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पत्रकार एवं पत्रकारिता

Vichar Manthan
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पत्रकारिता का इतिहास बहुत पुराना है रोम में दिन भर की घटनाओं और समाचारों को पत्थर या धातु की पट्टी पर अंकित कर प्रमुख स्थानों पर रख दिया जाता था जिससे अधिक से अधिक लोगों का ध्यान आकर्षित हो सकें| इनमें प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति नागरिक सभाओं में लिए गये निर्णय ग्लेडिएटरों की रोमांचक लड़ाईयाँ कब कहाँ होंगी उनके रिजल्ट आदि लिखे जाते थे|

ईस्ट इंडिया कम्पनी ने सबसे पहले बंगाल पर अधिकार किया था |विदेशी शासन के खिलाफ राजनैतिक जागरूकता के साथ समाज में फैली कुरीतियों की और उस समय के समाज सेवियों ने जन समाज का ध्यान आकर्षित करने के लिए समाचार पत्रों का सहारा लिया जिससे सामाजिक चेतना फैली और भारत में पत्रकारिता राष्ट्रीयता से जुडी |ब्रम्ह समाज के संस्थापक सती प्रथा के विरोधी राजा राम मोहन राय ने प्रेस का सामाजिक चेतना के लिए इस्तेमाल किया समाज में व्याप्त अंधविश्वास कुरीतियों पर चोट करने के लिए कई पत्र शुरू किये जिनमें बंगाल गजट का प्रकाशन 1816 में किया गया यह भारतीय भाषा का पहला पत्र था | अब भारत में ,फ़ारसी और बंगाली में समाचार पत्र छपने लगे |30 मई 1826 के दिन भारत में पहला हिंदी अखबार उदन्त मार्तण्ड पंडित जुगल किशोर शुक्ल द्वारा प्रकाशित किया गया |हिंदी भाषा के समाचारों ने जन मानस को अपने साथ जोड़ा अंग्रेजी के प्रभाव को भी कम किया |

देश आजाद हुआ देश में प्रेस की प्रगति और पत्रकारिता का अभूत पूर्व विकास देखा गया | भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रमुख स्थान है प्रेस की आजादी के लिए बुद्धिजीवी सदैव जागरूक रहे हैं | अंग्रेजी के साथ हिंदी के अनेक समाचार पत्र हैं छपते हैं उनके पाठकों की संख्या भी बढती जा रही है कई समाचार पत्र स्थानीय हैं |लेकिन फिर भी पत्रकारों का जीवन आसान नहीं हें |अपने शौक और जनून को बचाये रखना आसान नहीं है |आज दो प्रकार के पत्रकार हैं |प्रसिद्ध पत्रकार जिनका राजनैतिक गलियारों में नाम और चर्चा है इनका जीवन सुखद हैं |सरकार से उन्हें जीवन की सही मूल भूत सुख सुविधाए मिली हैं समय-समय पर सरकारी अवार्डों से उन्हें सम्मानित किया जाता है, राजनीतिक दल अपने प्रवक्ता भी नियुक्त करते हैं | कईयों ने अपना स्थान केवल अपनी प्रतिभा से नहीं बनाया है उनकी अपनी सूझ बूझ और कूटनीतिक ह्थकंडों का भी स्थान है | उनकी बात अलग हैं लेकिन पत्रकारिता महंगा शौक व नशा है न जाने कितने पत्रकार कुछ कर दिखाने के जोश में अपना जीवन भी दावं पर लगा देते हैं पत्रकारों का जीवन सुरक्षित नहीं है वह खतरों से खेल कर सनसनी खेज समाचार लाते हैं या स्टिंग आपरेशन करते हैं | जब से अपराधी तत्वों का राजनीति में प्रवेश हुआ है वह अब रंगे सियार की भांति लक झक सफेद कुर्ता पहन कर अपनी चाल ढाल को बदल, सौम्यता का अवतार धर कर अपना गुणगान कराना चाहते हैं प्रिंट मीडिया में उनके चित्र और पक्ष में लेख छपें उन समाचारों को दबाया जाये  जिनमें उनके कुकृत्य उजागर होते हैं|

