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अध्‍यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में कैसे जान फूंकेंगे राहुल!

Vichar Manthan
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राहुल जी की अध्यक्ष पद के लिये ताजपोशी तैयार है उन्होंने 4 दिसम्बर को नामांकन पत्र भरा उनका नाम श्रीमती सोनिया गाँधी और डॉ मनमोहन सिंह ने प्रस्तावित किया। विरोध में किसी भी कांग्रेसी नेता में नामांकन पत्र भरने की हिम्मत नहीं है लेकिन ऐसा दिखाया जा रहा था चुनाव प्रजातांत्रिक ढंग से हो रहा हैं विरोध के इक्का दुक्का स्वर उठे चुनाव की जरूरत क्या है सीधे ही ताजपोशी क्यों नहीं कर देते? परन्तु महत्वहीन हैं गुजरात में वोटिंग और रिजल्ट आने से पहले अध्यक्ष के पद पर राहुल गांधी को आसीन करना कांग्रेस का नीतिगत फैसला है।


गुजरात चुनाव में राहुल जी स्टार प्रचारक हैं वह प्रचार में पूरा जोर लगा रहे हैं। लगभग छ: माह से गुजरात में चुनाव की कमान संभालने वाले चुनावी रण नीति तैयार करने में लगे थे जीएसटी और नोटबंदी को मुख्य मुद्दा बनाया गया नये उभरते पाटीदारों के आरक्षण की आवाज उठाने वाले हार्दिक पटेल और दलितों के नेता से भी समझौता हुआ ,जातीय समीकरण बिठाये गये राहुल जी हिन्दू वोटों को आकर्षित करने के मन्दिर-मन्दिर जा रहे है। अब रिजल्ट बताएगा किसकी जीत होती है। गुजरात में बाईस वर्ष के भाजपा शासन को उखाड़ने की कोशिश की जा रही है। राहुल गाँधी अध्यक्ष बनकर कांग्रेस की कमान सम्भालें एक दिन उनका पुत्र देश का प्रधान मंत्री बने, उनकी माँ सोनिया गांधी की इच्छा रही है।


2004 में कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं था लेकिन 16 दलों के समर्थन के बाद यह संख्या 322 हो गई। सोनिया जी यूपीए की चेयर पर्सन थी। वह प्रधानमंत्री इंदिरा जी की पुत्र वधू है सदैव उनके के साथ रहीं थीं राजनीति ही नहीं कूटनीतिक दाव पेचों को पास से देखा था।  इंदिरा जी की हत्या से एक सहानूभूति की लहर में कांग्रेस को 425 सीटें प्राप्त हुई प्रचंड बहुमत के साथ राजीव गाँधी देश के प्रधानमंत्री बने। उनका कार्यकाल पांच वर्ष तक रहा। इनके  बाद वी. पी .सिंह की सरकार रही , कांग्रेस के समर्थन से  देश में स्वर्गीय चन्द्रशेखर जी की अल्पकालीन सरकार रही ,देश की राजनीति का महत्व पूर्ण समय था।


राजनीति में रुचि न दर्शाते हुए सोनिया जी सक्रिय  राजनीति से दूर रहीं। राजीव गाँधी की हत्या के बाद नरसिंघाराव के प्रधान मंत्री काल तक वह चुपचाप समय का इंतजार करती रहीं। कांग्रेस का जनाधार कम होता जा रहा था ऐसे में चाटूकारों द्वारा सोनिया जी आईये देश बचाईये के आह्वान के साथ सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को बाहर का रास्ता देखना पड़ा, जिसने उनका विरोध किया, उसको कांग्रेस का उग्र विरोध सहना पड़ा।


कांग्रेस की जीत के बाद सोनिया जी प्रधान मंत्री पद की इच्छुक थी लेकिन उनके विदेशी मूल का मुद्दा राजनीतिक गलियारों में जोर शोर से उठा वह चुप रहीं। कांग्रेस में शानदार राजनैतिक ड्रामा चल रहा था। हर कांग्रेसी उनसे पद सम्भालने की प्रार्थना कर रहा था, बाहर चाटूकारो की भीड़ थी, अफवाहों का बाजार भी गर्म था। अंत में  सोनियाजी जी का मौन टूटा। उन्होंने आत्मा की आवाज के नाम पर असहमति जता कर डॉ मनमोहन सिहं का नाम प्रधान मंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया। वह सौलह दलों के समर्थन के पेपर लेकर राष्ट्रपति महोदय की स्वीकृति लेने  मनमोहन सिंह जी के साथ राष्ट्रपति भवन गईं।


मनमोहनसिंह जी ने कभी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा था। वह राज्य सभा के सदस्य थे और कांग्रेस की और से  विपक्ष के लीडर रहे थे। अत: डॉ मनमोहन सिहं एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री नहीं थे। सोनिया जी ने उन्हें बड़ी सोच समझ के साथ इस पद पर बिठाया था। इनकी छवि एक ईमानदार ,चुप चाप काम करने वाले चिंतक व्यक्ति की थी, ऊपर से अल्पसंख्यक वर्ग वह सिख थे। 84 के दंगों का दाग भी कांग्रेस के ऊपर था। डॉ मनमोहन सिंह किसी के लिये कष्ट का कारण नहीं बन सकते, वह काफी समय तक ब्योरोक्रेट रहे हैं। अत : उनमें एक आज्ञाकारी नौकरशाह के गूण भी भरपूर थे।


