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जनसंख्या नियन्त्रण अपने और देश के हित में ‘जागरण जंगशन फोरम’

Vichar Manthan
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विश्व का कौन सा देश है जहाँ भारतीय रोजी रोटी कमाने नहीं जाते .कैसे जाते हैं ,परदेस में किन कष्टों से गुजरते हैं वही जानते हैं लेकिन मजबूर हैं .10.000 भारतीय सउदी अरब में नौकरी से निकाले गये हैं तम्बुओं में भूखे प्यासे भारत से मदद की गुहार कर रहे हैं. सउदी अरब में 30 लाख भारतीय काम कर रहे हैं .तेल की कीमते कम होने से उनकी अर्थ व्यवस्ता पर बहुत असर पड़ा है . अब योरोप के दरवाजे भी बंद हो रहे हैं आर्थिक मंदी ने समूचे योरप को अपने प्रभाव में ले लियी है .जब अपने नागरिक बेरोजगार है प्रवासियों को कौन काम देगा ,कौन उनको बर्दाश्त करेगा सबसे पहले गुस्सा प्रवासियों पर निकलेगा . पहले भी उनका सब कुछ लूट कर निकाल दिया जाता रहा है .यदि अधिकाशं को भारत लौटना पड़ा तो देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ जायेगी .आज वही राजनेता जनप्रिय हो रहे हैं जो प्रवासियों को निकालने की बात करते हैं .योरोप के पढ़े लिखे नोजवान विदेशों में काम की खोज में घर छोड़ने पर विवश हैं .बंगला देश के रेस्टोरंट में खाना खाने गये विदेशियों को आतंकवादियों ने अपना शिकार बनाया ,गले काटे थे उनमें कुछ वहाँ नौकरी करते थे. भारत की जनसंख्या चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है .

जनसंख्या की बढ़ोत्तरी भी अनियमित ढंग से हो रही है .पढ़े लिखे विवाह की जिम्मेदारी घबरा रहे हैं. प्राईवेट नौकरियों में अनिश्चितता बनी रहती है कभी भी काम से निकाले जा सकते हैं. सामर्थ्यवान वर्ग पढ़ा लिखा होने के बावजूद सन्तान को जन्म देने से डरता है .ज्यादातर काफी उम्र होने के बाद बच्चे पैदा करते हैं लड़का हो या लड़की एक बच्चे को जन्म देने की हिम्मत करते हैं उनके भी भविष्य का पूरा हिसाब करते हैं .लोअर मिडिल क्लास विवाह भी करते हैं दो बच्चे भाई बहन का जोड़ा चाहते हैं लेकिन एक ऐसा वर्ग हैं जाहिलता में बच्चों की संख्या बढ़ाता रहता है जब होश आता है बच्चों से घर भर जाता है. महानगरों में झुग्गियों में बसे लोगों के बच्चों की संख्या देख कर हैरानी होती है कुछ बच्चों के सहारे अच्छे दिनों का इंतजार करते हैं कुछ बच्चों को अल्लाह या ईश्वर की देन समझ कर पैदा करते हैं .ऐसे विचारों वाले पढ़े लिखे भी है एक या दो बच्चों पर संतुष्ट नहीं होते कम से कम चार बच्चों की इच्छा रखते हैं बच्चों को जन्म देना आसान हैं लेकिन उनका भरण पोषण आसान नहीं है . धरती जनसंख्या के हिसाब से खिच कर बड़ी ,‘छोटी या चपटी नहीं होती .गोल धरती अपनी धुरी पर घूमती रहती है .अब जनसंख्या के बोझ को ढोने में असमर्थ हो चुकी है तपने लगी है .

