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‘इजरायल’ यहूदी संहार और विस्थापन की कहानी -1

Vichar Manthan
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इजरायल पश्चिमी एशिया का छोटा सा देश है। इसका क्षेत्रफल लगभग बंबई जितना है। यहाँ के अधिकांश बाशिंदे यहूदी, मुस्लिम अल्पमत में हैं। यह भूमध्यसागर के किनारे स्थित है। इसके उत्तर में लेबनान उत्तर पूर्व में सीरिया (सीरिया खंडहर बनकर नष्ट हो रहा है) एक तरफ मिश्र है। पश्चिमी तट और गाजा पट्टी इजरायल से सटा हुआ है।

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किसी भी रेस की तरक्की का कारण जानना है, तो उसका गुजरा कल अर्थात  इतिहास जानना चाहिए। यहूदियों का पूरा इतिहास उनके संहार और अपने स्थान से विस्थापित होने की दर्द भरी दास्तां, कौम की गाथा संघर्षों से भरी है। आज भी वे शांति से जी नहीं सकते, भारत की तरह आतंकवाद झेल रहे हैं। यहूदियों की संस्कृति अति प्राचीन है। यहूदियों के धर्म ग्रन्थ ओल्ड टेस्टा मेंट के अनुसार यहूदियों के पहले पैगम्बर हजरत अब्राहम ईसा से लगभग 2000 वर्ष पूर्व के हैं। इनके बेटे का नाम इसहाक और पोते का नाम जेकब था। जेकब ने यहूदियों की अनेक जातियों (कहते हैं लगभग 12 जातियां थीं ) को एक किया।

जेकब का दूसरा नाम इजरायल था। अत: इजरायल का नामकरण उन्हीं के नाम पर हुआ। जेकब के एक बेटे का नाम यहूदा था। उनके वंशज ज्यूज अर्थात यहूदी कहलाये, इसीलिए राष्ट्र का नाम इजरायल और रेस का नाम यहूदी है। इनका धर्म ग्रन्थ ‘तनख’ कहलाता है, यह हिब्रू भाषा में लिखा गया था। बाद में ईसाइयों की बाइबिल में इस धर्म ग्रन्थ को शामिल कर लिया। इसे ओल्ड टेस्टामेंट कहते हैं, जिसमें तीन ग्रन्थ शामिल हैं। पहला ग्रन्थ ‘तौरेत’ है, इसमें धर्म क्या है, इसकी व्याख्या की गयी है। दूसरे ग्रन्थ में यहूदी पैगम्बरों की कहानियां हैं। तीसरा ग्रन्थ पवित्र लेख कहलाता है| पहले धर्म शास्त्र श्रुति के सहारे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलता रहा, लेकिन बाद में तनख की विधिवत रचना 444 ई.पूर्व से 100 ई. पू. तक की गयी ऐसी मान्यता है |

330 में ईरान पर सिकन्दर ने हमला कर ईरान को जीता ही नहीं, बल्कि वहां के हखामनी राजवंश को समाप्त कर किसी को नहीं बख्शा। यहां तक कि बच्‍चों को भी मार डाला | उसी के सेनापति तोलेमी प्रथम ने (सिकन्दर का सेनापति) 320 ई.पू. इजरायल और यहूदा पर हमला कर उन पर अधिकार कर लिया |198 ई.पू में यूनानी परिवार के ही सेल्यूकस राजवंश के अंतीओकस चतुर्थ के सत्ता ग्रहण करते ही यहूदियों ने उसके विरुद्ध जेरूसलम में विद्रोह किया |विद्रोह का दमन करने के लिए हजारों यहूदियों को मार डाला। यहूदियों के पवित्र डेविड टेम्पल को लूट लिया, ‘तौरेत’ (धर्म ग्रन्थ ) की जो भी प्रति मिली उसे भी जला दिया|

यहूदी धर्म के पालन पर रोक लगाकर यहूदियों के धर्म, आस्था और आत्म सम्मान पर गहरी चोट लगी, लेकिन 142 ई.पू .में ही यूनानियों से लड़कर यहूदियों के नेता ने उनको आजाद करवा दिया | आजादी अधिक समय तक चल नहीं सकी। रोमन ने इजरायल पर फिर से अधिकार ही नहीं किया, अबकी बार एक-एक यहूदी की हत्या कर दी| इजरायल पर अरबों ने भी अधिकार किया। 14वीं शताब्दी से ओटोमन एम्पायर का पूरे मिडिल ईस्ट पर कब्जा था, लेकिन 19वीं शताब्‍दी के बाद साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा।

