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‘तीस जनवरी 1948 महात्मा गांधी की हत्या ‘ गाँधी वाद सैद्धांतिक बन कर रह गया

Vichar Manthan
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ब्रिटिश राज्य के गुलाम भारत देश का विभाजन हो चुका था गाँधी जी के अथक प्रयत्नों के बाबजूद भी विभाजन नहीं रुका अंत में गांधी जी को भी मौन स्वीकृति देनी पड़ी | 30 जनवरी 1948  गांधी जी दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में सरदार पटेल के साथ मीटिंग समाप्त कर आभा और मनु के कंधे पर हाथ रख कर प्रार्थना स्थल की और आ रहे थे उनकी मृत्यू बन कर भीड़  से निकल कर नाथूराम गोडसे सामने आया उसने पहले उन्हें प्रणाम किया उसके हाथ उनके पैर की तरफ बढ़े लेकिन हाथ में पिस्तौल चमकी फिर अचानक उन पर तीन गोलियां चलाई बापू के अंतिम शब्द थे ‘हे राम’ या आह उसके साथ ही गांधी युग का अंत हो गया | बापू का पर्थिव शरीर धरती पर गिर गया | नाथू राम गोडसे पेशेवर क्रूर हत्यारा नहीं था वह हिन्दू राष्ट्र समाचार पत्र का सम्पादक था उसकी उम्र 29 वर्ष थी उसने अपने जीवन में विशेष कुछ नहीं किया था जैसे वह बापू का अंत करने के लिए दुनिया में आया था |उसने बचने की भी कोशिश नहीं की पुलिस के सामने आत्म समर्पण कर दिया | हत्या का कारण उसने राजनीतिक बताया | जिसने भी सुना बापू नहीं रहे बेचैन हो गया | नेहरु जी रो रहे थे सरदार पटेल के लिए उन्हें सम्भालना मुश्किल था उनके समझ में नहीं आ रहा था जिनसे वह कुछ समय पहले बातें कर रहे थे वह दुनिया में नहीं रहा |नेहरु जी ने शोक संदेश में कहा था हमारे जीवन से प्रकाश चला गया चारो और अन्धकार है लेकिन बापू ऐसा प्रकाश थे जिससे इतने वर्ष देश प्रकाशित रहा वह हजारों वर्ष तक देश में दिखाई देता रहेगा पूरा विश्व इसे देखेगा” एक बार ऐसा लगा जैसे बक्त ठहर गया हैं गाँधी जी के पार्थिव शरीर को अग्नि को समर्पित किया गया अपार जन समूह यमुना के किनारे उनके अंतिम दर्शन के लिए एकत्रित था | उस दिन भारत से पाकिस्तान गये कई लोगों ने भोजन नहीं किया |

जनता उन्हें बापू कहती थी टैगोर ने उन्हें महात्मा की उपाधि दी थी सुभाष चन्द्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से ‘राष्ट्रपिता’ सम्बोधित किया था| राष्ट्रपिता इतिहास के पन्नों में अमर हो गये विश्व के महानुभावों ने गांधी जी के बारे में अपने विचार व्यक्त किये मार्टिन लूथर किंग ने कहा था गांधी जी ने पूरे इंडिया को अपने रंग में रंग लिया था अहिंसा के चमत्कारिक प्रयोग से ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी और इंडिया को आजाद करवाया महान वैज्ञानिक आईंस्टीन ने कहा था आने वाली पीढियां इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कभी हाड़ मॉस का ऐसा व्यक्ति इस धरती पर चला होगा | जनता प्यार से उन्हें बापू कहती है |हम जितना बापू को जानने की कोशिश करते हैं उतना ही बापू मय हो जाते हैं |

