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प्रदूषण रहित हरी भरी धरती जल से भरी नदियाँ ?

Vichar Manthan
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दिल्ली में यमुना जी के कुदसिया घाट पर एक सन्यासी भोर की लालिमा फैलने से पहले डुबकी लगाते समय गाता था |
तेरो री दरस मोहे भावे श्री यमुना मैया |
दुःख हरनी सुख करनी मैया यम को त्रास मिटावे |
सारे वातावरण में स्वर लहरी फैल जाती थी मैं बहुत छोटी थी, आज भी वह दृश्य याद है | आज पूरे शहर की गंदगी ढोते नाले ,कारखानों का कूड़ा ,रसायनिक कारखानों का जहरीला कचरा यमुना में बहाया जा रहा है | यमुना का असली रूप भी बरसात के दिनों में दिखाई देता है जब हथनी कुंड बैराज से बाढ़ का पानी छोड़ा जाता है | गंगा जी के घाट पर संध्या की आरती धार्मिक कृत्य माना जाता है जिसकी छटा ही निराली होती है ऐसा लगता है गंगा मंद-मंद बहती हुई आरती के बोल गुनगुना रही हैं यह दृश्य दिखाने के लिए मोदी जी जापान के प्रधान मंत्री शिंजो अबे को बनारस के घाट पर लाये थे | गंगोत्री से निकल कर कल कल बहने वाली गंगा को कई बड़े शहर में से होकर गुजरती है जन मानस की प्यास बुझाती गंगा सागर तक पहुंचने के लिए लम्बा सफर तय करती हैं रास्ते में कई नदियाँ गंगा में मिलती हैं लेकिन पतित पावनी नदी भी प्रदूषित कर दी गयी है |जिस जल में कभी दुर्गन्ध नहीं थी आज उस जल में स्नान करना ,आचमन करना मुश्किल हो गया है पानी सिचाई के योग्य भी नहीं रहा है । गंगा के पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त। 2007 की यु एन रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर स्थित गंगा की जलापूर्ति करने वाले ग्लेशियर की 2030 तक समाप्त होने की संभावना है। इसके बाद नदी का बहाव मानसून पर आश्रित होकर मौसमी ही रह जाएगा।] नदी प्राण तत्व मानी जाती हैं न जाने कितनी सभ्यताए इन्हीं नदी के तटों पर बन गयी मिट गयी
कहते हैं जरूरत की वस्तुयें धरती के ऊपर हैं लेकिन मूल्यवान धातुयें नीचे और नीचे जाने पर मिलती हैं अब बड़े शहरों में पानी की खपत इतनी बढ़ गई है रेनी कुएं बनाने के लिए धरती को गहरे से गहरा खोद कर पानी निकाला जाता है |जिनकी आर्थिक स्थित अच्छी है शान से जीना चाहते हैं बाथ टब में नहाना चाहते है जब चाहे मन मुताबिक ताजा ठंडा पानी मिल सके नीचे – और नीचे खोदते जाते हैं पानी मिल जाता है लेकिन जल स्तर गिरता जाता है घरों में सबमर्सिव लगें हैं कई बार एक गिलास ताजा पानी पीने के लिए मोटर चला कर कितना पानी नाली में बहा दिया जाता है इसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता धान की खेती के लिए भी धरती से जल को निकाला जाता पानी से भरे खेत देख कर भ्रम होता है जैसे अभी मुसलाधार बारिश हुई है | मूसलाधार वर्षा के समय रेन हार्वेस्टिंग की कोइ सुविधा नहीं है न लोग घर बनाते समय जानना चाहते हैं न ही इससे सम्बन्धित विभाग समझाने का इच्छुक है |लोगों ने उनका घर सुंदर दिखे धूल न आये सडक तक संगमरमर बिछा लिया है लेकिन बरसात के दिनों में धरती में पानी समाने की जगह नहीं रहती | बड़े नालों से बरसात का पानी बहता है परन्तु बदबू न आये कुछ अधिक समझदार बाशिंदे नालों में जाने वाली नालियों के मुहं बंद कर देते हैं बारिश में सडकें भर जाती हैं एक विदेश से आई दो वर्ष की बच्ची हैरानी से सडक पर भरा पानी देख कर चीखी ‘रिवर औन दा रोड ‘ उनके देश में बारिश के साथ ही निकासी की व्यवस्था है और बरसाती पानी के इस्तेमाल की भी व्यवस्था है | बड़ी- बड़ी कलोनियाँ बन गयीं पार्को की संख्या में कमी नहीं है परन्तु जल एक स्थान पर इकट्ठा न हो कर नालों में बहता है घनघोर बारिश भी बेकार जाती है|
छिडकाव के नाम पर हाथ में पाइप ले कर घर के चारो तरफ छिडकाव करते जल से खेलते समय चेहरे पर कितनी तृप्ति और निर्लज्ज मुस्कराहट दोनों देखी जा सकती है |वह भी उस पानी से जब जल विभाग का पानी आता है उससे घर के सामने सड़क तक धो डालना रोज का शुगल बन गया है जबकि तेज धूप में पानी ठंडक देने के बजाय उमस बढ़ाता है | घर में यदि नल खराब हैं कोई बात नहीं टपकने दीजिये बहने दें सरकारी पानी है कुछ घरों में रात को उठना न पड़े कूलर में सीधे टंकी से पाईप जोड़ दिया जाता है रात भर पानी टपकता रहता है | चाणक्य के अर्थ शास्त्र में लिखा है पानी कभी भी मुफ्त में नहीं दिया जाना चाहिए आज मुफ्त पानी चुनाव जीतने की गारंटी है जम कर वोट मिलेंगे | पानी कहाँ से आयेगा ?लोग पीने के पानी को तरस रहें हैं 12 प्रदेश सूखा ग्रस्त हैं बारिश कम हुई थी नदियाँ हैं परन्तु सूख गयी है कई मील चल कर घर की जरूरत का पानी लाया जाता है आने वाले समय में जल का ऐसा संकट आ सकता है लोग जल के लिए आपस में लड़ेगे |
