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विश्व के अनेक भागों में ख़ासकर साउथ ईस्ट एशिया और भारत में विभिन्न भाषाओं में राम कथा सुनाई जाती है। रामकथा का मंचन किया जाता है, कथा का सार एक है रघुकुल तिलक। महाराजा दशरथ ने अपनी राजसभा से प्रजा को वचन दिया था, उनके राजा राम होंगे, लेकिन सब पर भारी पड़े महारानी कैकई को दिये दो वरदान, जिनका मोल राजा ने अपने प्राण देकर चुकाया।
महाराजा दशरथ ने सहज मुद्रा में मुकुट सीधा करने के उद्देश्य से दर्पण में अपना मुख देखा, उन्हें कान के पास सफेद बाल दिखाई दिए। उन्होंने मंत्री परिषद, अधीनस्थ राजाओं, योद्धाओं, न्याय परिषद एवं विद्वानों की सभा बुलाकर अपने विचार रखे। अब वे श्रीराम का राज्याभिषेक कर पद मुक्त होने के लिए सबकी राय जानना चाहते हैं।
राजा के ऐसा कहते ही पूरी सभा साधु-साधु की हर्ष ध्वनि से गुंजायमान हो उठी। महामंत्री श्री सुमंत ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि महाराज आप कौशल नगरी के महान रघुवंशियों के समान महान है। श्रीराम ने आपसे राजधर्म सीखा है। राम जन-जन को प्रिय हैं। आपका निर्णय उचित है। श्रीराम महान युवराज हैं, वे जो कहते हैं वही करते हैं। प्रजाजन उनके हर शब्द पर विश्वास करते हैं।
वशिष्ठ मुनि ने गणनाकर बताया, वही दिन शुभ होगा जिस दिन राम का राज्याभिषेक होगा। मुनिवर समझ गये अब श्रीराम के वनवास का समय हैं, उनकी ग्रह दशायें श्रीराम के वन गमन की ओर संकेत कर रही हैं। राजा ने विचार किया कि भरत-शत्रुघ्न के साथ अपने नाना से मिलने कैकय देश गये हैं, लेकिन शुभ महूर्त समझकर क्यों न कल ही राम का राज्याभिषेक हो जाये।
श्रीराम को सभा में बुलाया गया। उनसे राजा दशरथ ने कहा कि शुभ महूर्त कहता है कि शुभ काम शीघ्र करना चाहिए। अत: तुम्हें गुरु की आज्ञानुसार उन सभी व्रत नियमों का पालन करना है, जो शास्त्रानुसार उचित हैं। आज की रात तुम्हारे मित्र तुम्हारी रक्षा करेंगे। चारों भाइयों में राम बड़े थे, अत: सिंहासन के वह उत्तराधिकारी थे।
वशिष्ठ मुनि ने राम के कक्ष में उन्हें वेद मन्त्रों के साथ जमीन पर चटाई बिछाकर रात्रि में उपवास और जागते रहने का आदेश दिया। अयोध्या की राजसभा से राम के राज्याभिषेक का समाचार नगरवासियों ने सुना। प्रजा आनन्द मग्न हो गयी। घर-घर मंगल ध्वनि होने लगी। नगर को फूलों से सजाया जा रहा था। सुगन्धित जल का छिड़काव मार्ग में होने लगा।
मंथरा महारानी कैकई के साथ आई थी, वह उत्सव में डूबे नगरवासियों, महल में काम करने वाली राजमहल की महिला कर्मचारियों को नये कंगन पहने देखकर चिल्लाई, क्या तुमने यह आभूषण चुराए हैं। परिचारिकाओं नें आनन्द मग्न होकर कहा, कल श्रीराम का राज्याभिषेक होगा, वह हमारे महाराज होंगे।
मंथरा का हृदय धक-धक करने लगा, जैसे वह भयानक भूचाल में फंस गयी हो। उसने महारानी कैकई के निजी कक्ष में जाकर महारानी को पुकारते हुए कहा, जागो महारानी जागो, दुर्भाग्य का तूफ़ान आने वाला है। महारानी ने आश्चर्य से पूछा, मेरे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न तो कुशल से हैं? कपटी मंथरा बोली, आज राम को छोड़कर कौन सकुशल हो सकता है, कल राम का राजतिलक है। यह सुनकर रानी ने गले से उतारकर मंथरा को रत्नों का हार उपहार में दिया।
मंथरा उपहार धरती पर फेककर फुंकारने लगी, अरे दुःख का अवसर है, दुर्भाग्य तुम्हारे सिर पर मंडरा रहा है, तुम उपहार दे रही हो। रानी जानती थी मंथरा उसकी हित चिंतक है, लेकिन कुटिल है। उसे डांटते हुए कहा, यदि आनन्द में आनन्दित नहीं हो सकती, तो चुप रहो, तुम्हारी जिव्हा कितनी विकृत है, लम्बी लम्बी सांसे क्यों ले रही हो?
