लेकिन बाबासाहेब को यह नाम स्वीकार नहीं था उनके अनुसार हमें भी आम इन्सान जैसा समझों | भारत की कुरीतियों की जड़ में ब्रिटिश सरकार पहुंच गयी थी |लन्दन में ब्रिटिश प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में होने वाले गोलमेज सम्मेलनों की बैठकों में डॉ. अम्बेडकर ने भारत में दलितों की दुर्दशा बताते हुए उनकी सामाजिक, राजनीतिक स्थिति में सुधार के लिए दलितों के लिए “पृथक निर्वाचन” की मांग रखी। पृथक निर्वाचन में दलितों को दो मत देना होगा जिसमें एक मत दलित मतदाता, केवल दलित उम्मीदवार को देते और दूसरा मत वे आम जाति के उम्मीदवार को दें | ऐसा सुअवसर ब्रिटिश सरकार कैसे हाथ से कैसे जाने देती प्रधानमंत्री सर रेमजे मैकडोनल्ड ने 17 अगस्त 1932 को कम्युनल एवार्ड की घोषणा की उसमें दलितों के पृथक निर्वाचन की मांग को स्वीकार कर लिया था। महात्मा गाँधी आहत हो गये यह हिन्दू समाज के विशाल वर्ग के टूटने का संकेत था उन्होंने 20 सितम्बर 1932 को इसके विरोध में यरवदा जेल में आमरण अनशन करने की घोषणा कर दी। महात्मा गाँधी की दशा बिगड़ने लगी अब बाबा साहेब पर दबाव बढ़ा परन्तु वह भी अड़ गये वह समझ गये थे यही अवसर दलितों के हित में है उनके लिए राजनीतिक अधिकार लिये जा सकतें है जिससे उनकी आर्थिक और सामाजिक हालत में सुधार आ सकेगा |गांधी जी समाज की एकता के लिए जान देने को तैयार थे 24 सितम्बर 1932 को सर तेज बहादुर सप्रू ने दोनों से बात करने के बाद बीच का रास्ता निकाला | गाँधी जी दलितों को केन्द्रीय और राज्यों की विधान सभाओं एवं स्थानीय संस्थाओं में उनकी जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व देना एवं सरकारी नौकरियों में भी प्रतिनिधित्व देना स्वीकार करें यही नहीं शैक्षिक संस्थाओं में दलितों को विशेष सुविधाएं दी जायें गांधी जी ने इसे सहर्ष मान लिया यह दलित समाज के लिए लाभ का सौदा था यह समझौता पूना पैक्ट कहलाता है पूना पैक्ट से ही दलितों के लिए आरक्षण की व्यवस्था उनकी उन्नति की आधारशिला बनी।
बाबा साहब ने हिन्दू और मुस्लिम समाज दोनों को आयना दिखाया और उन्होंने इस्लाम मे कट्टरता की आलोचना की जिसके कारण इस्लाम की नातियों का कट्टरता से पालन करते हुए समाज और कट्टर हो रहा है उसको बदलना बहुत मुश्किल हो गया है।यही नहीं भारतीय मुसलमान अपने समाज का सुधार करने में विफल रहे हैं अपने आप को समता वादी कहते हैं केवल मीठी बातें करते हैं | अतातुर्क के नेतृत्व में टर्की जैसे देशों ने अपने आपको बहुत बदल लिया है मुस्लिमो मे बाल विवाह और महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घोर निंदा की। है |वह पर्दा प्रथा के विरोधी थे हिन्दुओं में भी यह प्रथा प्रचलित है लेकिन इसे धर्मिक मान्यता केवल मुसलमानों ने दी है। दोनों समाजों में उन्होंने सामाजिक न्याय की मांग की|
उन्होंने अपनी पुस्तक थाट्स आन पाकिस्तान में लिखा कांग्रेस की नीति सदैव मुस्लिम तुष्टिकरण की रही है| प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन के विरुद्ध टर्की ने जर्मनी का साथ दिया ब्रिटेन ने युद्ध जीतने के बाद टर्की का विभाजन कर खलीफा का पद समाप्त कर दिया जिससे भारतीय मुस्लिम उत्तेजित हो गये | इस्लाम जगत मे खलीफा का बहुत महत्व है अत:अली बन्धुओं के नेतृत्व में भारत में आन्दोलन चलाया गया जिसे खिलाफत आन्दोलन कहा गया यह दूर देश स्थित खलीफा को गद्दी से हटाने के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया आन्दोलन था | | बालगंगा धर तिलक एवं गांधी जी ने खिलाफत आन्दोलन को हिन्दू मुस्लिम एकता के रूप में देखा |नवम्बर 1919 को आल इंडिया खिलाफत सम्मेलन में गाँधी जी को अध्यक्ष चुना गया तथा 1 अगस्त 1920 को कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन के दो ध्येय घोषित किये गये “स्वराज्य तथा खिलाफत की मांगों को स्वीकृति इसे डॉ अम्बेडकर ने एकता की कीमत पर खिलाफत आन्दोलन का पक्ष लेना माना | टर्की मेंआधुनिक विचारों के मुस्तफा कमाल पाशा ने सत्ता पर अधिकार कर लिया खिलाफत आन्दोलन अपने ही देश में खत्म हो गया |