14 अगस्त 1947 मध्य रात्री को भारत को आजाद हुआ | ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा उपहार स्वरूप भारत की शक्ति को कमजोर करने के लिए विश्व पटल पर दो नये राष्ट्रों का उदय हुआ भारत और पाकिस्तान | पन्द्रह अगस्त की ‘सुबह नई थी’ क्या सुखकारी थी ? गांधी जी उदास थे ?लाखों लोग अपने खेत खलियानों, घर से बेघर सब कुछ छोड़ कर जीवन की रक्षा के लिए अनिश्चित भविष्य की खोज में अपना स्थान को छोड़ने के लिए विवश हो गये थे काफिले के काफिले आ रहे थे कई अपनों से बिछड़ गये थे | उनका हिस्सा पाकिस्तान था अब वह वहाँ परदेसी थे उन्हें गांधी जी पर पूरा विश्वास था वह देश बटने नहीं देंगे कुछ लोग अपने घर के पास के शहर के अलावा कहीं नहीं गये थे वह नहीं जानते थे उनका घर कहाँ बसेगा बेहालों को बसाना आसान नहीं था अंत में कटी हुई लाशों से भरी रेलगाड़ियाँ आने लगी प्रश्न उठता है ब्रिटिश भारत की सेना कहाँ थी उसे गोरों ने अपनी  रक्षा के लिए तैनात किया था उन्हें भय था जैसे ही सत्ता के हस्तांतरण की खबर फैलेगी उन पर हमले शुरू हो जायेंगे जबकि भारत में उस समय सबसे सुरक्षित अंग्रेज थे | किसी के मन में उनको नुकसान पहुँचाने का विचार भी नहीं था| आजादी की जंग गांधी जी के नेतृत्व में अहिंसात्मक आंदोलनों द्वारा लड़ीं थी | आखिरी वायसराय माउन्ट बेटन को स्वतंत्र भारत का पहला गवर्नर जरनल घोषित किया, वह भारत की भूमि से सम्मान पूर्वक विदा हुए थे | अब समस्या शरणार्थियों को बसाना  था अत: भारत में भी मुस्लिमों को देश छोड़ने के लिए विवश किया गया | बटवारे में कहते हैं लगभग एक मिलियन लोगों की हत्या हुई बाद में यह आंकडा बढ़ता गया इतने बड़े रूप में स्थानतरण पहली बार हुआ| देश छूटने का दर्द क्या होता है आज देखा और अनुभव किया जा सकता है| सीरिया और इराक के  बर्बाद होने के बाद जिन्दा रहने के लिए वहाँ के बाशिंदे अपनी धरती से योरोप की तरफ पलायन कर रहे हैं|
जिस समय देश आजादी का जश्न मना रहा था उस समय नोआखाली में साम्प्रदायिक दंगा पीड़ितों की स्थिति सुधारने के लिए गांधी जी प्रयत्न शील थे| उनके लिए उन्होंने उपवास रखा उनका उपवास तभी टूटा जब दोनों सम्प्रदाय के लोगों ने अपने हथियार डाल दिये वहाँ शांति स्थापित हो गई |गांधी जी एक साथ दो स्थानों में रह नहीं सकते थे |गांधी जी यहाँ निराश होते रुकने वाले भी नहीं थे | कई बेघरबार लोगों ने मजबूरी में अपने अस्थाई निवास कुतुबमीनार के आस पास बना लिये जबकि गांधी जी इसे नेशनल धरोहर मानते थे उन्होंने जगह खाली कराने के लिए उपवास रखा |गाँधी जी ने पहले दिल्ली वासियों से पूछा क्या आप लोग दो राष्ट्रीयता के सिद्धांत को मानते है ?यदि नहीं तो मुस्लिम को सौहार्द पूर्ण ढंग से रहने दो उन्हें उनकी सम्पत्ति से वंचित मत करो | वह पाकिस्तान से भी आशा करते थे वहाँ के बाशिंदे अल्पसंख्यक हिन्दू और सिख आबादी को सुरक्षा दे पहले की तरह शन्ति से रहने दें | उपवास से उनकी हालत खराब होती जा रही थी उन्हें हिन्दू मुस्लिम सिख और उस समय के महत्वपूर्ण नेताओं संगठनों के प्रमुखों ने विश्वास दिलाया वे हिंसा का रास्ता छोड़ कर शान्ति से रहेंगें , आश्वस्त होने के बाद गाँधी जी ने उपवास तोड़ा |गांधी जी के लिए आभा गुलुकोस डाल कर संतरे का जूस लायी जिसे मौलाना आजाद और नेहरु जी ने उनको पिला कर उपवास तुड़वाया दोनों की आँखे भरी हुई थीं | गांधी जी साम्प्रदायिकता और क्षेत्र वाद में विश्वास नहीं करते थे वे विशुद्ध मानवता वादी थे | उनके खिलाफ रोष की भी कमी नहीं थी बर्बाद निराश शरणार्थी इन्सान थे महात्मा नहीं थे उनके सामने जीवन मरण का प्रश्न था उनका एक वर्ग कह रहा था गाँधी को मरने दो लेकिन बहुत बड़ा वर्ग गांधी जी के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर रहा था | गांधी जी को ‘भारत केवल हिन्दू के लिए’ पाकिस्तान केवल मुस्लिम के लिए स्वीकार नहीं था | 20 जनवरी को मदनलाल पाहवा को गिरफ्तार किया गया उसने एक क्रूड बम प्रार्थना सभा में फेका था लेकिन जान माल का नुकसान नहीं हुआ |

