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शीघ्र फैसला ,कठोर दंड अपराधियों में भय पैदा करता है

Vichar Manthan
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सुप्रीम कोर्ट में निर्भया अर्थात ज्योति के हत्यारों की अपील ठुकरा कर  फांसी की सजा बरकरार रखते हुए श्री आर भानुमती नें अलग से फैसला देते हुए कहा दोषियों ने जैसी हैवानियत की थी यह कृत्य   जघन्यतम अपराध की श्रेणी में आता है इसकी सजा मौत ही है अन्य जज भी इसी मत के थे| लगभग साढ़े चार वर्ष बीत चुके हैं अपराधियों को बहुत पहले फांसी लगाई जानी चाहिये थी इतने जघन्य अपराध के लिए भी कानून की धीमी चाल अभी तो और भी अपील  हो सकती हैं फिर राष्ट्रपति महोदय के पास क्षमा याचना की अपील फांसी की सजा की तारीख तय होने पर मानवाधिकार वादियों का शोर, यदि फांसी लगने का नम्बर आया भी तो फांसी की रात के समय क्या फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया जायेगा  आज फिर से कड़कती हुई ठंडी रात में हैवानियत को शर्मसार करता कृत्य जिसने दिल्ली ही नहीं पूरे देश में  क्षोभ की लहर उठी थी | धरना प्रदर्शन हुये अनेकों माता पिता के साथ नौजवान लड़के लड़कियों भयानक क्राईम के विरोध में निर्भया के अपराधियों के लिए  कठोर दंड न्याय की मांग कर रहे थे |

चलती बस  में निर्भया और उसके मित्र ने ऐसा आतंक और कुकृत्य झेला था जिसे सभ्य समाज में घृणा की दृष्टि से देखा जायेगा अपराधियों को अब तक तो फांसी लग जानी चाहिए थी हम फांसी की सजा बरकरार रखने पर तालियाँ बजा रहे हैं| सजा ही नहीं सजा का प्रचार हो जिसे सोच कर ही अपराधी वृत्ति वालों की रूह कांप जाये उस नाबालिग को भी नहीं बख्शा जाना चाहिए था जिसने बालिगों के साथ उन जैसा संगीन जुर्म किया था | ज्योति जीना चाहती थी उसके भविष्य के सपने छह दरिंदों ने चूर – चूर कर दिये थे बीबीसी द्वारा बनाई गयी डाटर आफ इंडिया डाक्यूमेंट्री फिल्म मार्च के पहले सप्ताह 2015 में प्रसारित की गयी दुःख की बात थी निर्भया के दोषी मुकेश सिंह से इंटरव्यू लिया गया जिसमें वह अपने कृत्य को जायज ठहरा रहा था वह कह रहा था रेप का कारण लड़की स्वयं होती है लड़कियों को देर रात घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए यदि शिकार लड़की उनका विरोध नहीं करती हम उसे छोड़ देते ,यदि उन्हें फांसी दी गयी शिकार लड़कियों को जान से ही मर देंगे| ऐसे अपराधियों को वकील नहीं मिलना चाहिए था लेकिन वकील साहब ने भी ऐसे ही ब्यान दिये बहुत दुखद, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हैं अत :अपराधी भी राय रखने लगे हैं |

