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पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में 221 वोटों से शाहिद खाकन अंतरिम प्रधानमंत्री निर्वाचित हुये हैं। पकिस्तान मुस्लिम लीग की बैठक में प्रधानमंत्री पद के लिए शाहबाज शरीफ सबके पसंदीदा उम्मीदवार हैं। ये नवाज शरीफ के छोटे भाई, पंजाब के मुख्यमंत्री हैं, परन्तु वे सांसद नहीं हैं। पाकिस्तान के संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के लिए सांसद होना जरूरी है। अत: वे नवाज शरीफ की खाली हुई सीट से सितम्बर में होने वाले चुनाव के उम्मीदवार हैं, जबकि भारत में बहुमत दल का नेता संसद सदस्य न होने पर भी प्रधानमंत्री बन सकता है। मगर उसे छह माह के भीतर संसद के दोनों सदनों में से किसी एक का सदस्य चुना जाना आवश्यक है।
नवाज शरीफ पाकिस्तान मुस्लिम लीग के कद्दावर नेता हैं। अबकी बार वे तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे। उनके दूसरे कार्यकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच में लड़ा जाने वाला युद्ध कारगिल वार कहलाता है। युद्ध जरनल मुशर्रफ की महत्वकांक्षा का परिणाम था। ऐसा ही प्रयत्न 1948 में श्रीनगर पर कब्जा करने के उद्देश्य से कबिलायियों के वेश में नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर के पाकिस्तानी सैनिकों ने घुसपैठ की थी, वैसा ही कारगिल में हुआ था।
नवाज का तीसरा कार्यकाल, भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने नवाज शरीफ से सम्बन्ध बढ़ाने की हर सम्भव कोशिश की। वार्ता शुरू करवाई, स्वयं उनके गृह क्षेत्र की यात्रा की, जिसके लिए उन्हें अपने देश में विपक्ष की आलोचना भी झेलनी पड़ी है। ऐसा माना जाता है कि प्रजातन्त्रात्मक ढंग से चुनी गयी सरकार से वार्ता करना आसान है, लेकिन पाकिस्तान में सेना का स्थान सदैव ऊंचा रहा है। निर्णायक भूमिका उसी की रही है। सेना अपना वर्चस्व किसी भी कीमत पर खोने को तैयार नहीं है। नवाज के भाषण में चाहे वह किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर दिया गया हो, सेना की छाप सदैव नजर आती रही थी।
पाकिस्तान के निर्माण के बाद से वहाँ की विदेश नीति में भारत विरोध प्रमुख रहा है। चाहे जनता की चुनी गयी सरकार के प्रधानमंत्री हों या मिलिट्री जरनल, सब भारत विरोधी वक्तव्य देते रहते हैं। वहाँ की जनता को भी भारत विरोध भाने लगा है। जब बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री चुनी गयीं, उस समय भारत के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी थे। लग रहा था कि दोनों विरोध की नीति में परिवर्तन कर दोनों देशों के सम्बन्धों को आगे बढ़ायेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
भुट्टों की भारत विरोधी नीति किसी से छुपी नहीं थी। नवाज शरीफ भी इसी रंग में रंगे हुए थे। 19 फरवरी 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी जी ने दिल्ली से लाहौर बस सेवा शुरू की। उन्होंने और भारत की कई नामी हस्तियों ने लाहौर यात्रा कर सम्बन्ध सुधारने की कोशिश की। यह एक राजनीतिक कदम था। बाद में कारगिल युद्ध हुआ। अक्टूबर 1999 में नवाज ने जरनल मुशर्रफ की ताकत को कम करने की कोशिश की, लेकिन सेनाध्यक्ष मुशर्रफ ने सत्ता पर कब्जा कर उनको जेल भेज दिया। सऊदी अरब ने मध्यस्थता कर उन्हें जेल से निकलवाकर जेद्दा में शरण दी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय द्वारा नवाज की सत्ता जा चुकी है। अमेरिका के खोजी पत्रकारों के इंटरनेशनल महासंघ ने पनामा पेपर्स के लीक हुए दस्तावेज से अपने अज्ञात सूत्रों के माध्यम से दस्तावेज की जानकारी हासिल की। इनमें खुलासा हुआ कि नवाज शरीफ के अलावा उनके बेटे हसन, हुसैन और बेटी मरियम ने ब्रिटेन में चार फर्जी कम्पनियां बनाकर चार महंगी सम्पत्तियां खरीदीं। इन सम्पत्तियों को गिरवी रखकर 70 करोड़ का कर्ज लेकर बैंक की मदद से दो अपार्टमेन्ट खरीदे। सारी खरीदफरोख्त कालेधन से हुई, लेकिन अपने चुनावी घोषणा पत्र में सम्पत्तियों का जिक्र नहीं किया। सम्पत्ति का प्रबन्धन मालिकाना हक वाली विदेशी कम्पनियां करती थीं। बड़ी दिग्गज हस्तियाँ अपने देश से बाहर टैक्स हैवन देशों में पैसे रखकर टैक्स बचाते हैं।
