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पैरिस जलवायू परिवर्तन समझौता और भारत

Vichar Manthan
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राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने का फैसला ले लिया, उम्मीद थी मोदी जी और ट्रम्प की वार्ता में पैरिस समझौता भी एक एजेंडा होगा |विश्व के कई देश जलवायु परिवर्तन पर चिंतित है दोनों ध्रुवों से बर्फ पिघल कर समुद्र के जल स्तर को बढ़ा रही है | ऐसा माना जा रहा है अगर धरती के औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की बढ़ोतरी हो जायेगी तो दुनिया के ‘कई’ तटीय क्षेत्र और द्वीप भी समुद्र में समा जायेंगे खेती योग्य भूमि रेगिस्तान में बदलती जा रही है |अत: जलवायू परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है उद्योग धंधों और कृषि कार्यों से गैसों का उत्सर्जन कम कर दुनिया में बढ़ते ताप मान को कम करना है पैरिस समझौते के पक्ष में पहली बार 2015 में दुनिया के बड़े देशों नें जलवायू परिवर्तन से निपटने के लिए एक जुट हो कर विचार विमर्श किया | 2015 दिसम्बर को  पेरिस में सीओपी की 21वीं बैठक में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के जरिए वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस के अंदर सीमित रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस के आदर्श लक्ष्य को लेकर सर्व सम्मति बनी थी| इसी 18 पन्नों के दस्तावेज को सीओपी-21 समझौता या पेरिस समझौता कहते है समझौते के अनुसार सभी सदस्य देश प्रदूषण रोकने के लिए कृत संकल्प थे अक्टूबर, 2016 तक 191 सदस्य देश इस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके थे एक वर्ष बाद भारत ने भी अपनी सहमती दे दी | अमेरिका ,चीन ,योरोपियन संघ के बाद भारत का प्रदूषित देशों में दसवाँ नम्बर आता है | यह समझौता विकसित और विकासशील देशों पर समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता इसलिए  इस समझौते में विकासशील देशों को प्रदूषण में कमी लाने के लिए आर्थिक सहायता और कई तरह की छूटें भी दी जायेंगी विकसित देशों ने सबसे अधिक प्रदूषण फैलाया हैं लेकिन ट्रंप ने चुनाव में भाषण में ‘अमेरिका फस्ट’ और ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का नारा देकर पेरिस समझौते का विरोध किया था  |

क्लीन एनर्जी की दिशा में पूर्व राष्ट्रपति ओबामा के प्रयत्न सराहनीय थे उन्होंने धन लगा कर अमेरिका में सोलर सिस्टम को बढ़ावा दिया , ट्रंप को चेताया था वह ईरानी परमाणु समझौता और पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय निर्णयों को रद्द न करें। इन ऐतिहासिक समझौतों पर हस्ताक्षर कराने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किया था वह चाहते थे ट्रम्प समझौते को बनाये रखें इसके विपरीत ट्रम्प जलवायू परिवर्तन को छलावा चीन का प्रोपगंडा मानते हैं | हिलेरी ने अपनी चुनावी सभाओं में ट्रम्प के विचार का कड़ा विरोध करते हुए कहा था क्या हम एक ऐसे आदमी को वाईट हॉउस भेजने का जोखिम उठा सकते हैं जो जलवायू परिवर्तन को नजर अंदाज करता है हिलेरी के अनुसार अमेरिका को स्वच्छ ऊर्जा आधारित अर्थव्यवस्था की और कदम बढ़ा कर ज्यादा वेतन वाले रोजगार ,ज्यादा सौर पैनल एवं पवन ऊर्जा से संचालित टर्बाइन बनाने और लगाने चाहिए | ट्रम्प राजनीतिज्ञ से पहले सोच से एक बिजनेस मैंन है  हर काम को वह नफे नुकसान से तोलते हैं वह कहते हैं पेरिस समझौते से अमेरिका को एक समय बाद 53 खरब डॉलर का नुकसान होगा जिससे बिजली |की कीमतें बढ़ जायेंगी |  

व्हाइट हाउस के रोज गार्डन से श्री ट्रम्प ने  फैसले की घोषणा करते हुए  कहा वह पेरिस का प्रतिनिधित्व नहीं करते अत: अमेरिकन नागरिकों के हितों की रक्षा करने के पेरिस जलवायु समझौते से हट जायेंगे या पूरी तरह से नये समझौते पर बातचीत शुरू करेगें जो अमेरिका, उसके उद्योगों, कर्मचारियों , जनता और करदाताओं के लिए उचित होंगा  सामने रख कर विचार कर हम देखेंगे ओबामा  के कार्यकाल के दौरान  देशों के साथ किए गए इस समझौते पर क्या  फिर से बातचीत करने की जरूरत है? उनकी दलील है यह समझौता  चीन और भारत जैसे देशों के लिए अधिक लाभकारी है उनके देश के लिए नुकसान देह है क्योकिं  भारत को पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने के लिए अरबों डॉलर मिलेंगे विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्तीय सहायता के लिए 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष देना और भविष्य में इसे बढ़ाना भी पड़ सकता है जबकि कहीं भी बाध्यता का उल्लेख नहीं है |