मैं कई वर्ष ईरान में रही हूँ मुझे वहाँ होने वाले लगभग ऐसे ही कुकृत्य और अपराधियों को लगने वाली फांसी याद है | ईरान और  खुर्दिस्तान प्रान्त की राजधानी सनंदाज में दस वर्षों के प्रवास के दौरान ‘केवल’ एक वारदात और फांसी हुई |बात उन दिनों की है खुर्दिस्तान में आजादी की जंग चल रही थी जिसमें अनेक भावुक नौजवानों घर परिवार छोड़ कर हाथों में हथियार लेकर सत्ता के खिलाफ जंग लड़ रहे थे आये दिन इस्लामिक सरकार और खुर्द विद्रोहियों ( वह पिशमर्गा कहलाते हैं) में आपस में गोलिया चलती थी  एक खुर्द विद्रोही एक बेटी और तीन बेटों का पिता दूसरी पत्नी के सहारे बच्चों को छोड़ कर विद्रोही हो गया |उसका पहली पत्नी से तलाक हो चुका था खाता पीता घर अंगूरों और मेवों के बाग़ थे | एक दिन सुबह सबेरे पूरे सननदाज में सनसनी फैल गयी खुर्द विद्रोही की बारह वर्ष की बेटी के साथ सामूहिक बेहुरमती करने के बाद अपराधियों ने बच्ची और उसके तीनों भाईयों का गला घोट दिया | खुर्द  की दूसरी खानम को अपराधी दूसरे कमरे में बांध गये वह अपने अंदाज से सिर पीट-पीट कर छप कुन वा वइला (हाय में क्या करूं) कह कर विलाप कर रही थी देखते-देखते पुलिस ने घर घेर लिया उक्त महिला ने ब्यान दिया रात को कई खुर्द विद्रोही आये उन्होंने दरवाजा खटखटाया मेरे खोलते ही मुझे धक्का देकर वह घर में घुस गये उन्होंने मुझे चाकू की नोक पर बाँध दिया मैं बेहोश हो गयी घर में रखा नान दही के साथ खाया बच्चों के साथ क्या किया नमीदुन्म

पुलिस औरत को पकड़ कर ले गयी टार्चर से पहले ही वह डर कर बोलने लगी बच्चों से परेशान हो गयी थी शौहर ने घर छोड़ दिया उसे तलाक भी नहीं दिया मेरा भाई और उसके तीन दोस्त आये थे जो  किया उन्होंने किया मेरा कोइ कसूर नहीं हैं लेकिन “एक सत्ता के विद्रोही के साथ भी न्याय हुआ” केवल दस दिन के बाद सूचना दी गयी अमुक दिन फला मैदान में अपराधियों को फांसी दी जायेगी| दूर – दूर से लोग इक्कठा होने लगे सारा मैंदान खचाखच भरा था मैं प्रजातन्त्रवादी व्यवस्था की नागरिक वहाँ का दस्तूर जानने की उत्सुक थी ,खुर्द सहेली के साथ मैं भी गयी जैसे माहौल में इन्सान रहता है उसका असर जरूर होता हैं ठीक समय पर चारो अपराधियों को पुलिस घसीट कर लायी अपराधी चीख रहे थे दौरे खुदा ( खुदा के बास्ते )रहम –रहम उत्तेजित भीड़ चीख रही थी बी कुश (मारो-मारो )  अपराधियों को मेज पर खड़ा किया गया काजी ने अपराध सुनाया  अपराधियों के पास बच्चों की असली माँ खड़ी थी उसका मुहँ उत्तेजना से लाल था उसने चीख कर कहा मेरे बच्चों के साथ ऐसा गुनाह इन्हें दोजख में जगह नहीं मिलेगी हर उपस्थित स्त्री पुरुष के हाथ में मारने के लिये  मिटटी के ढेले थे | अपराधियों का मुहें काले कपड़े से ढक कर क्रेन के सहारे लटकते फंदों में फसा दिये बिना किसी फार्मेलिटी के मेजों को लात मारी देखते – देखते अपराधियों को ऊपर उठा दिया महिलायें बड़ी संख्या में अलग खड़ी थीं सबने पीठ फेर ली  कुछ ही देर में चार शव लटक रहे थे उन्हें पूरा दिन लटकाये रखा शाम को कफिराबाद कब्रिस्तान में दफना दिया| अचानक मुझे भान हुआ मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था लेकिन मेरी मित्र कस कर मेरा हाथ पकड़ कर भीड़ से अलग ले आई | घबराहट मेंरी हालत खराब थी लेकिन इसके बाद एक भी अपराध नही सुना लोग कांच के बड़े दरवाजों वाले घरों में सुरक्षित रहते थे |

शीघ्र फैसला कठोर दंड अपराधियों में भय पैदा करता है कई जीवन सुरक्षित हो जाते हैं | मानवता का व्यवहार उनके साथ होना चाहिए जो मानव हों | क्या यदि दंडित अप्राध्यों को जब फांसी लगे उस समय नाबालिग को भी फांसी स्थल पर ला कर खड़ा किया जाए जैसा उसने अपराध किया था उसका दंड यह था |

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