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फिल्म सर्वजीत, पकिस्तान जेल में बंद रहे भारतीय की दर्द भरी दास्तान

Vichar Manthan
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डायरेक्टर उमंग के डायरेक्शन में बनी सच्ची कहानी पर आधरित फिल्म सर्वजीत पकिस्तान के बार्डर के पास के पंजाब राज्य के गावं के साधारण किसान की कहानी है | अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट मस्त मौला सर्वजीत दो बच्चियों का पिता शराब के नशे की हालत में घर की तरफ जाने के बजाय बार्डर पार कर जाता है यहीं से उसके दुर्भाग्य की कहानी शुरू हो कर उसकी दर्दनाक मौत के साथ खत्म होती है | सर्वजीत पाकिस्तानी रेंजरों के हाथ में पड़ जाता है पाकिस्तान के ख़ुफ़िया विभाग को उसमें आतंकवादी रंजित सिंह नजर आता है जिस पर उन्हीं दिनों होने वाले बम विस्फोटों का इल्जाम था | उसे रंजित सिंह बनाने में ऐसी यातनाओं से गुजरना पड़ता हैं जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता न दाद न फरियाद बस दर्द ही दर्द | कहानी भारत में उसका बूढ़ा पिता बहन पत्नी और दो बच्चियों की सर्वजीत के लिए निरंतर किये गये संघर्ष की गवाह है |कहानी की सबसे बड़ी विशेषता पटकथा ,कथा का विस्तार और डायलोग हैं जो दर्शकों के दिल में उतरते हुए उन्हें सर्वजीत के साथ जोड़ देते हैं |भारत पाकिस्तान सीमा पर मजबूत बाड़ को देख कर बहन कहती है काश यह तीन वर्ष पहले लगा देते |मानवाधिकार वादी वकील कहता है जानता हूँ आप लोग सीधे रास्ते से जाओगे बार्डर में एक जगह ऐसी है जहाँ कोई बार्डर नहीं है वह दरगाह का दृश्य है | सर्वजीत अपने आप से बाते करता हुआ अपने अकेलेपन का अहसास दिलाता है |दर्शक आँखों से आंसू बहाते उसके दर्द से जुड़ जाते हैं |लेखिका ने स्क्रीनप्ले लिखते समय भारत पाकिस्तान के बिगड़ते राजनैतिक हालात का भी ध्यान रखा है |पकिस्तान भारत को अपना दुश्मन मुल्क समझता है अब सबंध और बिगड़ रहे है पोखरन में परमाणु परिक्षण पकिस्तान में असुरक्षा का वातावरण , भारतीय संसद पर पाकिस्तान के भेजे आतंकवादियों का हमला जिसमें हमारे सुरक्षा में लगे जांबाज शहीद हुए ,26/11 भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई आतंकवाद के निशाने पर लेकिन ज़िंदा आतंकवादी कसाब का पकड़ा जाना पाकिस्तान में लश्कर का बढ़ता प्रभाव लेखिका ने डायलाग के माध्यम स्क्रीन पर उतारे हैं | स्थान-स्थान पर छोटे – छोटे डायलोग द्वारा सर्वजीत दर्शको को हिला देते हैं बिल्ली से बाते करना , मेरे पास थोड़ी देर के लिए बैठ जाओ मैं किसी के गले लगने को तरस गया , जब कैद हुआ था उसकी बच्ची गोद में खेलती थी उसको देख कर पूछना तू मेरी निक्की आं दर्शक उसी घुटन को महसूस करने लगते हैं जिससे जुल्म का शिकार निर्दोष गुजर रहा हैं | किस तरह टार्चर सेल में नरक भोगता सर्वजीत रौशनी को भी तरसता है | बड़ी मुश्किल से वीजा मिलने पर उसका परिवार उससे मिलने आता है उसकी पत्नी और बहन उसके मन की पीड़ा को बांटना चाहते हैं उसकी सुनना अपनी सुनाना चाहते हैं लेकिन डायरेक्शन का कमाल उसकी बेटी को उसके पैरों के जख्म जो अब नासूर बन गये हैं दिखाई देते हैं | कहानी के अंत में पिता की कटी उंगलियाँ, जो पाकिस्तान की भारत के प्रति नफरत का ब्यान करती है| भारत के खिलाफ वहाँ की सरकारों का विष वमन एक काफिर शब्द में सब कुछ छिपा हैं | पाकिस्तान विश्व समाज में सिद्ध करना चाहता है भारत उनके खिलाफ आतंकवादी कार्यवाहियाँ करवा रहा है | बिलोचिस्तान में उनके खिलाफ उठने वाली आवाज के पीछे भारत का हाथ है |परिवार के प्रयत्नों से पाकिस्तान जेल में बंद निर्दोष सर्वजीत ,रणजीत के नाम से नारकीय जीवन बिता रहा है उसे अपनी पहचान मिलती है | दलबीर पाकिस्तान में का हैरान हो कहना दोनों देशों के बाशिंदों में एक सा खून है अब क्या हो गया इतनी नफरत क्यों ?दर्शकों का दिल जबाब देता है दीवार जो 1947 मे खिची थी |मुशर्रफ की सरकार गयी चुनाव हुए सरकार बदली पाकिस्तान की कूटनीति के शिकार सर्वजीत को मुक्ति नहीं मिली, जेल में तालिबानों का उस पर किया गया हमला नृशंस हत्या अंत में ताबूत में बंद सर्वजीत का शव उसके गाँव में पहुंचता है | हर राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी जानता है सर्वजीत पाकिस्तान में भारतीय कैदियों पर किये गये जुल्मों का प्रत्यक्ष उदाहरण है उसे ज़िंदा कैसे आने देते | दर्शकों के पैर जम जाते हैं हुड्डा सर्वजीत नजर आता है दिल को छू लेने वाला अभिनय बोलने का ढंग व्यवहार में झलकती पंजाबियत उत्तम ढंग से कहानी की पटकथा में हर अभिनेता अपना -अपना किरदार अदा कर रहा है| अभिनय इतना सजीव है लगता ही नहीं हम राजधानी के थियेटर में फिल्म देख रहे है हमें लेखिका अपने साथ जहाँ चाहती है ले जारही हैं | दर्शकों की आँखों से बहते आँसू हाल से बाहर आकर भी नहीं थमते यही सर्वजीत के लिए सच्ची श्रद्धांजली है | कहानी 1990 से शुरू हो कर अब तक चली | डायरेक्टर उमंग कुमार ने ट्विटर पर लिखा Thank u @Utkarshini for a fabulous story, screenplay and dialogues for #SARBJIT डॉ शोभा भारद्वाज

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