कहते हैं इन्सान की जरूरत रोटी कपड़ा और मकान है लेकिन जीने के लिए शुद्ध हवा स्वच्छ पानी पैर टिकाने के लिए जमीन भी चाहिये .बढती जनसंख्या में स्वच्छ हवा का महत्व ही खत्म कर दिया है बढ़ते प्रदूष्ण से बड़े और छोटे बेहाल हैं पीने के लिए स्वच्छ जल महानगरों में जरूरत के अनुसार देना मुश्किल है . पिछले दिनों सूखे के कारण त्राहि  त्राहि मची थी लोग पानी की खोज मे भटक रहे थे कई गंदा पानी पीने के लिए मजबूर थे जब इन्सान के लिए पानी नहीं है तो जानवरों को कहाँ से मिलेगा. अब अति वृष्टि से परेशान हैं नदियों के किनारे बड़ी-बड़ी सभ्यताएं बनीं मिटीं लेकिन नदी के सिर पर घर नहीं बनाये जाते थे नदी का पाट दूर तक खाली रहता था बरसात के दिनों में नदिया उफनती थीं आसपास बसे गावों के कच्चे घरों को  बहा कर ले जाती थी लोग अपने मवेशी बचा कर ऊंचे स्थान पर ले जाते थे यह बाढ़ के गावँ कहलाते थे. जैसे-जैसे नदी का पानी उतरता था उपजाऊ खेती के लिए उत्तम जमीन पर निकल आती थी . बढ़ती जनसंख्या रहने को घर नदी के किनारे जनसंख्या का घनत्व बढ़ रहा है लोग नदियों के और भी करीब घर बनाने लगते हैं नदियाँ अपना मार्ग कभी नहीं छोडती जैसे ही जम कर पानी बरसता है सब कुछ बहा कर ले जाती हैं . 2O13 में कैलाश धाम में ऐसी अतिवृष्टि हुई जिसमें सब कुछ बह गया .गावों, कस्बों ,शहरों में तालाब पाट कर घर बना लिए .पहले बरसात में तालाब लबालब जल से भर जाते थे .धरती में भी पानी समाता रहता था जिससे पूरे वर्ष कुओं से जल मिलता था . हैंड पंप से भी कुछ हाथ की दूरी पर पानी मिल जाता था लेकिन अब पानी धरती में बहुत नीचे तक खोदने पर मिलता है एक बार अटल जी ने कहा था अगली लड़ाई जल के लिए होगी यही हालत रहे तो 2030 के आते आते विशाल जनसंख्या के लिए पीने का पानी बड़ी मुश्किल से मिलेगा . बिना जल के जीने की कल्पना क्या सम्भव है .

महानगरों में जमीन कम है उनके आसपास बसे शहरों में बिल्डर गगन चुम्बी इमारते बना रहे हैं खेती के लिए उपजाऊ जमीन पर भी कंक्रीट के जंगल बन गये है . सबको घर मिल सके अपने अपार्टमेंट तक पहुचने के लिए लिफ्ट की जरूरत पड़ती है .बारिश के समय जल निकासी के लिए यदि सही बड़े नाले नहीं होंगे तो शहरों में जबर्दस्त जल भराव होंगे. सडकों पर जाम ,घर पहुंचने के लिए तैर कर जाना पड़ेगा . बचपन में जो शहर बड़े लगते थे सडकें चौड़ी अब वहाँ सिर ही सिर दिखाई देते हैं सड़के छोटी सकरी लगती हैं, सब कुछ सिकुड़ा लगता है सडकों के किनारे तक बाजार बन गये ठेले लगते हैं रोज रोजी रोटी की जद्दोजहद देखने में आती है. देश में 35 करोड़ युवा हैं सब को रोजगार देना असम्भव है. राजनीतिक दल चुनाव के अवसर पर बड़े-बड़े वादे कर चुनाव जीतते हैं जनता के लिए कुछ करना भी चाहते हैं लेकिन सुरसा के मुहँ की तरह बढ़ती जनसंख्या के आगे हाथ खड़े कर देते हैं अपना समय काट कर चले जाते हैं .थाली से आवश्यक चीजे गायब होती जा रही हैं पोष्टिक भोजन की बात छोड़िये पेट भर कर दोनों वक्त का भोजन मिल जाये बहुत है  दाल की कीमतें देखते – देखते आसमान पर पहुंच गयी   अपने देश में भी उत्पादन कम हुआ विश्व बाजार में भी कम, मोदी सरकार दाल पर ही बिहार का चुनाव हार गयी अपनी अफ्रीका की यात्रा में जिन देशों की जमीन दलहन का उत्पादन कर सकती थी उन्हें मोदी जी ने भारत के लिए दाल का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया मोजाम्बिक के राष्ट्रपति फिलिप न्युसी के साथ दीर्घकालीन समझौते पर हस्ताक्षर में एक महत्व पूर्ण समझौता था भारत इस देश से दाल खरीदेगा ताकि देश में दाल की कमी को पूरा कर बढ़ती की बढती कीमतों पर नियन्त्रण किया जा सके लेकिन कब तक ऐसे चल सकेगा .

