Menu
blogid : 15986 postid : 1195043

शान्ति पूर्ण परमाणु परीक्षण ‘स्माईलिंग बुद्धा से एनएसजी की सदस्यता तक

Vichar Manthan
Vichar Manthan
  • 297 Posts
  • 3128 Comments

द्वितीय युद्ध समाप्ति पर था लेकिन जापान अभी भी आत्म समर्पण के लिए तैयार नहीं था अत : संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान को घुटने टेकने के लिए मजबूर करने के लिए उसके दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर एक – एक एटमबम गिराया जिसकी भयानक संहारक क्षमता से विश्व दहल गया यह अमरीका द्वारा मानव जाति के इतिहास में परमाणु हथियार का पहला प्रयोग था |इसके बाद सोवियत संघ ,ब्रिटेन ,फ्रांस और 1964 में चीन भी परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बन गया | 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर कमर तोड़ दी थी नेहरु जी को अमेरिकन राष्ट्रपति जान एफ कनेडी ने भारत में परमाणु परीक्षण की सलाह दी थी लेकिन नेहरूजी विश्व शान्ति के समर्थक थे उन्होंने प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया उन्होंने परमाणु की दौड़ को शांति की राह में खतरा समझा यदि दूरदर्शिता से काम लिया होता भारत की स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती उन्हीं की बेटी कूटनीति की माहिर खिलाड़ी प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी के समय में “स्माईलिंग बुद्धा” के नाम से सफल परिक्षण किया गया जिसे इंदिरा जी ने शान्ति प्रिय देश का शान्ति पूर्ण परीक्षण कहा| विश्व भी जानता था भारत ने विश्व को पंचशील का सिद्धांत दिया अत :परमाणु शक्ति का उपयोग करने में आक्रामक नहीं हो सकता| परमाणु बम का वजन 1400 किलोग्राम था इसकी क्षमता 12 किलोग्राम थी |
अब भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न छठा देश था | परीक्षण 1968 की परमाणु अप्रसार संधि के विरुद्ध था अमेरिका ने भारत का विरोध कर कहा इससे भारतीय महाद्वीप में हथियारों को प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी |अमेरिका ने परमाणु सामग्री पर और ईधन की सप्लाई पर रोक लगा दी जबकि वह स्वयं पहला परमाणु शक्ति सम्पन्न देश था लेकिन सोवियत रशिया ने ऐसे समय में भारत का साथ दिया | उस समय भारत की विदेश नीति का झुकाव सोवियत रशिया की तरफ था | 1974 में ही भारत के परमाणु विस्फोट के विरोध में एनएसजी का गठन किया गया यह भारत को सबक सिखाने के लिए दुनिया के सात शक्ति शाली देशों अमेरिका ,कनाडा ,ब्रिटेन ,फ्रांस, जर्मनी ,जापान और सोवियत लैंड संगठन था | इसकी पहली मीटिंग नवम्बर 1975 में हुई ,तब से हर वर्ष मीटिंग होती है लेकिन इसका कोई निश्चित कार्यालय नहीं है | संगठन का उदेश्य परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करवाना, परमाणु हथियारों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली तकनीक उपकरण और सामान के निर्यात पर रोक लगाना है | 1994 में निर्णय लिया गया एनएसजी परमाणु सामग्री का सप्लायर देश उपकरणों की स्वीकृति तभी दे सकता है जब निश्चित हो जाए ऐसा करने से परमाणु हथियारों का प्रसार नहीं होगा |चीन 2004 में मेंबर बना |