पूरे यूरोप में भी उग्र राष्ट्रवाद, जिनमें इटली और जर्मनी सबसे प्रमुख की लहर बढ़ी। ब्रिटेन के समान यहां अधिक से अधिक उपनिवेशों पर अधिकार करने की होड़ चली। इजरायल पर अरबों को हराकर ईसाइयों ने कब्जा कर लिया। यहूदियों और मुस्लिम दोनों को मारा। येरूसलम की धरती पर अनेक धर्म युद्ध हुए। हलाकू और तैमूर लंग हमलावरों ने भी येरुसलम को नष्ट करने का पूरा प्रयत्न किया।

इजरायल पर कभी मिश्र और प्रथम विश्व युद्ध के समय टर्की का कब्जा था, लेकिन 1917 में जब विश्व युद्ध चल रहा था, तब  इजरायल पर ब्रिटिश सेनाओं ने कब्जा कर लिया। यहूदियों को आश्वासन दिया ब्रिटिश सरकार इजरायल में यहूदियों को बसाना चाहती है, जिससे यहूदियों का एक देश हो। दुनिया से यहूदी यहां आकर धीरे-धीरे बसने लगे। हिटलर के जर्मनी पर अधिकार करने के बाद यहूदियों के साथ जो हुआ मानवता भी शर्मिंदा हो गयी।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी की परेशानी का कारण यहूदी हैं, यह प्रचार कर उनकी नस्ल को नस्ल नष्ट करने के लिए जानवरों की तरह उन्हें ट्रकों में भरकर लाया जाता, फिर मरणासन्न स्त्री-पुरुषों को गैस चेम्बरों में मरने पर विवश किया जाता। बाकायदा ठेके उठते थे, कौन कम खर्च में अधिक से अधिक यहूदी मार सकेंगे। यहूदी सुन्‍न हो गये थे, बचने की कोई उम्मीद नहीं थी।

उस समय के चित्रों में यहूदियों के शरीर नर कंकाल बने देखे जा सकते हैं। केवल जर्मनी ही नहीं फ़्रांस, इटली,रूस और पौलेंड में अत्याचार ही नहीं उनके धर्म पर बैन लगा दिया गया, देखकर आश्चर्य होता है। नर संहार से बची यहूदी नस्ल पत्थर बन गयी। अब वह उस धरती पर लौटना चाहते थे, जहाँ से उनको निकाला गया था |

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ हिंसात्मक विद्रोह हो रहे थे। इधर यहूदी माईग्रेशन इतना बढ़ा कि तीन प्रतिशत यहूदियों की जनसंख्या 30 परसेंट हो गयी। यहूदियों ने गरीब अरबों से जमीन खरीदी। इनके परिवार मिलकर खेती करते थे। उनके खेतों के बीच यदि किसी फिलिस्तीनी का खेत आ जाता था, उसे बेचने  के लिए दबाब डालते। लोकल लोगों और यहूदियों के झगड़े बढ़ने लगे।

अरबों के शस्त्रधारी भी ब्रिटिशर पर हमला करने लगे। यूरोप में यहूदियों का जनसंहार और उनका पलायन देखकर ब्रिटिशर ने ऐसा उपाय निकालने की कोशिश की, जिससे अरब और यहूदी दोनों सहमत हो सकें। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा फिलिस्तीन को बांट दिया जाये, विभाजन दो राज्यों में होना था। संयुक्त राष्‍ट्रसंघ ने 1947 में विभाजन स्वीकार कर लिया, लेकिन येरुसलम पर फैसला नहीं हो सका। वह संयुक्त राष्ट्रसंघ के आधीन रहा। भारत की तरह ही बटवारा हुआ, यानी फूट डालो राज करो |