ट्रम्प द्वारा पैरिस समझोते से पीछे हटने के एक दिन बाद मोदी जी ने टिप्पणी करते हुए कहा था यह समझौता दुनिया की साँझा विरासत है और फ्रांस के नव निर्वाचित राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ एक सांझा प्रेस कांफ्रेंस में पीएम मोदी ने पेरिस समझौते का महत्व बताते हुए कहा धरती माता के लिए सभी का कुछ न कुछ योगदान ज़रूरी है|

अपनी अमेरिकन यात्रा में उन्होंने ट्रम्प से इस विषय से बात होगी स्पष्ट नहीं किया भारत विकास शील देश है वह किसी भी स्थित में निवेश बढ़ाना चाहता है हमारे पास ईधन की कमी नहीं है कोयले के भंडार है यही नहीं गैस का भी पर्याप्त इंतजाम हम कर रहे हैं लेकिन ऊर्जा का प्रश्न पर्यावरण से जुड़ा है भारत ने भविष्य में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के ज़रिए सबसे ज़्यादा बिजली उत्पादन को लक्ष्य बनाया है लेकिन परमाणु एनर्जी भी विकास के लिए आवश्यक है|

क्लीन एनर्जी – पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह अपनी प्रो अमेरिकन पालिसी के लिए जाने जाते हैं |अमेरिका ने भारत के साथ 2008 में परमाणु सहयोग समझौता किया अमेरिका मानता है भारत ऐसा परमाणु सम्पन्न देश है जो नियमों को मानता है डॉ मनमोहन सिंह ने ऊर्जा के क्षेत्र में परमाणु समझौता किया लेकिन इसका उनके सहयोगी यूपीए और विपक्ष दोनों ने विरोध किया |समझौते के अनुसार अमेरिका भारतीय परमाणु संयंत्रों पर निगरानी रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसियों को यह कार्य सौंपना चाहता था | अमेरिकन सीनेट ने भी समझौता पास कर दिया  सहयोगी बामपंथी दल समझौते के खिलाफ थे उन्होंने सरकार से समर्थन वापिस लेने की धमकी दी सोनिया जी नहीं चाहती थी सरकार गिरे लेकिन प्रधान मंत्री अड़ गये उन्होंने इस्तीफे की धमकी दे दी अंत में बीच का मार्ग निकाला गया |फैसला हुआ 22 संयंत्रों में केवल 14 की निगरानी होगी 8 सैनिक महत्व के संयंत्रों की निगरानी नहीं होगी फिर भी बामपंथी दलों ने समर्थन खींच लिया लेकिन मुलायम सिंह जी के दल से समर्थन मांग कर सरकार बचाई गयी  समझौता संसद में पास हो गया |समझौते के समय चीन अमेरिका के दबाब में था|

भारत एनएसजी की सदस्यता का इच्छुक है ताकि वह परमाणु प्रौद्योगिकी का निर्यात कर सके भारत की ऊर्जा की जरूरत पूरी के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार खुल जाने से परमाणु कार्यक्रम से 2030 तक 63oooमेगावाट ऊर्जा हासिल कर सकता था
भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये वह गैर परमाणु हथियार सम्पन्न देशों की श्रेणी में आता है उसका तर्क था फ़्रांस एनएसजी का सदस्य है परन्तु उसने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं | वह शक्तियाँ जो एनएसजी की फाउंडर हैं भारत को सदस्यता देने की खुल कर वकालत कर रहीं थीं केवल बाद में शामिल हुआ देश विरोध कर रहा था जैसे चीन |

सियोल में होने वाली एनएसजी बैठक में 48 देशों के 300 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया |भारत ने सदस्यता ग्रहण करने की कूटनीतिक स्तर पर पुरजोर कोशिश की मोदी जी बहुत उत्साहित  थे उन्हें अमेरिका पर भरोसा था चीन एक ही जिद पर अड़ा था पहले भारत एनटीपी पर हस्ताक्षर कर सदस्यता की शर्त पूरी करे अंत में भारत का सदस्यता का दावा खत्म हो गया| चीन के साथ भारत भी आने वाले कुछ वर्षों में कोयले से संचालित बिजली संयंत्रों को दोगुना कर लेगा |

मूल रूप से पेरिस जलवायु समझौते को मानने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है. इसके अलावा  देश कितना प्रदूषित हैं , इसकी जांच का भी कोई तरीका अभी तक मौजूद नहीं है.

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