श्री नरसिंघा राव भी परमाणु कार्यक्रम को आगे बढाना चाहते थे लेकिन अमेरिका की नजर भारत पर थी |अटलबिहारी सरकार के समय गुपचुप तैयारी के बाद पोखरन में पांच परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चकित कर दिया|पाकिस्तान ने भी 17 दिन बाद ही परमाणु विस्फोट कर परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की सूची में नाम दर्ज करा लिया |जिस होड़ का भय था वही हुआ |मामला पर सुरक्षा परिषद में बहस हुई निंदा प्रस्ताव पास हुआ भारत पर आर्थिक प्रतिबन्ध भी लगाये गये | इजराईल ने भारत के परिक्षण का समर्थन किया |
समय बदला डॉ मनमोहन सिंह अपनी प्रो अमेरिकन पालिसी के लिए जाने जाते हैं |अमेरिका ने भारत के साथ 2008 में परमाणु सहयोग समझौता किया अमेरिका का मानना है भारत एक ऐसा परमाणु सम्पन्न देश है नियमों को मानता है परमाणु हथियारों के प्रसार में भी शामिल नहीं है | डॉ मनमोहन सिंह ने ऊर्जा के क्षेत्र में परमाणु समझौता किया भारत में उनके सहयोगी यूपीए और विपक्ष दोनों ने विरोध किया |समझौते के अनुसार अमेरिका भारतीय परमाणु संयंत्रों पर निगरानी रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसियों को यह कार्य सौंपना चाहता था | अमेरिकन सीनेट ने भी समझौता पास कर दिया लेकिन सहयोगी बामपंथी दल समझौते के खिलाफ थे उन्होंने सरकार से समर्थन वापिस लेने की धमकी दी सोनिया जी नहीं चाहती थी सरकार गिरे लेकिन प्रधान मंत्री अड़ गये उन्होंने इस्तीफे की धमकी दे दी अंत में बीच का मार्ग निकाला गया |फैसला हुआ 22 संयंत्रों में केवल 14 की निगरानी होगी 8 सैनिक महत्व के संयंत्रों की निगरानी नहीं होगी फिर भी बामपंथी दलों ने समर्थन खींच लिया लेकिन मुलायम सिंह जी के दल से समर्थन मांग कर सरकार बचाई गयी | अपने में मनमोहन सिंह इतने कमजोर नहीं थे |समझौता संसद में पास हो गया |समझौत के समय चीन अमेरिकन दबाब में था इस लिए उसने विरोध नहीं किया |
भारत एनएसजी की सदस्यता का इच्छुक है ताकि वह परमाणु प्रौद्योगिकी का निर्यात कर सके भारत के लिए ऊर्जा की जरूरत के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार खुल जाने से भारत परमाणु कार्यक्रम से 2030 तक 63ooo मेगावाट ऊर्जा हासिल कर सकता था | भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये वह गैर परमाणु हथियार सम्पन्न देशों की श्रेणी में आता है |भारत का तर्क है फ़्रांस एनएसजी का सदस्य है परन्तु उसने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं | अब वह शक्तियाँ जो एनएसजी की फाउंडर हैं भारत को सदस्यता देने की खुल कर वकालत कर रहीं हैं केवल बाद में शामिल हुआ देश विरोध कर रहा था| जिसका चीन तर्क देता रहा है फ़्रांस इसका संस्थापक सदस्य है इसलिए मेंबर है |चीन पाकिस्तान को भी संगठन की सदस्यता दिलवाना चाहता है पकिस्तान को चीन का समर्थन हासिल है लेकिन पाकिस्तान के वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान जिन को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का जनक माना जाता है उन्होंने ही अवैध ढंग से परमाणु हथियारों का रहस्य उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देशों को बेचा | पकिस्तान में आतंकवाद पनप रहा है यदि यह हथियार आतंकवादियों के हाथ लग गये तो इसका अंजाम खतरनाक हो सकता है |