मुस्लिम लीग ने जिन्ना के नेतृत्व में 23 मार्च 1940 में अलग पाकिस्तान का प्रस्ताव रखा उसको अधिकतर विचारक कोरी कल्पना समझ रहे थे परन्तु बाबा साहब की ने हवा के रुख को पहचान लिया था |वह ब्रिटिश कूटनीति और मुस्लिम विचार धारा को समझते थे अत: मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति की घोर आलोचन की और देशों में भी जैसे कनाडा आज भी अंग्रेज और फ्रांसीसी एक साथ रहते हैं, तो क्या हिंदु और मुसलमान साथ नहीं रह सकते ? उन्होने तर्क द्वारा दोनों पक्ष रखे हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक किया जा सकता है और पाकिस्तान का गठन भी हो जाएगा यदि नहीं किया जाएगा देश में हिंसा भड़केगी लेकिन बटवारा होने के बाद । विशाल जनसंख्या का स्थानान्तरण आसान नहीं है यही नहीं बाद में भी सीमा विवाद की समस्या बनी रहेगी । भारत की स्वतंत्रता के बाद होने वाली हिंसा को ध्यान मे रख कर यह भविष्यवाणी कितनी सही थी| पन्द्रह अगस्त की सुबह सूयोदय के साथ नव प्रभात लाई | यह नव प्रभात क्या सुख कारी था ?लाखों लोग घर से बेघर अनिश्चित भविष्य की खोज में काफिले के काफिले हिन्दोस्तान की और चलने के लिए मजबूर कर दिए गये थे कुछ लोग जो कभी अपने घर के पास के शहर के अलावा कहीं नहीं गये थे वह नही जानते थे अब उनका घर कहाँ बसेगा बेहालों को बसाना आसन नहीं था|अंत में कटी हूई लाशों से भरी रेलगाड़ियों आने लगीं|इधर भारत की और से भी मुस्लिमों के साथ यही प्रतिक्रिया होने लगी | लगभग 10 लाख लोगों की हत्या हूई | आज भी भारत पाकिस्तान दुश्मन देश हैं शान्ति के सभी प्रयास विफल हो जाते हैं | भारतीय मुस्लिम को सभी राजनीतिक दल वोट बैंक के रूप में देखते हैं जिनके एक मुश्त वोट सत्ता पाने की सीढ़ीं बन सकते हैं |
गांधी जी और कांग्रेस के कटु आलोचक होते हुए भी उनकी प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी देश के लिए सर्व मान्य संविधान बनाने का प्रश्न उठा नेहरु जी जर्मनी के संविधान विशेषज्ञ को बुला कर यह कार्य सोंपना चाहते थे लेकिन गाँधी जी ने बाबा साहब की अध्यक्षता में संविधान सभा को यह कार्य सोंपा | बाबा साहेब ने संविधान में दिए मौलिक अधिकारों में पहला अधिकार समानता के अधिकार को दिया राज्य की दृष्टि से सभी समान हैं दूसरा स्वतन्त्रता का अधिकार , धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया ,नागरिक स्वतंत्रताओं को सुरक्षा प्रदान की |समता और स्वतन्त्रता से ही बन्धुत्व आता है | अम्बेडकर ने महिलाओं के लिए भी आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों मे आरक्षण प्रणाली के लिए संविधान सभा का समर्थन हासिल किया, भारत के विधि निर्माताओं ने इस सकारात्मक कार्यवाही के द्वारा दलित वर्गों के लिए सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन और उन्हे हर क्षेत्र मे अवसर प्रदान कराने की चेष्टा की |
अनुसूचित जाति और जन जाति के लिए दस वर्ष तक के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी जिसे संविधान संशोधनों द्वारा समय –समय पर बढाया गया आगे जा कर पिछड़ी जातियों को भी आरक्षण दिया गया |सर्वोच्च न्यायालय ने 50% तक आरक्षण की सीमा तय की है |आरक्षण दलित शोषित समाज के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ लेकिन तीन पीढियों तक आरक्षण का लाभ उठाने के बाद भी आरक्षण को छोड़ नहीं रहे हैं जिससे दलितों के बहुत बड़े गरीब वर्ग को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा हैं| आरक्षण में क्रीमी लेयर को हटाने का प्रयत्न किया गया लेकिन सम्भव नहीं हो सका अब तो पिछड़ी जातियों के वर्ग में आरक्षण लेने की होड़ लगी है |आरक्षण का लालच दिखा कर राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं| हरियाणा जाट आरक्षण की आग में जला पटेल समाज भी आरक्षण के लिए संघर्ष करने लगा आरक्षण का नारा नेता गिरी की सीढ़ी बन गया है |
डॉ अम्बेडकर ने संविधान को आकार देने के लिए पश्चिमी मॉडल का इस्तेमाल किया है पर उसकी भावना भारतीय थी ।26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को भारतीय संसद को सौंपा अपने काम को पूरा करने के बाद, बोलते हुए डॉ अम्बेडकर ने कहा :मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है , देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।
डॉ शोभा भारद्वाज

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