भारत में बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश लगा सके तो भारत एक शक्ति शाली देश बन सकेगा . इंदिरा जी की सरकार के समय आपतकालीन स्थित के दौरान जनसंख्या पर सख्ती से नियन्त्रण की कोशिश की गयी  हम दो हमारे दो का नारा दिया इंदिरा जी बुरी तरह चुनाव हार गयी. इसके बाद किसी सरकार ने जनसंख्या नियन्त्रण की बात नहीं की भय है उसकी स्थिरता पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाएगा .  चीन ने जनसंख्या नियन्त्रण की नीति बनाई अपने देश में विरोध और विदेशों में निंदा की गयी चीन  जनसंख्या नियन्त्रण के लक्ष्य पर डटा रहा अब वही दो बच्चों की इजाजत देने की सोच रहा है .

जिन राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है वहां जन्म देने के चक्कर में मृत्यु दर भी बढ़ती है कमजोर बच्चे को कब तक बचाया जा सकता है । इससे जन्म, मृत्यु और बुरे स्वास्थ्य का दोषपूर्ण चक्र प्रारम्भ हो जातै है। यह समस्त विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।कमजोर सूखी जेनरेशन का क्या लाभ उस पर देश का कितना भी बजट खर्च किया जाये जान बचाना मुश्किल है देश भी लोक कल्याणकारी राज्य कब तक रह पायेगा .देश का बजट स्वास्थ्य सेवा और भूखी जनता का पेट भरने में निकल जाएगा भूखों की भीड़ सब कुछ चुग जायेंगे धरती पर पेड़ भी दिखाई नहीं देंगे. कोई भी धार्मिक तर्क जनसंख्या वृद्धि के पक्ष में चल नहीं सकता . सूखे भूखे मतदाता को मतदान क्षेत्र तक लाना भी मुश्किल हो जाएगा .एक समय था जब परिवार नियोजन के साधनों का अभाव था मजबूरी थी .यदि सन्तान ईश्वर की देन होती तो धरती भी फैलती और पैदावार उगलती ईश्वर ने अक्ल दी है अच्छी सन्तान माता पिता के लिए सुखकारी है उसकी शिक्षा दीक्षा से उनको संतोष मिलता है. अब तनबतन जंग का जमाना नहीं है जंग कैसे हो रही हैं सीरिया से पूछिए .गरीबी बेरोजगारी नौजवानों को अपराध की तरफ मोड़ देगी या जन्नत का सपना दिखाने वाले जेहाद पढ़ा कर आतंकवादी बना देंगे नौजवान खुद भी मर जायेंगे दूसरों को भी मार देंगे या अपाहिज कर देंगें जीना मुश्किल हो जायेगा दुनिया जहन्नुम बन जाएगी .

छोटा परिवार सुखी परिवार महिलाओं की समझ में आसानी से आ जाता है जरूरत हैं हर मजहब की खास कर मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा पर जोर देने की. शिक्षित माँ अच्छी तरह समझती है छोटा परिवार सुख का संसार होता है . जनसंख्या की बढ़ोत्तरी में सरकार की भी जबाबदेही होनी चाहिए भीड़ कभी जनहित कारी नहीं हो सकती केवल सस्ती लेबर ही मिल सकता है लेकिन देश में या विदेश में हड्डियों के ढांचों से कोई मजदूरी भी नही कराएगा .

डॉ शोभा भारद्वाज

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