यदि भारत को सदस्यता मिल जाती भारत का सम्मान बढ़ जाता जिस क्लब का निर्माण उसके विरोध में हुआ था वह आज उसी का सदस्य है भारत को परमाणु ऊर्जा से जुड़ी तकनीक और युरेनियम सदस्य देशों से ग्रहण कर लेता जिससे परमाणु ऊर्जा बनाने में मदद मिलती परमाणु प्रौद्योगिकीका निर्यात कर सकता उसके लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार खुल जाता और न्यूक्लियर प्लांट से निकलने वाले कचरे को निपटाना आसान हो जाता | भारत का कोशिश थी 2030 तक परमाणु कार्यक्रम से 65000 मेगावाट ऊर्जा हासिल कर सकता था |
सियोल में होने वाली एनएसजी बैठक में 48 देशों के 300 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया |भारत ने सदस्यता ग्रहण करने की कूटनीतिक स्तर पर पुरजोर कोशिश की मोदी जी ने भी प्रयत्न किया था वह बहुत उत्साहित थे उन्हें अमेरिका पर भरोसा था लेकिन बराक ओबामा का कार्यकाल कुछ ही महीने का रह गया है |बड़ी शक्तियों ने भी कोशिश की | जबकि ब्राजील,तुर्की आस्ट्रिया आयरलैंड और न्यूजीलैंड पहले से विरोध कर रहे थे स्विट्जरलैंड को प्रधानमन्त्री ने सहमती के लिए राजी कर लिया था बाद में वह भी पीछे हट गया | चीन एक ही जिद पर अड़ा था पहले भारत एनटीपी पर हस्ताक्षर कर सदस्यता की शर्त पूरी करे अंत में भारत का सदस्यता का दावा खत्म हो गया | चीन के विदेश विभाग के प्रतिनिधि ने बाहर सफाई पेश करते हुए डिप्लोमेटिक उत्तर दिया पाकिस्तान हमारा पड़ोसी भाई है यदि उसकी सदस्यता का प्रश्न होता हम उसका भी विरोध करते वह नियमों के पालन की स्थिति में नहीं है |
एनएसजी की सदस्यता न मिलने से मोदी जी की विपक्ष ने आलोचना की इसे कूटनीतिक हार माना कुछ ने उपदेश भी दिया कूटनीति में कान खुले रखते हैं मुहं बंद लेकिन भारत को इस दिशा में विकसित देशों का समर्थन मिला | भारत को मिसाइल तकनीक नियन्त्रण व्यवस्था (MTCR) की सदस्यता प्राप्त करने पर स्वीकृति प्राप्त करने में कामयाबी मिली है जबकि चीन को अभी तक सदस्यता नहीं मिली है वह छुपे ढंग से पाकिस्तान और नौर्थ कोरिया को मिसाईल बेच रहा है| आज हम असफल हुए हैं ज्यों -ज्यों भारत का कद बढ़ता जाएगा एक दिन एनएसजी की सदस्यता भी मिल जायेगी |
डॉ शोभा भारद्वाज
हम लोगों के बीच में डॉ शंकर सिंह जी हैं ( अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विश्लेषक ) ने मेरे लेख पर प्रतिक्रिया देकर मेरे ज्ञान को और आगे बढाया में उनके विचारों से पाठकों को अवगत करा रही हूँ ” अखबार में छपे लेख पर डॉ शंकर सिंह जी ने प्रतिक्रिया देकर बड़ी शक्तियों के कूटनीतिक व्यवहार पर प्रकाश डालामैं कुछ अपनी और से जोड़ना चाहूंगा. पाकिस्तान को न्यूक्लियर शक्ति बनाने में . विकसित पश्चिमी देशों का हाथ रहा है. पाकिस्तान जब यूरोप के देशों से न्यूक्लियर तकनिकी चोरी कर रहा था तब अमेरिका आँख मूँद कर. सोने का नाटक कर रहा था. पाकिस्तान को न्यूक्लियर शक्ति बनाने में पाश्चात्य विकसित देशों का हाथ है. ये वे लोग हैं जो ‘ चोर से कहते हैं चोरी करो और साहूकार से कहते हैं जागते रहो.’ भारत को सामान्य नागरिक उपयोग के लिए भी न्यूक्लियर ऊर्जा का विकास करने में तरह की बाधाएं उत्पन्न की गईं. तरह तरह के sanctions लगाए गए. भारत को NSG की सदस्यता से बाहर रखने में में यही मनोवृत्ति काम कर रही है. दुर्भागयवश हमारे यहां युरेनियम की कमी है लेकिन थोरियम पर्याप्त मात्रा में है.Fast Breeder Reactor technology द्द्वारा थोरियम का ईंधन के रूप में इस्तेमाल करके हम ऊर्जा पैदा कर लेंगे. ”

1. –

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh