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अरब-इजरायल संघर्ष, भारत-इजरायल सम्बन्ध

Vichar Manthan
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यहूदी कौम बहुत मेहनती और तरक्की पसंद है। दो हजार वर्ष पूर्व इन्हें अपनी मातृभूमि फिलिस्तीन से निष्कासित होना पड़ा था। एक किंवदन्ती है कि यहूदी कम्यूनिटी एेशो आराम में इतने मस्त थे कि इन्हें अभिशाप के कारण अपनी जगह से पलायन करना पड़ा था। भारत में भी यहूदी आकर बसे और यहीं के होकर रह गये। भारत में यहूदी सबसे पहले केरल में बसे थे। इसके बाद महाराष्ट्र में वे समाज में ऐसे घुल-मिलकर रहते थे कि पता ही नहीं चलता था कि ये कभी बाहर से आये थे, अब वे भारतीय हैं। उन्होंने यहीं की भाषा अपना ली, वे भारत को अपनी मदर लैंड मानते हैं। इजरायल के जन्म के बाद उसको फादर लैंड। इजरायल राष्ट्र के निर्माण के बाद बहुसंख्यक यहूदी भारत से इजरायल चले गये।

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दि़्वतीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन इतना कमजोर हो चुका था कि वह अपने उपनिवेशों को अपने कब्जे में नहीं रख सकता था। मई 1948 को ब्रिटेन ने फिलिस्तीन के दो हिस्से इजरायल और फिलिस्तीन किए और उसकी सेनाएं वापस लौट गयीं। इजरायल के आसपास बसे देशों को बंटवारा मंजूर नहीं था। 14 मई 1948 को नये राज्य इजरायल का उदय हुआ, लेकिन निर्माण के साथ ही संकट के बादल मंडराने लगे। दोनों राज्यों के बीच सीमा रेखा का निर्धारण नहीं हुआ था।

इजरायल कमजोर स्थिति में था, अत: अरब राज्यों ने उचित समय समझकर इजरायल को उखाड़ने की कोशिश की। मिश्र, जोर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक की संयुक्त सेनाओं ने अगले दिन 15 मई को  इजरायल पर हमला बोल दिया। यहीं से “अरब इजरायल संघर्ष ” की शुरुआत हो गयी, जो अब तक जारी है। जून में युद्ध विराम हुआ, अब दोनों पक्षों को तैयारी करने का अवसर मिला, लेकिन चकोस्लोवाकिया की मदद से अंत में इजरायल की जीत हुई।

युद्ध का सबसे बड़ा खमियाजा फिलिस्तीनियों को भुगतना पड़ा। लगभग एक लाख लोग विस्थापित हो गये। उन्हें तंबुओं में रहना पड़ा। इजरायल के कब्जे में बड़ा क्षेत्र आ गया। यहूदियों का अपना कहलाने वाला देश था, यहां उन्हें अपने अस्तित्व के लिये लड़ना था। 1949 में जोर्डन और इजरायल के बीच एक समझौते द्वारा सीमा विवाद सुलझाने की कोशिश की गयी, जोर्डन नदी के पश्चिमी इलाके वेस्ट बैंक पर जोर्डन का और गाजा पट्टी पर इजिप्ट का कब्जा हो गया। ग्रीन लाइन के नाम से सीमा का निर्धारण हुआ।

11 मई को संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इजरायल को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता  दी। इसी वर्ष प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्‍सटीन ने भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा कि विश्व में सबसे अधिक यहूदियों का संहार हुआ है। अब उनका अपना देश बन गया है। आप इजरायल को मान्यता देकर उनका मोरल  बढ़ा सकते हैं, लेकिन नेहरू जी ने उत्तर में लिखा कि उनकी कुछ राजनीतिक मजबूरियां हैं। भारत अरब दुनिया को नाराज नहीं करना चाहता था। हम तेल के लिए भी अरबों पर निर्भर रहे हैं। उनसे हमारा व्यापारिक सम्बन्ध है। भारतीय अरब देशों में काम करते हैं, उनका हित भी देखना था। अत: भारत ने अरब दोस्ती को अधिक महत्व दिया।

इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान की विदेश नीति का उद्देश्य मुस्लिम राज्यों से सम्बन्ध बढ़ाकर उनका लीडर बनना था। वह अपने जन्म के समय से ही भारत विरोधी था, लेकिन भारत से अरबों के सम्बंध बने रहे। भारत ने शीत युद्ध के काल में गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। पीएलओ का भारत में दफ्तर खुला, यासिर अराफात इंदिरा जी को अपनी बहन कहते थे, लेकिन इजरायल भारत से सम्बन्ध बनाने का सदैव इच्छुक रहा है। इजरायल में नीति निर्धारक जानते थे, भारत को आधुनिक हथियारों की जरूरत है, उसकी सीमा पर दो दुश्मन हैं चीन और पाकिस्तान। उनकी  भारत के बाजार पर भी नजर थी। भारत ने 1950 में इजरायल को मान्यता दी। इजरायल के समर्थन में अमेरिका और ब्रिटेन सदैव रहे हैं।