क्रिकेटर से राजनेता बने पाकिस्तान तहरीके इंसाफ के प्रमुख इमरान खान ने नवाज शरीफ पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप पर उनसे प्रधानमंत्री पद से त्याग पत्र देने की मांग की। एक राजनेता के समान नवाज ने देश को सम्बोधित करते हुए अपने और अपने परिवार पर लगे हर आरोपों से इनकार किया। उन्होंने कहा कि यदि आरोप सिद्ध हो जायेंगे, तो वे पद से इस्तीफा दे देंगे। इमरान खान ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से मामले की जांच के लिए कमीशन बनाने का आग्रह भी किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पांच रिटायर्ड जजों को जांच के लिए नियुक्ति किया गया, परन्तु वे जाँच के लिए तैयार नहीं हुये। नवाज सरकार के वित्त मंत्री इशाक दार ने एक सरकारी जाँच कमीशन का प्रस्ताव विपक्षी दलों के सामने रखा, जिसे विपक्ष ने खारिज कर दिया।
अब पाकिस्तान की पीपल्स पार्टी भी नवाज पर पद छोड़ने का दबाव बनाने लगी। इस दल का नेता बेनजीर भुट्टो का बेटा बिलावल भुट्टो है। विपक्ष ने मिलकर जांच कमीशन का गठन कर सरकार के सामने प्रस्ताव रखा, लेकिन सरकार को मंजूर नहीं था। अबकी बार सरकार और विपक्ष दोनों में 12 सदस्यों वाले जाँच कमीशन पर सहमती बनी। पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी ने चुनाव आयोग के सामने याचिका दायर कर कहा कि नवाज ने चुनाव के पेपर में गलत बयानी की है, अत: उन्हें अयोग्य ठहराया जाये। एक याचिका जमाते इस्लामी में पनामा पेपर लीक मामले में दायर की गयी। अबकी बार सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को स्वीकार कर पांच सदस्यीय बेंच बनाकर सुनवाई शुरू की। इमरान खान के दल ने नवाज के खिलाफ सबूत पेश किये, लेकिन नवाज के वकीलों ने भी अपने पक्ष को मजबूती से पेश किया। मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने छह सदस्यों के जांच दल (जेआईटी) का गठन किया, जिसने पूरी तरह जांच के बाद रिपोर्ट पेश की।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की खंडपीठ के सभी जजों ने एकमत होकर उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य घोषित किया। यही नहीं उन्हें अपने दल का अध्यक्ष पद भी छोड़ने के लिए कहा गया। पाकिस्तान की राजनीति में नया मोड़ यह है कि क्या नवाज के हटने पर पाकिस्तान में अनिश्चितता की स्थिति का लाभ उठाकर आतंकी सत्ता में अपना अधिकार बढ़ाने की कोशिश करेंगे। नवाज के पद से हटने पर जमातुल दावा ने ख़ुशी जताई। आतंक के सरगना हाफिज सईद ने कहा कि नवाज द्वारा जेहाद का समर्थन न करने से उनकी सत्ता गयी है। आईएसआई खुश है कि उसे भी अपना वर्चस्व चाहिए और पाकिस्तान के राजनेता काफी खुश हैं कि कानून से ऊपर कोई नहीं है।
पाकिस्तान में मीडिया खुलकर नहीं बोल सकता था, वह भी कह रहा है कि भ्रष्टाचार के केस में नवाज शहीद हुए हैं। पाकिस्तान में नारे लगे ‘जो मोदी का यार है वह देश का गद्दार है’। प्रजातंत्र की रक्षा के लिए समर्थ न्यायपालिका का अपना महत्व है। अब भय है कि पाकिस्तान की सेना सत्ता को अपने हाथ में न ले ले, लेकिन पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। सेना जानती है कि प्रजातंत्र का मुखौटा अमेरिका से मदद लेने के लिए जरूरी है, वह वैसे ही सत्ता का उपभोग कर रही है, मिलिट्री के दोनों हाथों में लड्डू हैं। कुछ विचारकों का यहाँ तक मत है कि सेना के इशारे के बिना नवाज को हटाया नहीं जा सकता था।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है। उनके अनुसार परमाणु हथियारों से सम्पन्न पाकिस्तान विश्व के लिए खतरा बन रहा है। वह आतंकवाद का भी पोषक है। पाकिस्तान का झुकाव चीन की तरफ बढ़ रहा है। चीन के नीतिकार नवाज के बाद की स्थिति पर नजर रख रहे हैं। उनका ग्वादर बन्दरगाह पर बहुत धन लगा है। पाकिस्तान पर उनकी दीर्घकालीन लाभ के लिए नजर है। पाकिस्तान भारत विरोधी है। चीन भारत की शक्ति को बढ़ते नहीं देखना चाहता, इसीलिए पाकिस्तान को समर्थन देकर भारत के विरुद्ध कूटनीतिक चालें चलता रहता है।
जब से नवाज शरीफ प्रधानमंत्री बने थे, भारतीय सीमा का उल्लंघन बढ़ गया, लगातार बॉर्डर से सेना के कवर में जेहादी भेजे जा रहे हैं। कश्मीर में सुरक्षा दल हर समय सचेत रहते हैं। उनका आतंकियों के खिलाफ अभियान निरंतर चल रहा है। क्या पाकिस्तान में मिलिट्री राज लौटेगा, यह सम्भव तो नहीं लगता।
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