उनकी तीन पुत्रियों मे राजनीतिक महत्वकांक्षा नहीं थी, जिस तरह परिवार वाद की राजनीति चल रही है ,अपनी सन्तान, दामाद , भाई ,भतीजों और भांजों या पत्नि के लिये  टिकट मांगना चुनाव जितवाने का पूरा प्रयत्न करना यदि संसद में आ जाएँ तो उनके लिए मंत्री मंडल में जगह दिलवाना, यहाँ ऐसी कोई परेशानी नहीं थी। सोनिया जी का विदेशी मूल का मुद्दा उनके प्रधान मंत्री पद में बाधक था परन्तु उनकी सन्तान के लिए नही था। सोनिया जी अपनी दो संतानों में पहले पुत्र राहुल गाँधी को भविष्य में प्रधान मंत्री पद पर आसीन होते देखना चाहती थी, जो अभी अनुभव हीन थे। अत: जनता को स्वीकार्य नहीं होते मनमोहन सिहं जी बिलकुल रामायण के चरित्र “भरत “सरीखे थे, नेहरु-गाँधी के वंशजों के लिए सिहासन बिल्कुल सुरक्षित रहता।


राहुल गाँधी 2013 में कांग्रेस के उपाध्यक्ष बन अमेठी से वह सांसद है। 2019 का चुनाव उनकी अध्यक्षता में लड़ा जाएगा। कांग्रेस यदि चुनाव जीत सकी, वह  प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। 22 मई 2004 को डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधान मंत्री पद की शपथ ग्रहण की। सोनिया जी के त्याग के चर्चे बढ़े उनका कद पहले ही बहुत बड़ा था अब तो कहना ही क्या था। देश में दो सत्तायें थी एक यूपीए अध्यक्षाजी की सत्ता, दूसरी डॉ मनमोहन सिह सरकार की। जिन्होंने वह समय देखा है वह जानते हैं जब भी  प्रधानमंत्री अपने आफिस आते थे, उनके हाथ में आवश्यक फाइल होती थी पीछे उनका ड्राइवर उनका खाना लेकर आता था। कोई हलचल नहीं होती थी। पर जब सोनिया जी की गाड़ी आती कांग्रेसी नेता गण ऐसे भागते थे, डर लगता था आपस में टकराकर गिर न पड़ें। कहीं नमस्ते करने की होड़ में वह पिछड़ न जाये।


इतनी जी हजूरी बस पूछिये मत। मैडम को अपनी भक्ति दिखाना जैसे जीवन का सबसे बड़ा धर्म है, समझ आ जाता है कि कौन सत्ता का केंद्र था। अब राहुल जी का कद ऊंचा करना था। डॉ मनमोहन सिंह ने अनेक कार्य किये 2014 के चुनाव के आते आते खाद्य सुरक्षा बिल पास हुआ, जिसका सारा श्रेय सोनिया जी एवं उनके सपुत्र राहुल गाँधी को दिया गया। जब कोई ठोस निर्णय प्रधान मंत्री कार्यालय से लिया जाता जिस पर हो हल्ला मचता, सोनिया जी उस निर्णय को वापिस ले लेतीं। डॉ मनमोहन जी के पूरे कार्यकाल में हर मंत्री अपने आप को सोनिया जी के प्रति उत्तरदायी और वफादार सिद्ध करने में गौरव  महसूस करता था।


दागी मंत्रियों को चुनाव में कुछ फायदा देने के अध्यादेश को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी ,यह अध्यादेश उचित नहीं था। विरोध का भी एक ढंग है, जबकि सत्ता सोनिया जी के ही हाथ में थी, लेकिन उनके सपुत्र राहुल गाँधी ने जिस समय चैनल में कांग्रेस प्रवक्ता अध्यादेश पर सफाई पेश का रहे थे, आकर अपना मत रखकर उसे फाड़ दिया। इससे  राहुल गाँधी का कद भी ऊँचा नहीं हुआ, हाँ प्रधानमंत्री की किरकिरी जरूर हुई। यह अध्यादेश अभी राष्ट्रपति के पास जाना था, वहीं राष्ट्रपति उसे रोक लेते।


डॉ मनमोहन सिंह के काल में जमकर घोटाले हुये। कुछ लोग इसे घोटालों का काल कहते हैं, परन्तु ईमानदार प्रधानमंत्री ने घोटाले करने वालों पर अंकुश क्यों नहीं लगाया? चर्चा थी प्रधानमंत्री के आॅफिस की महत्वपूर्ण फाइलें  सोनिया जी के पास जाती थीं, जबकि यह पद की गोपनीयता की शपथ के खिलाफ था। राहुल गांधी ने विपक्ष द्वारा संसद के बहिष्कार का विरोध किया, सांसदों को समझाया संसद पर प्रतिदिन कितना धन खर्च होता है, जबकि मोदी जी के समय वह सबसे अधिक संसद को चलने नहीं देते। भाषण में अनेक प्रश्न उठाते हैं, लेकिन बिना उत्तर सुने सदन से चले जाते हैं। अब देखना है अध्यक्ष बनने के बाद वह कैसे कांग्रेस में जान फूकते हैं।

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