देशभक्ति सीखनी है, इजरायल से सीखें। दुनिया का अकेला यहूदी राष्ट्र है, यहां महिलाओं के लिए भी  सेना में काम करना अनिवार्य है। उनकी वायु सेना विश्व में चौथे नम्बर पर है। इजरायल को अरब देशों ने मान्यता नहीं दी। मिश्र के राष्ट्रपति अब्दुल नासिर नेहरू जी के मित्र और गुटनिरपेक्ष संगठन के सदस्य थे। नासिर ने इजरायल से युद्ध करने की ठानी। सोवियत यूनियन से युद्धक हथियार खरीदने का समझौता किया, जिसमें  टैंक और युद्धक विमान भी शामिल थे।

इस क्षेत्र में शीत युद्ध की शुरुआत हो गयी। पहले ऐसे फिदायीन तैयार किये, जिन्होंने इजरायल के भीतर जाकर सार्वजनिक स्थानों पर बम विस्फोट किये। स्वेज नहर पर 1936 में हुई बीस वर्षीय संधि के अनुसार ब्रिटिश सेनाएं वहां रहती थीं। नासिर ने संधि का फिर से नवीनीकरण करने से इनकार कर स्वेज नहर का राष्ट्रीय करण किया। विरोध में इजरायली सेना ने मिश्र पर हमला कर सिनाई क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। उनका साथ ब्रिटेन और फ़्रांस के बम वर्षक विमानों ने भी दिया। सुरक्षा परिषद के हस्ताक्षेप से युद्ध बंद कराया गया। इजरायल को जीते हुए क्षेत्रों से पीछे हटना पड़ा। नेहरू जी ने स्वेज संकट को टालने की भरपूर कोशिश की थी। अब स्वेज नहर आवागमन के लिए सबके लिए खोल दी गयी।

1966 में मिश्र, इराक, सउदी अरब, सीरिया, अल्जीरिया, जोर्डन और लेबनान ने संगठित होकर इजरायल पर हमला किया। इजरायल से छ: दिनों के युद्ध में अरबों को मुहं की खानी पड़ी। इजरायल की वायु सेना ने कमाल कर दिखाया। मिश्र की वायु शक्ति को हवाई हमले से पहले ही जमीन पर खत्म कर दिया। इजरायल की थल सेना ने तेजी से हमला कर मिश्र की गाजा पट्टी और सिनाई पर कब्जा किया। सीरिया से गोलन पहाड़ियां और जोर्डन के वेस्ट बैंक पर इजरायल ने कब्जा कर लिया।

अक्टूबर 1973 में इजिप्ट और सीरिया ने इजरायल पर तब हमला किया, जब वह अपना त्योहार योम किप्पूर मना रहे थे, लेकिन दोनों हारे ही नहीं, बल्कि नुकसान भी उठाना पड़ा। 1977 के चुनाव में लेबर पार्टी हार गयी। बदली सरकार से मिलने अनवर सादात ने स्वयं इजरायल की यात्रा कर समझदारी का कदम उठाया। जिससे इजरायल इजिप्ट समझौते की नींव पड़ी, अत: कैम्प डेविड समझौता हुआ। इजरायल भी जानता था कि निरंतर युद्ध उसकी आर्थिक स्थिति को खराब कर रहे हैं। अनवर सादात की आर्मी परेड के दौरान हत्या के बाद हुस्ने मुबारक मिश्र के राष्ट्रपति बने, उन्होंने भी समझौते पर चलने का फैसला किया। 1980 में इजरायल ने येरूसेलम को अपनी राजधानी घोषित की। इससे अरब समुदाय में नाराजगी फैल गयी।

इराक में परमाणु संयत्र बनाया जा रहा था। इजरायल को भय था यदि इराक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बन गया, तो उसके लिए खतरा बन जाएगा। अत: 7 जून 1981 में इजरायल ने उसे तबाह कर तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के मंसूबों पर पानी फेर दिया। 1967 से 1987 में इजरायल द्वारा कब्जाये गये क्षेत्र के बीस वर्ष पूरे हो चुके थे। अत : कब्जे के खिलाफ एक जन आन्दोलन की शुरूआत हुई। शुरू में गांधीवादी तरीका अपनाया गया। हड़तालें, इजरायली वस्तुओं का बहिष्कार आदि किया गया, लेकिन बाद में भीड़ उग्ररूप धारण कर इजरायली सेना पर पथराव करने लगी।

इजरायल की दमन प्रक्रिया की तस्वीरें मीडिया ने विश्व को दिखलाई। इससे फिलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा होने लगी। अनेक विकसित देशों के बुद्धिजीवी फिलिस्तीनियों के पक्ष में खड़े हुए। अमेरिकन राष्ट्रपति रीगन के प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप अरब देशों के प्रतिनिधि व इजरायल ने साथ बैठक कर समझौता किया और पीएलओ अरब संगठन को मान्यता दी गयी।