सच कहना लिखना जोखिम भरा काम है कई पत्रकारों की हत्या भी हुई पता ही नहीं चला हत्या की सुपारी किसने दी गयी थी |सरकार और समाज को चाहिए कि पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करें उन्हें सच कहने से न रोकें क्योंकि यही लोग लोकतंत्र के चौथे खम्भे और जन मत के निर्माता हैं लोकतंत्र में इनका अलग महत्व और पहचान है| यह सरकार के साथ साथ विरोधियों को भी कटघरे में खड़ा करतेहैं , हमारी बात को सरकार और जनता तक पहुंचाने के माध्यम हैं | आज महिला पत्रकार भी किसी से कम नहीं हैं, कर्तव्यों को बखूबी से अंजाम दे रही हैं जोखिम उठाती हैं |उनकी सुरक्षा की चर्चाये भी होती हैं उन्हें सुरक्षित अपनाकाम करने दे| कई पत्रकारों को जेल की हवा भी खानी पड़ी है नक्सलाईट प्रभाव के क्षेत्रों में जाते हैं उन्हें सफेद पोश नक्सलवादियों का पक्षधर माना जाता है| उनका पक्ष जनता की नजरों में लाने की कोशिश करते हैं| नक्सल उन्हें शक की नजरों से देखते हैं सरकारी मुखबिर मानते हैं सरकार उन्हें उनका समर्थक और भेदिया मानती है |कई पत्रकार युद्ध क्षेत्र जहाँ हर पल मौत बरसती है से ताजा खबरों के लिए अपनी जान जोशिम में डालते हैं कुछ तो आतंकवादियों का भी इंटरव्यू ले आते हैं वह भी अपना पक्ष रखने के लिए ललायित रहते हैं |

किसी स्टूडेंट से पूछों आप क्या बनना चाहते हैं वह मुस्करा कर कहते हैं ‘पत्रकार’ मीडिया में जाना चाहते हैं लेकिन माता पिता नें जाने नहीं दिया समझाया अनिश्चित भविष्य है | उन्हें बेबाकी से अपनी बात कहना किसी के भी सामने माईक लगा कर प्रश्न करना मीडिया का चकाचौंध से परिपूर्ण जीवन आकर्षित करता है | सच्चाई में क्या पत्रकार सुखी हैं ?पत्रकार हमारी आप की तरह मनुष्य हैं जिनकी अपनी भावनायें अपने दुःख सुख होते हैं |हर परिस्थिति में वे अपना काम करतेहैं कईयों की माली हालत बहुत खराब है कई बार पांच सितारा होटलों के कांफ्रेंस रूम में प्रेस कांफ्रेंस के बाद शानदार दावत दी जाती है लेकिन घर में अपना परिवार विपिन्नावस्था में जीवन बिता रहा है उनके गले से निवाला नहीं जाता फिर भी वह अपना दुःख व आर्थिक स्थिति का किसी से जिक्र नहीं करते कुछ नया करने की धुन में लगे रहते हैं |

चेनल अपनी टीआरपी बढाने के लिए अनेक यत्न करते हैं | उन समाचारों को प्रमुखता देते हैं जिनकों श्रोताओं को सुनाने के लिए चटपटा बनाने के लिए अनेक किस्से जोड़े जाते हैं विवादित व्यक्तियों को बुला कर बहस कराई जाती है जितना शोर शराबा होता है उतना ही दर्शकों की रूचि चैनलों  की तरफ बढती है टीआरपी की जंग निरंतर चलती है | चैनल फेमस हो कर एड (विज्ञापन बटोरते हैं) लेकिन प्रिंट मीडिया उन समाचारों की अंदर की बात देते हैं जिनहें   चैनल छिपा जाते हैं | जब तक सनसनी फैलाई जा सके तब तक समाचारों को चलाते हैं अचानक बिना किसी अंत के बंद कर देते हैं| गरमा गर्म बहसें होती हैं लेकिन बहस का रुख अपने हिसाब से मोड़ते  हैं | मजमा जोड़ा जाता है कई बार बहसों में दर्शकों को भी शामिल किया जाता है उन्हें अपनी बात कहने का अवसर दिया जाता है लेकिन बागडोर अपने हाथ में रखी जाती है बाद में प्रोडक्शन डिपार्ट मेंट अपने हिसाब से काट छांट कर पेश करता है | इसके विपरीत समाचार पत्रों के सम्पादकीय जिस विषय को उठाते हैं उसका विस्तार से सही सटीक विश्लेष्ण करते हैं अंत में सुझाव के साथ निष्कर्ष भी देते हैं | समाचार पत्रों को सफल बनाने उनका खर्च निकालने के लिए के विज्ञापनों की जरूरत पडती है |विज्ञापन भी इतने आकर्षक हों पाठकों का ध्यान खींचे ज्यादातर समाचार पत्र किसी राजनीतिक दल या बिजनेस हॉउस के सम्बन्धित होते हैं वह उनके हितों को साधते हैं| अखबार छापना एक महंगा व्यवसाय है जिसमें लाभ की आशा कम है

आज जरूरत है उत्तम पत्रकारिता की लेकिन समाचार पत्र तभी चलेंगे जब उसके पाठक बढ़ेंगे अखबार खरीद कर पढ़ेंगे |

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