पाईप द्वारा जल सप्लाई होती हैं उनसे टूट फूट हो जाने पर पानी निरंतर बहता रहता है| जगह – जगह झुग्गिया कुकुर मुक्ते की तरह उग आई है निवासी पास से निकलने वाली पाईपों को चटका लेते हैं उनसे बहने वाले मीठे जल से दिनचर्या निपटाई जाती है पानी के रास्ते कितनी गंदगी रिस कर घरों तक पहुंची कितना पानी बह जाता है अनुमान नहीं टोकने पर गरीबी की दुहाई |देश के कई क्षेत्र जहाँ लोग सूखे की चपेट में हैं बच्चे बूढ़े जवान महिलायें पानी की खोज में लगे रहते हैं एक – एक बूंद पानी के लिए तरसते लोग | राजनेता जल पर भी राजनीति करते राहत पहुँचाने की बड़ी – बड़ी कागजी घोषणाएं करते हैं हैं सिर झुका कर इन्सान जीने के लिये पीने का पानी ढूंढता रहेगी है ,कोई मांग नहीं होगी बस चुनाव के समय सब्ज बाग़ दिखा कर वोट मांगनें हैं | सूखती खेती सूखी फटी धरती बादलों की बाट देखते लोग |
हम वृक्षों के भी दुश्मन हैं जंगल जरूरत की लकड़ी के नाम पर काट रहें हैं लकड़ी के इस्तेमाल से हम अपने घरों को सजाते हैं |जंगल के ठेकदार हरे भरे जंगलो में आग लगा देते हैं हरी भरी प्रकृति कई दिनों तक धधकती रहती है इसी आग की आड़ में जंगल के जंगल काट लिए जाते हैं | आज तीन प्रदेशों के जंगलों में आग लगी है पहले उत्तराखंड के जंगल धधक रहे थे |अब हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के रजौरी तक आग फैल रही है सुना था दावानल सब कुछ निगल जाता है समझ में आता है हमारा वनों की देख रेख करने वाला विभाग कितना सुस्त हैं | जंगलों की आग बुझाने के लिए भी आकाश की तरफ देखते हैं धधकती आग से ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा है इन्हीं ग्लेशियरों से साल भर तक नदियों में जल आता है तीन बड़ी नदियाँ गंगा गंगोत्री के ग्लेशियर से निकलती है यमुना यमुनोत्री से निकल कर मैदान की तरफ आती है और दूर तक मैदानी इलाकों की प्यास बुझाती है ऐसे ही अलकनंदा पहाड़ियों से अटखेलियाँ करती हुई धरती को सीचती है| घने जंगलों के ऊपर एक नमी रहती हैं जो बादलों को आकर्षित करती है जिससे घनघोर वर्षा होती है ,वर्षा भी अब कम होती जा रही है |वनों की गोद में जीवन दायनी औषधियों के पेड़ पोधे फलते फूलते हैं |विशाल वृक्षों में अनेक पंछियों का बसेरा होता है |वनों मे अनेक जीव जन्तु पलते हैं इन जीवों को मार कर उनकी खाल विश्व बाजार में बेचीं जाती हैं |शेर के सिर और हिरणों की खाल ड्राईंग रूम की शोभा बढ़ाते हैं घर के बाहर सरकार द्वारा लगाये बरगद,नीम, जामुन, गुलमोहर ,पीपल अन्य कई तरह के वृक्ष हमे अच्छे नहीं लगते उन्ही वृक्षों को बोनसाई (छोटा कर ) गमलों में अपने घर में खास जगह लगाना चाहते हैं यह छोटे-छोटे सजावटी पोधे हमें अच्छे लगते हैं यह कुछ लोगों का शोक बन गये हैं |हरे भरे पेड़ के नीची कूड़ा जलाने के लिए अक्सर देखा जा सकता है |
धरती का हम दोहन कर सकते है परन्तु जब वह करवट बदलती है “धरती कहती है यह नश्वर पुतले सोचते हैं इन्होने मेरे ऊपर अधिकार कर लिया ,खून की नदियाँ पार कर मुझे सीमाओं में बाट लिया ,एक –एक टूकड़े पर लड़ने वाले यह नहीं जानते मैं चाहूं तो सब कुछ उल्ट पुलट कर रख दूं मेरी छाती में धधकते ज्वालामुखियों से बहने वाले लावे में कई सभ्यतायें दब गई |जहाँ फटी वहीं हजारो लोग मुझमें समा गये मेरे सागर से उठने वाली लहरें सब कुछ बहा कर ले जाती हैं |हाल ही में ऐसी सूनामी लहरे आई जिन्होंने साऊथ ईस्ट एशिया के द्वीपों में मौत का तांडव मचा दिया कई युगों को लील कर आज भी मैं अपनी धुरी पर घूम रही हूं|” पृथ्वी को हरा भरा रख कर प्रकृति का सम्मान करने से हो मानव सभ्यता जिन्दा रह सकती है |
डॉ शोभा भरद्वाज

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