14 मई 1948 को इजरायल, एक यहूदी राष्ट्र की स्थापना हुई। हजारों यहूदी शरणार्थी इजरायल से शरण मांग रहे थे। दुनिया भर से यहूदी युवक-युवतियां हाथ पकड़कर अपने राष्ट्र का उत्थान और विकास में योगदान करने आने लगे। प्राचीन कहानियों में वर्णित इजरायल क्या वैसा था, धूल भरी आंधियां, तम्बुओं में लोग पड़े थे, लेकिन उनके मन में उत्साह की कमी नहीं थी। मजबूत राष्ट्र के निर्माण की इच्छा शक्ति थी। विश्व में कहीं भी यहूदी रहता हो, उसके लिए इजरायल की नेशनलिटी की कोई परेशानी नहीं थी न अब है।

इजरायल में येरूसलम एक ऐसा शहर है, जिसका इतिहास यहूदियों, ईसाइयों और मुस्लिमों के विवाद का केंद्र है। यहाँ किंग डेविड के टेंपल की एक दीवार है। यहूदियों का विश्वास यहां पहली बार एक शिला की नींव रखी गयी थी, यहां से दुनिया का निर्माण हुआ था और अब्राहम ने अपने बेटे इसाक की यहीं कुर्बानी दी थी। यहूदियों के हिस्से में बस एक दीवार बची है। यहां कभी एक पवित्र मन्दिर था, किंग डेविड का टेंपल, जिसे रोमन आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया। बची पश्चिमी दीवार उस टेम्पल की निशानी है। यह दीवार  होली आॅफ होलीज  के सबसे करीब है। लाखों तीर्थ यात्री दीवार के पास खड़े होकर रोते और इबादत करते दिखाई देते हैं।

ईसाइयों का विश्वास है कि यहां ईसा को सूली पर चढ़ाया गया था। इस स्थान को गोल गोथा भी कहते हैं। यहा ईसा ने पुन: जन्म लेकर सरमन दिये थे। ईसाई समाज यहां के लिए बहुत संवेदनशील है। मुस्लिम समाज भी इस स्थान के लिए बहुत संवेदनशील है। यहां डोम आॅफ रॉक और मस्जिद अक्सा है। यह इस्लाम धर्म की तीसरी पवित्र मस्जिद है।

मुस्लिम समाज का विश्वास है  कि यहां पैगम्बर मुहम्मद मक्का से आये थे। अपने समकालीन अन्य धर्मों के पैगम्बरों से मिले थे। यहां एक आधारशिला रखी गयी है। मान्यता है कि यहीं से पैगम्बर मुहम्मद स्वर्ग जाकर वापस आये थे| मुस्लिम समाज रमजान के हर जुमे को इकठ्ठे होकर नमाज पढ़ते हैं। इजरायल ने हिब्रू को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया है। यह इनकी प्राचीन भाषा है और दायें से बायीं ओर लिखी जाती है।

सभी प्रार्थनाओं में हिब्रू का प्रयोग किया गया था, लेकिन दैनिक जीवन में हिब्रू को प्रयोग में लाना मुश्किल था, यहूदी इसे भूल चुके थे। वे अलग–अलग स्थानों में रहे थे। जैसे सैकड़ों वर्षों तक मेसोपोटामिया में बसे यहूदियों की भाषा ‘आरमाईक’ हो गयी, जो यहूदी मिडिल ईस्ट में बसे उनकी भाषा अरबी हो गयी। यूरोप में बसे जैसे जर्मनी में जर्मन बोलते थे, भारत में केरला में बसे यहूदी मलयालम और बाद में महाराष्ट्र में बसे मराठी बोलते हैं। जैसा देश वहीं की भाषा उनकी अपनी भाषा हो गई।

अत: भाषा को विस्मृत कर चुके थे। भाषा को फिर से जीवित करने वाले महानुभाव का नाम एलिजर बेन यहूदा था। यह रशिया में जन्मे थे। उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी। उनके अनुसार पहले परिवार में आपसी बोलचाल में हिब्रू का प्रयोग किया जाये। शिक्षा का हिब्रू को माध्यम बनाया जाये। हिब्रू में दूसरी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग कर इसे समृद्ध बनाया जाये और  इसकी डिक्शनरी बनायी जाये |14 मई 1948 को इजरायल का उदय हुआ। हिब्रू राजभाषा पद पर सम्मानित की गयी, जबकि यहां अरबी का भी चलन है। अब हर क्षेत्र में हिब्रू का प्रयोग होता है। विदेशों में बसे यहूदी भी हिब्रू का अध्ययन करते हैं। अपनी भाषा स्वाभिमान जगाती है|

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