मंथरा बोली, तुम सोचती हो महाराज की प्रिय रानी हो, अत: उनकी कपट भरी बातों में आ जाती हो। तुम कुटिलता त्यागकर जो चाहो मांग सकती हो, क्या तुम नहीं जानती राम को सभी माताएं प्रिय हैं? रघुकुल की रीति है बड़ा भाई स्वामी और छोटे भाई उसके सेवक होते हैं।
मंथरा ने उसांस लेकर महारानी के मर्म पर चोट की, अपने भरत को संदेश पहुंचाओ, वह कभी ननिहाल से न लौटें, अनाथ की तरह जीवन जीने से अच्छा है, वहीं छुप जायें। तुम्हारे भी सुख आमोद प्रमोद के दिन गये रानी, कल से राम की माता राजमाता और तुम उसकी सेविका होगी, मेरा तो और भी हाल बेहाल होगा, सभी जानते हैं मैं तुम्हारी हितैषी हूं। तुम्हें सोचना है, तुम्हें राजमाता का पद चाहिए या महाराजा की बड़ी महारानी की सेविका का और भरत राम के सेवक, दोनों क्या चैन से जी सकोगे? मंथरा ने कैकई के मर्म पर चोट की, जिसका सीधा असर बुद्धि पर हुआ।
15 दिन से राजतिलक की तैयारी हो रही है, भोली महारानी तुम्हें मेरे द्वारा जानकारी मिल रही है। कैकई डर गयी, रानी के विवेक को हरने के लिए उसने तरह-तरह के प्रसंग सुनाये। अंत में कैकई को दुर्बुद्धि मंथरा ही विश्व में सबसे हितकारी लगी। तुम्हारे पिता कैकय महाराज ने जब तुम्हारा विवाह महाराज से किया था, वह अवस्था में बड़े और सन्तान हीन थे। तय था तुमसे उत्पन्न सन्तान का राजतिलक होगा। रानी अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, अभी पूरी रात बाकी है।
तुम्हें याद होगा देवासुर संग्राम में तुमने महाराज के प्राणों की रक्षा की थी, महाराज ने कृतज्ञता वश कहा था कि तुम्हे दो वरदान देता हूँ, जब चाहे मांग लेना, अभी तक तुम्हें मांगने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी थी। आज तुम्हारे हित में है, वरदान मांगो, लेकिन महारानी वर तब मांगना जब महाराज राम की सौगंध लें। वर भरत के लिए राजतिलक और राम के लिए 14 वर्ष का तापस वेश में वनवास। सोचो यदि राम अयोध्या में रहेंगे, नगरवासी भरत को राजा के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। चौदह वर्ष का वनवास राम को राज्य से दूर ले जाएगा, लोग उन्हें भूल जायेंगे। नियति ने लम्बी साँस ली, आह अयोध्या पर उसकी काली छाया पड़ चुकी थी, लेकिन यही समय जम्बूदीप के लिए मंगलकारी था, देश का इतिहास बदलने वाला था।
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