पीएलओ ने भी इजरायल को मान्यता देकर 1967 से पहले की सीमा को स्वीकार कर लिया। इसे ओस्लो समझौता कहते हैं। आज भी यह क्षेत्र अशांत है। किसी न किसी बात पर झगड़ा बढ़ जाता है। अरब मानकर चलते हैं इजरायल में किसी भी दल की सरकार क्यों न हो, एक सीधा मुक्का मारते हैं और दूसरा दल ग्लब्‍स पहनकर। काफी कठिनाइयों के बाद फिलिस्तीन को 2012 नबम्बर को संयुक्त राष्ट्रसंघ में गैर सदस्य पर्यवेक्षक का दर्जा मिला।

भारत की अधिकांश जनसंख्या इजरायल को सदैव सम्मान की दृष्टि से देखती है, लेकिन सरकारें खुलकर इजरायल से सम्बन्ध बनाने से बचती रहीं हैं| 1962 में चीन युद्ध में भारत को इजरायल ने तोपों के गोलों की आपूर्ति की थी। अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों में परिवर्तन आता रहता है। सोवियत यूनियन के टूटने से कुछ समय के लिए रूस कमजोर पड़ गया। भारत की विदेश नीति का झुकाव भी अमेरिका की तरफ बढ़ा।

नरसिंहाराव की सरकार में अमेरिकन दबाब में इजरायल के साथ सम्बन्ध बनाने की कोशिश शुरू हुई। 1992 में राजदूत के स्तर पर सम्बन्ध बने। अटल जी के प्रधानमन्त्री  कार्यकाल में करगिल युद्ध के दौरान इस्तेमाल होने वाली लेजर गाईडेड बम और मानव रहित हवाई जहाज की इजरायल द्वारा तुरंत मदद करने से दोनों देशों के सम्बन्ध और मजबूत हुए। 2003 में इजरायल के प्रधानमंत्री ने भारत का दौरा किया। आधुनिक हथियारों की खरीद का सौदा भी हुआ।

पोखरन में परमाणु विस्फोट पर फ्रांस, रूस और इजरायल ने भारत का विरोध नहीं किया था। मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद स्पष्ट था कि भारत-इजरायल के सम्बन्ध बढ़ेंगे। आये दिन आतंकवादी जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेशकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नवम्बर 2014 में दौरे के समय नेतन्याहू ने कहा था कि भारत को इजरायल उनकी सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए सीमाओं की सुरक्षा की तकनीक शेयर करेगा।

भारत के फिलिस्तीन के साथ भी मधुर सम्बंध हैं। मोदी जी की अरब देशों की यात्रा से उनके सम्बन्ध और भी प्रगाढ़ हुए। मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने इजरायल की यात्रा की। दोनों प्रधानमंत्री बहुत प्रेम से गले मिले। 70 वर्षों से धीरे-धीरे बढ़ने वाले सम्बन्ध प्रगाढ़ हुये। यदि भारत को इजरायल की आवश्यकता है, तो इजरायल के लिए भारत का महत्व कम नहीं है। विश्व की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी से सम्बन्धों की मजबूती और भारत का बाजार जिसके लिए सभी लालायित हैं। भारत-इजरायल ने सात समझौतों पर हस्ताक्षर किये। सभी समझौते भारत के लिए लाभकारी हैं। मानव रहित विमान बनाने के समझौते पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किये। इजरायल छोटा देश है, लेकिन भारत के पास मैन पावर है। दोनों ने साझा प्रेस कांफ्रेंस में आतंक के खिलाफ एक जुटता दिखाई।

पाकिस्तान के अलावा किसी अरब देश ने भारत का विरोध नहीं किया। मुस्लिम वर्ग शिया-सुन्नी झगड़ों में उलझा है। सीरिया बर्बाद हो गया। इराक की हालत बदतर है। इस्लामिक स्टेट का खतरा अभी टला नहीं है और जोर्डन स्वयं इजरायल से सम्बन्ध बढ़ा रहा है। आजकल सउदी अरब इजरायल के मामले में चुप रहता है। कश्मीर के मुद्दे पर मुस्लिम वर्ग ने हमारी कभी मदद नहीं की। सदैव पाकिस्तान के साथ स्वर मिलाया है। हाल में तुर्की के राष्ट्रपति भारत आये थे। ईरान भी भारत के साथ अच्छे सम्बन्ध बढ़ा रहा है। जब ईरान पर प्रतिबन्ध लगे थे, तब भी भारत  ईरान से तेल आयात करता था। अब तो चाबहार बन्दरगाह के बाद दोनों देश और पास आ गये हैं। हाँ भारत में इजरायल यात्रा का विरोध हुआ। प्रश्न उठे कि प्रधानमंत्री फिलिस्तीन क्यों नही गये? देश के राजनीतिक दलों को मुस्लिम वोट बैंक समेटने की चिंता अधिक रहती है। लेकिन कूटनीति कहती है, पहले देश का हित।

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