गांधी जी की नाराजगी भारत सरकार से भी थी पाकिस्तान को विभाजन समझौते के अनुसार इकठ्ठा राजस्व में से     55 करोड़ रु० मिलने थे लेकिन सरदार पटेल जैसे नेताओं को भय था पाकिस्तान इस धन का उपयोग भारत के खिलाफ जंग छेड़ने में करेगा अत: उन्होंने फिलहाल देने से इंकार कर दिया |कश्मीर की सुरम्य वादियों में 21 अक्टूबर को 5000 कबायलियों के भेष में सशस्त्र पाकिस्तानी सेना ने प्रवेश किया अब वह श्रीनगर से केवल 35 किलोमीटर दूर थी यदि वह लूट पाट में नहीं लगते तो श्री नगर पर अधिकार कर लेते| भारत ने सेना भेज कर सशस्त्र हमले को रोका |कश्मीर का मामला 1 जनवरी 1948 को नेहरू जी माउंट बेटन की सलाह से सुरक्षा परिषद में ले गये| सब गांधी जी के सामने हो रहा था लेकिन गांधी जी चाहते थे पाकिस्तान को राजस्व का हिस्सा दिया जाये | उन्हें भय था पाकिस्तान की अस्थिरता और असुरक्षा की भावना भारत के प्रति गुस्से और वैर में परिवर्तित हो जायेगी तथा सीमा पर हिंसा फैलेगी अंत में भारत सरकार ने गांधी जी के दबाब में पाकिस्तान को भुगतान किया जिन्ना जानते थे पैसे की पाकिस्तान को बहुत जरूरत थी | गांधी जी पाकिस्तान जा कर जिन्ना से मिलना चाहते थे जिससे दोनों तरफ के विस्थापितों को फिर से उनके अपने घरों में बसाया जा सके | गाँधी जी नहीं रहे लेकिन कभी समझ नहीं सके पाकिस्तान का निर्माण धर्म  के नाम पर किया गया था नया राष्ट्र बनने के बाद वह  भारत के विरुद्ध सैनिक और आर्थिक दृष्टि से समृद्ध एक मजबूत राष्ट बनना चाहता था यही नहीं वह इस्लामिक जगत का नेता बनने का इच्छुक था | हमारा बार्डर कभी शांत नहीं रहा 1965 ,1971 तथा करगिल की जंग हम लड़ चुके हैं |

कायदे आजम जिन्ना नहीं रहे लेकिन पाकिस्तानी हुक्मरानों का भारत विरोध बरकरार रहा | निरंतर भारत में आतंकवादियों को  भेजा जा रहा है पूरी कश्मीर घाटी रक्त रंजित होती रहती है नवयुवकों को पैसा देकर सुरक्षा सैनिकों पर पत्थर बरसाए जाते हैं | भारत के खिलाफ जेहाद (धर्म युद्ध) चल रहा है |एक ही क्षेत्र और नस्ल के लोग स्वयम भी कमजोर हो रहे हैं भारत को भी पीछे घसीटने की कोशिश में रहते हैं | हिन्दू मुस्लिम एकता पर जान देने वाले गांधी जी को जिन्ना ने शोक संदेश में ” केवल हिदुओं का महान लीडर लिखवाया ” जबकि गांधी जी ने राजस्व दिलवा कर पाकिस्तान को आर्थिक संकट से उबारा था|

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