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‘फादर्स डे’ पर पिता का बेटी को लिखा पत्र “जागरण जंगशन मंच “

Vichar Manthan
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बोस्टन ( यूएस ) में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के नोटिस बोर्ड पर सुंदर हैंडराईटिंग में हाथ से लिखा पत्र लगा था | फादर्स डे बीते पांच दिन हो चुके थे इंटरनेट के जमाने में हाथ से लिखा पत्र उत्सुकता वश स्टूडेंट्स पत्र देखने के लिए रुके पढ़ा अपने सेल पर उतार लिया एक पापा ने भारत से अपनी बेटी को फादर्स डे के दिन बेटी द्वारा दी शुभकामनाओं के जबाब में लिखा था | विदेशी प्राध्यापक और छात्र उस लड़की को ढूंढने लगे जिसका निक नेम राजू था लड़कियों में यह नाम नहीं मिलता पापा ने बड़े प्यार से लिखा था माई डियर रानी बेटी राजू उस पर एक दो आंसुओं के निशान भी थे | पिता के सर नेम से ढूंढा ,ढूंढने पर पता चला उन्हीं के बिजनेस स्कूल में पढ़ने वाली मेघावी छात्रा थी इसलिए उसकी पूरी फ़ीस माफ़ थी | पत्र की एक कापी उसकी पढ़ने वाली टेबल के सामने लगी थी |उसे सबने चारो तरफ से घेर लिया | सब भारतीय संस्कति के बारे में जानने के उत्सुक थे वह भारतीय माता पिता और बच्चों के आपसी सम्बन्धों के बारे में जानने के उत्सुक थे| बेटी नें अपने पिता को father’s day के दिन धन्यवाद देने के लिए फोन किया था पिता ने धन्यवाद का जबाब लिख कर दिया था उसका कुछ अंश लिख रही हूँ |
हम भारतीय हैं हमारी संस्कृति में रोज अपने माता पिता और बड़ों के चरण छू कर उन्हें सम्मानित करते हैं बदले में वह आशीर्वाद देते हैं |तुम्हारी माँ ने कहा था बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं होता है बेटी माता पिता के पैर छू कर प्रणाम क्यों नहीं कर सकती ? जब तुम बहुत छोटी थी तुम्हारी माँ कहती थी अपने पापा के पैर छूओ तुम बैठ कर अपने नन्हे हाथों से पहले एक पैर फिर दूसरा पैर छू कर मेरी गोदी में चढ़ती थी | अपने हर जन्म दिन पर सबसे पहले मेरे पैर छूती थी मेरी आत्मा से अपनी बच्ची के लिए आशीर्वाद निकलते थे | जब भी तुम पेपर देने जाती मेरा आशीर्वाद लेना नहीं भूलती थी | कम्पीटीशन के लिये पेपर देने जाती साथ के कम्पटीटर देख कर घबरा जाती मैं तुम्हे कहता बेटो न इधर देखो न उधर मेरा हाथ पकड़ो और तुम्हें सेंटर के अंदर तुम्हारी सीट तक छोड़ आता तुम अपना पेपर पूरा कर बाहर आती फिर मेरे पैर छू कर गले लगती मैं समझ जाता मेरी बेटी अपने पेपर से संतुष्ट हैं मैने कभी नहीं पूछा बेटा पेपर कैसा हुआ ? तुम आज जिस मुकाम पर हो मेरे लिए गर्व की बात है | यही भारतीय संस्कृति है हर घर में माता पिता और बड़ों का सम्मान करना सिखाया जाता है | हमारे शास्त्रों में माँ,और पिता की तुलना देवताओ से की गई है जबकि हर कल्चर माँ को महत्व देता है पिता का केवल फर्ज माना जाता हैं हम माँ को धरती पिता को आकाश मानते हैं दोनों के संरक्षण से बच्चा बड़ा होता है माँ के रक्त से बच्चा पलता है ,स्वस्थ बच्चा जन्म ले यह यत्न करना पिता अपना कर्तव्य समझता है वचपन में गोद में उठाना फिर कंधे की सवारी कराना हर दुख सुख का ध्यान रखना अपनी पॉकेट का ध्यान न रखते हुये बच्चों का अच्छे स्कूल में एडमिशन कराना ,बच्चे के कैरियर का ध्यान रखना ,अपनी सन्तान में अपने स्वप्न पूरे करने की चाह भी रखना ,सन्तान को कैरियर की उन उचाईयों तक ले जाने की कोशिश करना जहाँ तक वह पहुँचना चाहते हैं |निस्वार्थ भाव से बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करने की कोशिश करना सपने टूटने पर भी अपने प्यार में कोई कमी न आने देना | हर अच्छे बुरे में अपनी सन्तति का ध्यान रखना | पश्चिमी सभ्यता में ज्यादातर बच्चे अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करते हैं कई बार उनकी शिक्षा बीच में ही छूट जाती है वह पहले पैसा इकट्ठा करते है फिर दुबारा अपनी पढ़ाई शुरू कर कैरियर बनाते हैं |
हमारे बच्चे भी अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं आज तो बेटियां भी अपने माता पिता का ध्यान रखना अपनी ड्यूटी समझती हैं | हमारी संस्कृति में माता पिता को मरने के बाद भी नहीं भूलते उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें याद करना ब्राह्मणों को भोजन कराना या उनके नाम पर सद्कर्म करना | श्राद्ध के दिन शायद ही कोई हिन्दू घर होगा जो अपने माता पिता को भूलता होगा यही नहीं अमावस्या की शाम को उत्तर दिशा की एक ‘दिया’ रख कर मीठे के साथ जल की धारा डालते हुये अपने पित्तरों को विदा देते हुये उदास हो जाते हैं | हम किसी भी तीर्थ स्थान पर जाते हैं वहाँ अक्सर लोग अपने पुरखों के बारे में पूछते हैं उनसे पहले कौन आया था पंडे भी बही खाते में माता पिता और पितामह का नाम लिखते हैं|कहते हैं बंश बेटों से चलता है मैं नहीं मानता, बेटी भी माता पिता का नाम रोशन करती है वह उनके नाम को दूर तक ले जाती है| हमारा हर दिन माता पिता का आशीर्वाद है | हमारे संस्कारों में कहीं भी फादर्स डे नहीं है रानी बेटी तुम मेरा अभिमान हो |

समय न जाने कैसे बीत गया बेटी का ब्याह हुआ वह माँ बनी अपनी नन्हीं बेटी को लेकर मायके आई उसकी बेटी ने नाना पापा कह कर अपने नाना की तरफ बाहें फैला कर गले से लग गयी समय जैसे ठहर गया पिता की आँखों में आंसू आ गये |
डॉ शोभा भारद्वाज

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